बुधवार, 24 अप्रैल 2019

= *शिकार का अंग ७२(१/२)* =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐 
*काया कठिन कमान है, खांचै विरला कोइ ।*
*मारै पंचों मृगला, दादू शूरा सोइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*शिकार का अंग ७२* 
इस अंग में शिकार संबंधी विचार कर रहे हैं - 
चेतन चीता हाथ ले, मूंठी मन पर डार । 
रज्जब शैल१ शिकार करि, मन मृग को तकि२ मार ॥१॥ 
मन पर संयम रूप मुठ्ठी का आघात डालकर चेतन रूप चीता को हृदय - हाथ में पकड़ अर्थात निरन्तर ब्रह्म चिन्तन कर, शरीर - पर्वत१ में स्थित मन - मृग को ध्यान -धनुष पर ज्ञान संधान२ करके मार, यही शिकार कर, अन्य नहीं । 
पंच पचीसौं मारिये, मन मनसा२ पुनि मार । 
रज्जब वपु वन खंड में, खेलहु शैल१ शिकार ॥२॥ 
संसार वन के मानव योनि खंड के शरीर -पर्वत१ में शिकार खेलते हुये पंच ज्ञानेन्द्रिय, पच्चीस प्रकृति, चंचल मन और कुबुद्धि२ को मारो, यही श्रेष्ठ शिकार करना है । 
इति श्री रज्जब गिरार्थ प्रकाशिका सहित शिकार का अंग ७२ समाप्त ॥सा. २२५१॥ 
(क्रमशः)

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