शुक्रवार, 29 मार्च 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*जब जीवन-मूरी पाइये, तब मरबा कौन बिसाहि ।*
*दादू अमृत छाड़ कर, कौन हलाहल खाहि ॥*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com

यदा यत् कर्तुम् आयाति तत् सुखं कृत्वा।
और तब स्वभावत: सहज भाव में सुख उत्पन्न होता है। सहज भाव सुख है। सहज भाव में सुख के फूल लगते हैं।
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तिष्ठत धीरस्य।
और ऐसा जो धीरपुरुष है उसकी अपने में प्रतिष्ठा हो जाती है। उसका अपने में आसन जम जाता है। वह सम्राट हो जाता है, सिंहासन पर बैठ जाता है। सुख के सिंहासन पर, स्वयं के सिंहासन पर, शांति के, स्वर्ग के सिंहासन पर।
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प्रवृत्तौ वा निवृत्तौ।
न तो प्रवृत्ति में उसे रस है न निवृत्ति में। न तो वह कहता है कि मैं संसारी हूं न वह कहता मैं त्यागी हूं।
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संन्यास का यही अर्थ है : न त्यागी न भोगी। सहज। मध्य में। कभी भोगी जैसा व्यवहार करना पड़े तो भोगी जैसा कर लें, कभी त्यागी जैसा व्यवहार करना पड़े तो त्यागी जैसा कर लें। लेकिन सदा मध्य को न खोएं, बीच में आ जाएं। वह जो सम्यक दशा है मध्य की, उसी का नाम संन्यास है।
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’सम्यक न्यास' अर्थात संन्यास। बीच में ठहर जाना। संतुलित हो जाना। सहज भाव में संतुलन संन्यास है। क्योंकि सहज भाव ही मध्य भाव है। वही स्वर्ण—सूत्र है।
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ऐसे ये अनूठे सूत्र हैं। सुन कर ही न समझ लें, पूरे हो गये। सुनने से तो यात्रा शुरू होती है। गुने ! खूब—खूब इनका स्वाद लें। ये धीरे— धीरे रक्त—मांस—मज्जा में मिल जायेंगे। और तब इनसे अपूर्व सुगंध उठेगी। ऐसी सुगंध, जो पहले नहीं जानी। और ऐसी सुगंध, जो भीतर छुपी है।
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कस्तूरी कुंडल बसै ! कस्तूरी खुल जाये, कस्तूरी प्रगट हो जाये कि परमात्मा फिर विजयी हुआ, फिर से जीता। फिर एक फूल खिला। फिर परमात्मा के लिए एक उत्सव का क्षण आया।
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इन सूत्रों को सुनने में भी रस है, गुनने में तो बहुत महारस होगा। और जब इन्हें जीएंगे तब पाएंगे जीवन का पूरा अर्थ, जीवन की पूरी निर्झरणी उपलब्ध हो जायेगी।
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अमृत के द्वार खुल सकते हैं। और द्वार पर खड़े हैं, दस्तक देने की ही बात है।मंदिर में विराजमान ही हैं, भीतर जाने की भी कोई जरूरत नहीं। भीतर ही हैं,जहां हैं, वहीं सब उपलब्ध है। थोड़े जागें, द्वार खटखटाएं, इसका अर्थ अपने को थोड़ा खटखटाएं, अपने को थोड़ा झकझोरें। जैसे सुबह नींद से उठ कर झकझोरते हैं, ऐसे इस संसार की नींद से अपने को झकझोरें। नहीं तो दुख ही दुख है; सार जरा भी नहीं। जागे तो ही सार है।

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