#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*काया कठिन कमान है, खांचै विरला कोइ ।*
*मारै पंचों मृगला, दादू शूरा सोइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*शिकार का अंग ७२*
इस अंग में शिकार संबंधी विचार कर रहे हैं -
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चेतन चीता हाथ ले, मूंठी मन पर डार ।
रज्जब शैल१ शिकार करि, मन मृग को तकि२ मार ॥१॥
मन पर संयम रूप मुठ्ठी का आघात डालकर चेतन रूप चीता को हृदय - हाथ में पकड़ अर्थात निरन्तर ब्रह्म चिन्तन कर, शरीर - पर्वत१ में स्थित मन - मृग को ध्यान -धनुष पर ज्ञान संधान२ करके मार, यही शिकार कर, अन्य नहीं ।
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पंच पचीसौं मारिये, मन मनसा२ पुनि मार ।
रज्जब वपु वन खंड में, खेलहु शैल१ शिकार ॥२॥
संसार वन के मानव योनि खंड के शरीर -पर्वत१ में शिकार खेलते हुये पंच ज्ञानेन्द्रिय, पच्चीस प्रकृति, चंचल मन और कुबुद्धि२ को मारो, यही श्रेष्ठ शिकार करना है ।
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इति श्री रज्जब गिरार्थ प्रकाशिका सहित शिकार का अंग ७२ समाप्त ॥सा. २२५१॥
(क्रमशः)
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