बुधवार, 20 मार्च 2019

= १९० =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*अमी महारस भर भर पीवै,*
*मन मतवाला जोगी जीवै ॥*
*रहै निरन्तर गगन मंझारी,*
*प्रेम पियाला सहज खुमारी ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद.२३८)
===================
साभार ~ oshoganga.blogspot.com

क्‍व मोह: क्‍व च वा विश्व क्‍व ध्यानं क्‍व मुक्तता
सर्वसंकल्पोसीमायां विश्रांतस्य महात्मन:॥
'संपूर्ण संकल्पों के अंत होने पर विश्रांत हुए महात्मा के लिए कहां मोह है, कहां संसार है, कहां ध्यान है, कहां मुक्ति है?
.
यह अपूर्व वचन है।
जिसके संपूर्ण संकल्पों का अंत आ गया; जिसके मन में अब संकल्प—विकल्प नहीं उठते, जिसके मन में अब क्या हो, क्या न हो, इस तरह के कोई सपने जाल नहीं बुनते, जिसके मन में भविष्य की कोई धारणा नहीं पैदा होती, जिसकी कल्पना शांत हो गई है और जिसकी स्मृति भी सो गई, जो सिर्फ वर्तमान में जीता है।
.
सर्व संकल्प सीमाया विश्रांतस्य महात्मन:।
और इन सब संकल्पों का जहां सीमांत आ गया है, वहां जो विश्राम को उपलब्ध हो गया वही महात्मा है।
.
महात्मा का अर्थ—जिसके जीवन में अब कोई आकांक्षा की दौड़ न रही, अब वह कुछ भी नहीं चाहता, परमात्मा को भी नहीं चाहता, ब्रह्म को भी नहीं चाहता, मोक्ष को भी नहीं चाहता—जो चाहता ही नहीं, चाह मात्र विसर्जित हो गई।
अब तो जो है, उसमें रस—मुग्ध। जो है, उसके काव्य में डूबा। अब तो जो है उसमें परम तृप्त। अब तो जैसा है उसमें ही महोत्सव को उपलब्ध।
'संपूर्ण संकल्पों के अंत होने पर विश्रांत हुए महात्मा के लिए कहां मोह !'
अब किसको कहे मेरा? मैं ही न बचा। इसे समझें।
.
संकल्पों और विकल्पों के जोड़ का नाम ही मैं है। सोचें एक धारणा : अगर कोई किसी का अतीत छीन ले तो वह यह बता न सगेगा कि वह कौन है। क्योंकि अतीत के छिनते ही वह बता न सकेगा, कौन उसका पिता, कौन उसकी मां, किस कुल से आया, किस देश का वासी, किस भाषा को बोलने वाला, हिंदू है कि मुसलमान, कि ईसाई कि जैन, ब्राह्मण कि शूद्र, कुछ भी न बता सकेगा। अगर कोई एक झटके में अतीत छीन ले तो 'मैं' की कोई परिभाषा बचेगी? एकदम पाएंगे परिभाषा खो गई।
.
अगर स्मृति हट जाये तो तुम कौन हो? तुम्हारा मैं तुम्हारी स्मृति का संग्रहीभूत सार—संचय है। और अगर तुम्हारे भविष्य की योजनायें तुमसे छूट जायें, तब तो तुम बिलकुल ही खो गये। तुम्हारा अतीत भी तुम्हारे 'मैं' को बनाता है। कहते हैं, मैं फलां का बेटा, इतना धन मेरे पास, मैं ब्राम्हण। और आगे की योजना—कल्पना भी तुम्हें बनाती है।
.
कहते हैं, आज नहीं कल चीफ मिनिस्टर होने वाला, कि प्राइम मिनिस्टर होने वाला, कि जरा ठहरो, देखो करोड़ों रुपये कमा देने वाला हूं। तो अतीत भी 'मैं' को बनाता है और भविष्य भी 'मैं' को बनाता है। इन दोनों के बीच में 'मैं' खड़ा है। ये दो बैसाखियां 'मैं' के पैर हैं। ये दोनों गिर जायें, 'मैं' गिर गया।
.
संकल्प—विकल्प के अंत हो जाने पर व्यक्ति की चेतना परम विश्राम में पहुंच जाती है। न तो पीछे का कोई धक्का रहता है, न आगे का कोई खिंचाव रहता है।वर्तमान क्षण में रह जाते शांत, विश्रांति को उपलब्ध। ऐसे महात्मा के लिए कहां मोह है और कहां संसार !
.
क्या समझते हैं ऐसे महात्मा के लिए ये सब वृक्ष, चांद—तारे, आकाश, बादल खो जायेंगे? अगर ऐसा होता तो सांख्य के ये वचन बोले किससे जा रहे हैं? समझा किसको रहे हैं? नहीं, 'कहां संसार' का अर्थ है : कहां सपना ! 'संसार' शब्द का अर्थ है भीतर चलते हुए सपनों की दौड़—ऐसा हो जाये, ऐसा पा लूं और ऐसा कर लूं। वह जो भीतर शेखचिल्ली बैठा है, उस शेखचिल्ली की ही यात्रा का नाम संसार है।
.
इसे बार—बार समझ लेना चाहिये नहीं तो बड़ी भ्रांति होती है। सोचते हैं संसार छोड़ने का अर्थ घर—द्वार छोड़ो।
संसार छोड़ने का अर्थ है : भविष्य छोड़ो ! संसार छोड़ने का अर्थ है : अतीत छोड़ो। संसार छोड़ने का अर्थ है. कल्पना—विकल्पना छोड़ो।
.
*'कहां संसार !'*
और बड़ा अदभुत सूत्र है ! *'ऐसे व्यक्ति को कहां ध्यान और कहां मुक्ति !'* सब गया। जब बीमारी गई तो औषधि भी गई। जब बीमारी चली जाती है तो औषधि की बोतलें थोड़े ही टांगे फिरते हैं कि इनका बड़ा धन्यवाद, कि इन्हीं के कारण बीमारी गई, अब इनको कैसे छोड़े, कि अब तो इनको सदा टांगे फिरेंगे ! ये पेन्सिलिन, इसी के कारण बीमारी गई, तो अब इसकी पूजा करेंगे ! जिस दिन बीमारी गई उसी दिन कचरे—घर में फेंक आते हैं सब दवाइयां, बात खतम हो गई।
.
ध्यान तो औषधि है। विचार बीमारी है; ध्यान औषधि है। संसार बीमारी है, मोक्ष औषधि है। जब संसार ही न रहा तो कहां मोक्ष, कैसा मोक्ष ! जिससे बंधे थे वही न रहा, तो अब कैसा छुटकारा ! यह बड़ा कठिन मालूम पड़ेगा, क्योंकि यह तो सुना है कि संसार नहीं रह जायेगा, तब मान रखा है कि मोक्ष होगा।
.
लेकिन ये कहा जा रहा है कि जब बीमारी चली गई तो औषधि भी गई। जब संसार ही न बचा तो अब मोक्ष की बात ही क्या उठानी। *सर्वसंकल्पसीमायां विश्रांतस्य महात्मन:।* अब तो सबसे विश्रांति हो गई—संसार से, मोक्ष से, विचार से, ध्यान से।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें