शुक्रवार, 8 मार्च 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू झूठा राता झूठ सौं, साँच राता साँच ।*
*एता अंध न जानहिं, कहँ कंचन, कहँ काँच ॥* 
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com
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मनुष्य मात्र की क्या है स्थिति, जीवन के चौराहे पर खड़े हैं। जहां खड़े हैं, वहीं चौराहा है, क्योंकि हर जगह से चार राहें फूटती हैं, हजार राहें फूटती हैं। जहां खड़े हैं वहीं विकल्प हैं। कोई पूछे कहां से आते हो, पता है?
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झूठी बातें न दोहराना, सुनी बातें न दोहराना। यह न कहना कि गीता में पढ़ा है। उससे काम न चलेगा। गीता में पढ़ा है, उससे तो इतना ही पता चलेगा कि कुछ भी पता नहीं है; नहीं तो गीता में पढ़ते? अगर पता होता कहां से आते हैं, तो पता होता, गीता की क्या जरूरत थी? ये न कहें कि भगवान के घर से आते। न भगवान का पता है, न उसके घर का पता है—कुछ भी पता नहीं।
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लेकिन मनुष्य अहंकारी है। अहंकार के कारण वह स्वीकार नहीं कर पाता कि मैं अज्ञानी हूं। और अहंकार ही बाधा है। स्वीकार कर ले,अहंकार गिर जाता है। अज्ञान की -स्वीकृति से ज्यादा और महत्वपूर्ण कोई मौत नहीं है, क्योंकि उसमें मर जाता है अहंकार, खतम हुआ, अब कुछ बात ही न रही। अचानक पायेंगे हलके हो गये ! अब कोई डर न रहा। सच्चे हो गये !
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अब लोग सिखलाते हैं, झूठ मत बोलो। और जो सिखलाते हैं झूठ मत बोलो, उनसे बड़ा झूठ कोई बोलता दिखाई पड़ता नहीं। झूठ मत बोलो, समझाते हैं। और उनसे पूछो, दुनिया किसने बनाई? वे कहते हैं : भगवान ने बनाई। जैसे ये मौजूद थे। थोड़ा सोचो तो कि झूठ की भी कोई सीमा होती है ! दूसरे लोग झूठ बोल रहे हैं, छोटी—मोटी झूठ बोल रहे हैं। कोई कह रहा है कि हमारे पास दस हजार रुपये हैं और हैं हजार रुपये, कोई बड़ा झूठ नहीं बोल रहा है। हजार रुपये तो हैं ! सभी ऐसा झूठ बोलते हैं। 
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घर में मेहमान आ जाता है, पड़ोस से सोफा मांग लाते हैं, उधार दरी ले आते हैं, सब ढंग—ढोंग कर देते हैं। झूठ बोल रहे हैं, यह बतला रहे हैं मेहमान को कि बहुत है अपने पास। आदमी चेष्टा करता है दिखलाने की जो नहीं है। मगर ये कोई बड़े झूठ नहीं हैं, छोटे—छोटे झूठ हैं और क्षमा—योग्य हैं और इनसे जिंदगी में थोड़ा रस भी है। इसमें कुछ बहुत अड़चन नहीं, इनको झूठ क्या कहना !
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लेकिन कोई पूछता है : दुनिया किसने बनाई? छोटा बच्चा पूछता है कि पिताजी, दुनिया किसने बनाई? पिता कहते हैं, 'भगवान ने बनाई।' कितना बड़ा झूठ बोल रहे हैं ! कुछ तो सोचें ! पता है? और किससे बोल रहे हैं ! उस नन्हें छोटे बच्चे से, जो पिता पर भरोसा करता है ! किसको धोखा दे रहे हैं—जिसकी श्रद्धा पिता पर है और जिसका अगाध विश्वास है कि पिताजी झूठ न बोलेंगे ! फिर अगर बड़े हो कर यह बेटा पिता पर श्रद्धा खो दे तो रोना मत, क्योंकि एक न एक दिन तो इसे पता चलेगा कि पिताजी को भी पता नहीं है, माताजी को भी पता नहीं है। वे पिताजी—माताजी के जो गुरुजी हैं, उनको भी पता नहीं। पता किसी को भी नहीं है और सब दावा कर रहे हैं कि पता है। जिस दिन यह बेटा जानेगा उस दिन इसकी श्रद्धा अगर खो जाए तो जिम्मेवार कोन ? पिता ही हैं जिम्मेवार ! पिता ने ऐसे झूठ बोले जिनका प्रमाण न जुटा सके।
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बात क्या थी? क्या इतनी—सी बात कहने में लजा गए कि बेटा, मुझे पता नहीं ! काश, इतना कह सकते ! और जो पिता अपने बेटे से कह सकता है कि बेटा मुझे पता नहीं, तू भी खोजना, मैं भी अभी खोज रहा हूं अगर तुझे कभी पता चल जाए तो मुझे बता देना, मुझे पता चलेगा तो तुझे बता दूंगा; लेकिन मुझे पता नहीं, किसने बनाई, बनाई कि नहीं बनाई, परमात्मा है या नहीं, मुझे कुछ पता नहीं ! हो सकता है, आज अड़चन मालूम पड़े, लेकिन बेटा समझेगा, एक दिन समझेगा और कभी आदर न खोयेगा ! पिता के प्रति श्रद्धा बढ़ती ही जाएगी।
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जब जवान होगा तब समझेगा कि कितना कठिन है अज्ञान को स्वीकार कर लेना, क्योंकि उसका अहंकार उसे बतायेगा कि अज्ञान को स्वीकार करना बड़ा कठिन है, लेकिन मेरे पिता ने अज्ञान स्वीकार किया था। छाप उस पर अनूठी रहेगी। श्रद्धा के खोने का कोई कारण नहीं है। लेकिन लोग झूठी बातें कहे चले जाते हैं।

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