शुक्रवार, 8 मार्च 2019

= सुन्दर पदावली(१६.राग सोरठ - १२/२) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*= १६. राग सोरठ (१२/२)=*
*पंच तीन गुन और पचीसौं,*
*ब्रह्म अग्नि मैं दागै हो ।* 
*सहज सुभाइ फिरै जन मुकता,*
*ऐसैं जग मैं जागै हो ॥२॥* 
*आसा तृष्णा करै न कब हौं,*
*काहू पै नहिं मांगै हो ।* 
*कब हौं पंचा अमृत भोजन,*
*कब हौं भाजी सागै हो ॥३॥* 
*अंतरजांमी नैंकु न बिसरै,*
*बार बार चित धागै हो ।* 
*सुन्दरदास तास कौं बंदै,*
*सून्य सुधा रस पागै हो ॥४॥* 
जो साधक पाँच तत्त्वों को तीन गुणों को या पचीस तत्त्वों को गुरुपदेश के माध्यम से ब्रह्माग्नि में भस्म कर देते हैं तथा संसार में निरपेक्ष भाव से विचरण करते हैं, ऐसे साधक ही लोक में ‘मुक्त’ एवं ‘जाग्रत्’ कहे जाते हैं ॥२॥ 
जो साधक सांसारिक विषयों की आशा एवं तृष्णा सर्वथा त्याग चुके हैं या जो किसी से कुछ भी छोटी या बड़ी याचना(मांग) नहीं करते या जिनको भोजन में कभी सर्वविध पंचमेल मिठाई ही या कभी सुखी रोटी साग भाजी में भिगोकर खाते हों ॥३॥ 
जो उस अन्तर्यामी को एक क्षण भी विस्मृत नहीं होने देते अपितु बार बार अपने चित्त में ही समाहित किये रहते हैं । महाराज श्री सुन्दरदासजी कहते हैं – हम तो उन्हीं सन्तों की वन्दना करते हैं जो शुन्यावस्था में सुधारस का पान करते हैं ॥४॥ 
(क्रमशः)

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