#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*पहली प्राण विचार कर, पीछे कुछ कहिये ।*
*आदि अंत गुण देखकर, दादू निज गहिये ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*शब्द परीक्षा का अंग ७३*
इस अंग में शब्द परीक्षा संबंधी विचार कर रहे हैं -
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एक शब्द माया मई१, एक ब्रह्म उनहार२ ।
रज्जब उभय३ पिछाणि उर, करहु बैन व्यवहार४ ॥१॥
एक शब्द तो माया में फंसाकर तद्रूप१ करने वाला होता है और एक ब्रह्म के समान२ बनाने वाला होता है, इसलिये दोनों३ को हृदय में पहचान कर वचन बोलना४ चाहिये ।
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कौडी लाल सु शब्द हैं, सौंघे महँगे बोल ।
मधि मणि गण सम बैन बहु, पावहि वित्त१ सु मोल ॥२॥
कौड़ी और लाल के समान शब्द हैं, जो संसार सम्बन्धी वचन हैं वे तो कौड़ी के समान सोंघे हैं और जो पारमार्थिक वचन हैं वे लाल के समान महँगे हैं, दोनों प्रकार के वचनों में वचनों के मध्य ही बहुत - से वचन मणि गण के समान मिलते हैं, वे धन१ के समान ही कीमत पाते हैं ।
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मुख मंदिर टकसाल में, नाँणे१ शब्द सुजान ।
दमड़ी खुड़दे२ मुहर लौं, विकसी वित्त३ उनमान ॥३॥
हे सुजान ! टकसाल में दमड़ी, रेजगारी२, मुहर तक बहुत सिक्के१ होते हैं, वे उनमें जितना धन होता है उसके अनुमान से ही बिकते हैं, वैसे ही मुखरूप मंदिर में बहुत शब्द होते हैं, वे भी अर्थ रूप धन३ के अनुसार ही कीमत पाते हैं अर्थात अच्छे बुरे समझे जाते हैं ।
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कौडी तांबा रूपा१ कंचन, नग नाँणे२ लग लाल ।
त्यों रज्जब बाइक३ विविध, फेर मोल अरु माल ॥४॥
कौड़ी, तांबा, चांदी१, सोना के सिक्के२, नग और लाल तक जो भी माल है, उस माल के अनुसार ही उक्त वस्तुओं की कीमत अधिक कम होती है, वैसे ही वचन३ भी नाना प्रकार के हैं, उनका भी उनके अर्थ के अनुसार ही मूल्य होता है ।
(क्रमशः)
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