मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू मुझ ही मांही मैं रहूँ, मैं मेरा घरबार ।*
*मुझ ही मांही मैं बसूँ, आप कहै करतार ॥*
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साभार ~ Manoj Soni
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*बुद्ध का धर्म मनुष्य केंद्रित-धर्म है ।* 💞

बुद्ध का इस बात पर गहनतम जोर है कि तुम अपने मालिक हो, कोई और मालिक नहीं । इसलिए बुद्ध ने परमात्मा की बात ही नहीं की उन्होंने कहा, बात ही क्या उठानी ! आदमी आत्यंतिक रूप से जब खुद ही निर्णायक है, तो परमात्मा को छोड़ ही दो । परमात्मा को बीच में लाने से भ्रम बढ़ सकता है । भ्रम इस बात का कि चलो मैं गलती करूंगा, तो वह क्षमा कर देगा; कि चलो मैं भूल-चूक करूंगा, तो वह राह पर लगा देगा । 
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इससे भूल-चूक करने में सुविधा मिल सकती है । परमात्मा की आड़ में कहीं ऐसा न हो कि तुम अपने को बदलने के उपाय छोड़ दो । तो बुद्ध ने कोई आड़ ही न दी । बुद्ध ने कहा, कोई आड़ की जरूरत नहीं, क्योंकि अंतत: तो परमात्मा भी तुम्हारे विपरीत कुछ न कर सकेगा । हो, तो भी कुछ न कर सकेगा । और जब तुम्हीं करने वाले हो, तुम्हीं निर्णायक हो, तो यह परमात्मा शब्द कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी बेईमानियों को, तुम्हारी धोखाधड़ीयों को छिपाने का आधार बन जाए । इसे हटा ही दो ।
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इसलिए बुद्ध का सारा जोर तुम पर है, मनुष्य पर है । बुद्ध का धर्म मनुष्य केंद्रित-धर्म है, उसमें परमात्मा की कोई भी जगह नहीं । इसका यह अर्थ नहीं है कि बुद्ध के धर्म में परमात्मा का अविर्भाव नहीं होता । होता है, लेकिन मनुष्य से होता है । परमात्मा कहीं दूर आकाश में बैठा हुआ किसी सिंहासन पर नहीं है । मनुष्य के हृदय से ही उठती है वह सुगंध । दूर आकाश को व्याप्त कर लेती है । 
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और धर्मों का परमात्मा अवतरित होता है ---- हिंदू कहते हैं, अवतार -- बुद्ध का परमात्मा अवतरित नहीं होता, ऊपर से नीचे नहीं आता । ऊर्ध्वगमित होता है । नीचे से ऊपर जाता है । ज्योति की तरह है, वर्षा की तरह नहीं । वर्षा ऊपर से नीचे गिरती है । आग जलाओ, लपटें ऊपर की तरफ भागती हैं । तो बुद्ध कहते हैं, जहां चैतन्य की ज्योति जलने लगी, वहां परमात्मा प्रगट होने लगता है ।
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तुम जब पूरे जल जाओगे, जब तुम्हारे भीतर सारा कचरा-कूड़ा जल जाएगा, तुम खालिस कुंदन हो जाओगे, एक शुद्ध लपट रह जाओगे जीवन-चेतना की, बोध की, प्रकाश की, तुम्हीं परमात्मा हुए । अभी तुम जो हो, उसके कारण भी तुम्हीं हो । कल तक तुम जो थे, उसके कारण भी तुम्हीं थे । कल भी तुम जो होओगे, उसके कारण भी तुम्हीं होगे इस बात को खयाल में ले लेना । यह आधारभूत है । बुद्ध के साथ बचने का उपाय नहीं । लुका-छिपी न चलेगी ।
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बुद्ध ने आदमी को वहां से पकड़ा है जहां आदमी सदियों से धोखा देता रहा है । बुद्ध ने मनुष्य को छिपने की कोई ओट नहीं छोड़ी । इसलिए बुद्ध का साक्षात्कार आत्म-साक्षात्कार है । बुद्ध को समझ लेना अपने को समझ लेना है । बुद्ध के साथ पूजा न चलेगी, प्रार्थना न चलेगी; बुद्ध के साथ भिक्षापात्र न चलेगा; बुद्ध के साथ तो आत्मक्रांति, रूपांतरण, खुद को बदलने का दुस्साहस !

💞 ओशो 💞

एस धम्मो सनंतनो भाग ५ प्रवचन ४२
झुकने से उपलब्धि, प्रवचनांश से ॥
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