शनिवार, 23 मार्च 2019

= १९५ =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू स्वांगी सब संसार है, साधू विरला कोइ ।*
*जैसे चन्दन बावना, वन वन कहीं न होइ ॥* 
*साधु जन संसार में, शीतल चंदन वास ।*
*दादू केते उद्धरे, जे आये उन पास ॥*
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साभार ~ Soni Manoj

🏵️ सहभागिता और सहअस्तित्व का असीम अनुभव 🏵️
पोस्ट ५ - (अहंकार)

बहुत से लोग धन-सम्पत्ति छोड़ देते हैं, वे उसको त्याग देते हैं । भारत में ऐसा होता है कि लोग धन का त्याग कर यह सोचने लगते हैं कि उन्होंने वास्तव में किसी बहुत सारभूत चीज़ का त्याग किया है । यह कुछ भी नहीं है, क्योंकि धन की खातिर कभी भी प्रेम नहीं करता वह धन से प्रेम करता है, अपने अहंकार के लिए । 
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तुम्हारे पास दस लाख डालर हैं, तुम्हारा अहंकार गर्व का अनुभव करता है । तुम दस लाख डालर का त्याग कर हिमालय पर जा सकते हो कि मैंने दस लाख डालर का त्याग कर दिया । बहुत से लोगों के पास दस लाख डालर हैं, लेकिन उनमें से कितने लोग त्याग सकते हैं । यह विचार ही कि इतना अधिक धन बहुत कम लोग ही इतनी सरलता से त्याग सकते हैं, तुम्हारे अहंकार को थोड़ा और बड़ा बना देते हैं । इसलिए जो लोग धन का त्याग करते हैं; उनका अहंकार बहुत सूक्ष्म होता है ।

यदि तुम किसी राष्ट्र के अध्यक्ष हो और तुम पद का त्याग करते हुए यह कहते हो कि मैं अब संन्यासी बनकर हिमालय जाकर वहाँ ध्यान करूँगा - लेकिन वहाँ हिमालय की किसी गुफा में बैठकर भी तुम यह ख्याल करते हुए आनन्द मनाओगे कि आज से पहिले किसी भी अन्य व्यक्ति ने ऐसा त्याग नहीं किया । तुमने एक देश का राष्ट्राध्यक्ष बने रहते हुए भी उस पद को त्याग दिया - और अब तुम संसार भर में सबसे महान संन्यासी हो । 
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अहंकार एक साये की तरह तुम्हारा पीछा करते हुए आ गया । वह तुम्हारी हिमालय की गुफा में भी बना रहेगा, तुम इतनी आसानी से उससे पीछा नहीं छुड़ा सकते । यह बहुत ही सूक्ष्म और तुरन्त समझ में न आने वाली चीज़ है । इसे गिराने के लिए बहुत अधिक होश की जरूरत है । तुम स्वयं अपने आप से भाग कर कहाँ जा सकते हो ? 
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और यह यांत्रिक व्यवस्था तुम्हारे बाहर नहीं तुम्हारे अन्दर है । यह तुम्हारा ही एक भाग बन चुकी है । यह तुम्हारी एक जीवन शैली बन चुकी है । तुम उसके साथ इतनी अधिक लम्बी अवधि तक रहते रहे हो, कि तुम नहीं समझ पाते कि उसके बिना कैसे रहा जाए । इसलिए तुम जीने का जो भी तरीका़ चुनोगे, वहाँ उसके पीछे छिपा अहंकार रहेगा ही ।

उसकी जरूरत समाज को है, उसकी जरूरत राज्य को है, उसकी जरूरत तुम्हारे माता-पिता को है, उसकी जरूरत नेताओं और राजनीतिज्ञों को है, उसकी जरूरत पुरोहितों और पुजारियों को है, प्रत्येक को अहंकार की जरूरत है । उसके कारण केवल तुम्हीं मुसीबत में पड़ गये हो, क्योंकि इसके कारण तुम परमात्मा के राज्य में प्रवेश करने से चूके जा रहे हो । 
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इसलिए तुम्हें बहुत-बहुत सजग बने रहना है, अन्यथा पूरा समाज और राज्य और प्रत्येक व्यक्ति तुम्हारे विरुद्ध षड़यन्त्र रच रहे होंगे । वे चाहते हैं कि यह अहंकार बना ही रहे । यह निर्णय तुम्हें लेना है कि क्या तुम इस यात्रा में उसके साथ जाना चाहते हो अथवा उनकी यात्रा में साथ ही नहीं जाना चाहते । यह तुम्हें समझना है कि अब तक की यात्रा में उनके साथ चलते हुए तुमने आखिऱ क्या प्राप्त किया है ? तुम्हारी उपलब्धि क्या है ? क्या प्रसन्नता मिली तुम्हें ? कौन सा परमानन्द घटा तुम्हें ? 
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तुम इसे बदल सकते हो । तुम दूसरे संसार के व्यक्ति बन सकते हो - जो वास्तव में दूसरे अन्य सांसारिक व्यक्तियों जैसा न हो । तुम कह सकते हो - "इस संसार में वहाँ कुछ भी तो नहीं है, यह पूरा संसार ही अर्थहीन है । मृत्यु आती है और हर चीज़ अपने साथ ले जाती है । मैं अब किसी शाश्वत शक्ति की खोज करूँगा ।" लेकिन यह अभी भी शक्ति और सत्ता की दौड़ है । तुम सोच सकते हो - "इस संसार का इतना धन अधिक महत्वपूर्ण नहीं है । मैं अब किसी दूसरी तरह की सम्पदा के कोष की खोज करूँगा, जो शाश्वत हो, और वह सदा मेरे साथ बना रहेगा ।"
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तब तुम नये नामों के अहंकारी बन जाओगे - जिसके पास आध्यात्मिक शक्ति के साथ चामत्कारिक शक्ति भी हों । ऐसा तथाकथित आध्यात्मिक व्यक्ति, तीन, तरह से इस जाल में फिर से गिर सकता है । या तो बहुत बन जाए - तब उसे यह अहंकार होगा कि मैं जानता हूँ और अन्य किसी भी व्यक्ति से बहुत अधिक जानता हूँ । अथवा वह एक संन्यासी बनकर स्वयं अपने शरीर को कष्ट और पीड़ाएं देकर सुख पाने वाला विकृत चरित्र का व्यक्ति बन सकता है । 
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वह उपवास कर सकता है, वह धीमे-धीमे स्वयं को मारते हुए संसार में यह घोषणा कर सकता है - "मैं एक महान महात्मा हूँ देखो, मैंने सभी कुछ त्याग दिया और अब मैं अपने शरीर को भी छोड़ रहा हूँ ।" अथवा तीसरा रास्ता है कि वह अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा का शक्ति के रूप में प्रयोग करना शुरू कर दे । वह - चमत्कारों का व्यापार करने वाला व्यापारी बन सकता है ।

अध्यात्म के पथ पर यात्रा करते हुए महान ऊर्जाएं जागृत होने लगती हैं । और जब तुम गहरे ध्यान में उतरना शुरू करते हो, तो वे ऊर्जाएं जागने लगती हैं । सच्चा आध्यात्मिक व्यक्ति कभी भी उनका प्रयोग नहीं करेगा क्योंकि वह जानता है कि वह एक जाल है, जिसमे फँसकर तुम वापस इस संसार के दलदल में जा गिरोगे । 
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एक सच्चा आध्यात्मिक व्यक्ति कभी भी किसी शक्ति का प्रयोग करता ही नहीं । यदि ऐसे प्रामाणिक आध्यात्मिक व्यक्ति के चारों और यदि कभी-कभी चमत्कार होते भी हैं, तो वे अपने आप होते हैं, वह व्यक्ति उनको करने वाला नहीं होता ।
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एक व्यक्ति जीसस के पास आया, उसने उनके वस्त्रों का स्पर्श किया और वह रोगमुक्त हो गया । उसने जीसस को धन्यवाद देना चाहा । वह कृतज्ञ था, वह वर्षों से बीमार था और चिकित्सकों ने कह दिया था कि उस रोग का कोई भी उपचार नहीं है, और अब वह बिल्कुल ठीक हो गया था । वह स्वयं अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पा रहा था । वह उन्हें धन्यवाद देने उनके चरणों में गिर पड़ा । जीसस ने कहा - "तुम्हें धन्यवाद देने की कोई भी जरूरत नहीं । धन्यवाद परमात्मा को दो । और वास्तव में तुम स्वयं को ही दो धन्यवाद - यह तुम्हारी अपनी ही आस्था है, जिसने तुम्हें ठीक किया है । मेरा इससे कुछ भी लेना-देना नहीं है !"
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एक आध्यात्मिक मनुष्य के आसपास चमत्कार होते हैं - प्रामाणिक चमत्कार ।
प्रामाणिक चमत्कार यह नहीं है - कि तुम हवा से राख उत्पन्न कर दो अथवा स्विस घड़ी प्रकट कर दो -- यह चमत्कार हैं ही नहीं, ये तो साधारण तरकीबें और हाथ की सफाई हैं । प्रामाणिक आध्यात्मिक मनुष्य के पास प्रामाणिक चमत्कार घटते हैं -- लोग बदल जाते हैं, उनका रूपान्तरण हो जाता है, लोग अस्तित्वगत शून्यता की नूतन उपलब्धि को महसूसना शुरू कर देते हैं । 
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लोग, जीवन, आनन्द और शून्यता के नये आयामों की और गतिशील होना शुरू हो जाते हैं । लोग और अधिक प्रेमपूर्ण और करूणामय होने लगते हैं । लोगों में खिलावट होने लगती है; वे सुवासित हो उठते हैं । नृत्य में उनके पैर थिरकना शुरू कर देते हैं । उनके हृदय पहिली बार उत्सवमय होकर धड़कने लगते हैं । ये ही प्रामाणिक चमत्कार हैं ।
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लोगों को यह अनुभव होने लगता है कि परमात्मा है, लोगों में परमात्मा के प्रति श्रद्धा का भाव उमड़ने लगता है । लोगों में, 'वे कौन हैं' इसके प्रति वे होशपूर्ण होने लगते हैं । उनकी मूर्च्छा टूटने लगती हैं, उनकी आँखें खुलना शुरू हो जाती हैं । वे अधिक समय तक विभाजित और खण्डित न बने रहकर, अखण्ड बनते हैं ।
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ये ही प्रामाणिक चमत्कार हैं , जो स्वत: घटते हैं । लेकिन उन्हें कोई करता नहीं, वे किसी भी व्यक्ति के द्वारा नहीं किए जा रहे हैं । और अहंकार के साथ सारा संसार है और अहंकार के साथ ही अंधकार और मूर्च्छा है ।

--------------- ओशो 
अंतर्यात्रा के पथ पर ।
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