शनिवार, 20 अप्रैल 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*बाबा, सबै बटाऊ पंथ सिरानैं, सुस्थिर नांहीं कोई ।*
*अंति काल को आगे पीछे, बिछुरत बार न होई ॥*
*बाबा, काची काया कौण भरोसा, रैन गई क्या सोवे ।*
*दादू संबल सुकृत लीजे, सावधान किन होवे ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. १३४)*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com

देखें, धोखा और सबको दें, परमात्मा को न देना। क्योंकि परमात्मा को दिया गया धोखा फिर सोने न देगा, जागने भी न देगा; उठने न देगा, बैठने न देगा। यह परमात्मा को दिया गया धोखा तो अपने ही भविष्य को दिया गया धोखा है। यह तो अपने ही अंतरतम को दिया गया धोखा है।
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और सब यह धोखा देते हैं। फिर पूछते हैं, राह नहीं मिलती। और राह आंख के सामने है। जहां खड़े हैं वहीं राह है। सच तो यह है कि राहें बहुत हैं, मनुष्य अकेला चलनेवाला है। इतनी राहें हैं। प्रेम से चले, ध्यान से चले, भक्ति से चले, ज्ञान से चले, योग से चले—कितनी राहें हैं ! इतनी तो राहें हैं! इतने तो उपाय हैं ! मगर चलते नहीं; बैठे हैं चौरस्ते पर, जहां से सब राहें जाती हैं।
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पुराने शास्त्र कहते हैं : आदमी चौरस्ता है। जैन शास्त्रों में बड़ा महत्वपूर्ण एक सिद्धांत है मनुष्य के चौरस्ता होने का। कहते हैं कि देवता को भी अगर मोक्ष जाना हो तो फिर आदमी होना पड़ता है, क्योंकि आदमी चौरस्ते पर है। देवताओं ने तो एक रास्ता पकड़ लिया, स्वर्ग पहुंच गए। स्वर्ग तो टर्मिनस है—विक्टोरिया टर्मिनस। वहां तो गाड़ी खतम। वहा से आगे जाने का कोई उपाय नहीं है, वहां तो रेल की पटरी ही खतम हो जाती है।
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अब अगर कहीं और जाना हो, मोक्ष जाना हो, तो लौटना पड़ेगा मनुष्य पर।
मनुष्य जंक्शन है। तो अदभुत बात कहते हैं जैन शास्त्र कि देवताओं को भी अगर मोक्ष जाना हो...। किसी न किसी दिन जाना ही होगा। क्योंकि जैसे आदमी दुख से ऊब जाता है, वैसे ही सुख से भी ऊब जाता है। पुनरुक्ति उबा देती है। जैसे आदमी दुख से ऊब जाता है— ध्यान रखें—सुख ही सुख मिले, उससे भी ऊब जाता है।
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सच तो यह कि दुख—सुख दोनों मिलते रहें तो इतनी जल्दी नहीं ऊबता, थोड़ा कंधे बदलता रहता है—कभी सुख, कभी दुख— फिर स्वाद आ जाता है। दुख आ गया, फिर सुख की आकांक्षा आ जाती है। फिर सुख आया, फिर थोड़ा स्वाद लिया, फिर दुख आ गया, ऐसी यात्रा चलती रहती है। लेकिन स्वर्ग में तो सुख ही सुख है। स्वर्ग में तो सभी को सुख के कारण डायबिटीज हो जाता होगा—शक्कर ही शक्कर, शक्कर ही शक्कर! जरा सोचें कैसी मितली और उलटी नहीं आने लगती होगी ! सुख ही सुख, शक्कर ही शक्कर ! लौट कर आना पड़ता है एक दिन।
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आदमी चौराहा है। सब रास्ते मनुष्य से जाते हैं—नर्क, स्वर्ग, मोक्ष, संसार! सब रास्ते जाते हैं। और बैठे चौरस्ते पर पूछते हैं कि रास्ता कहां है? न जाना हो न जाएं, कम से कम ऐसे उलटे—सीधे सवाल तो न पूँछें। न जाना हो तो कोई भेज भी नहीं सकता। न जाना हो तो कम से कम ईमानदारी तो बरतें। यह कहें कि जाना नहीं है इसलिए नहीं जाते; जब जाना होगा जाएंगे।
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लेकिन मनुष्य बेईमान है। मनुष्य यह भी मानने को तैयार नहीं है कि मैं परमात्मा की तरफ अभी जाना नहीं चाहता। मनुष्य बड़ा बेईमान है ! हाथ फैलाता संसार में है और कहता है, जाना तो परमात्मा की तरफ चाहते हैं, लेकिन करें क्या, रास्ता नहीं मिलता !
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पतंजलि ने क्या दिया है?अष्टावक्र ने क्या दिया है? बुद्ध—महावीर ने क्या दिया? रास्ते दिए हैं। सदियों से तीर्थंकर और बुद्धपुरुष रास्ते दे रहे हैं; और कहते हैं, रास्ता क्या है ! इतने रास्तों में से पथ नहीं मिलता; एकाध रास्ता और जान लेने से कुछ फर्क पड़ेगा? यही भगवान बुद्ध से पूछते रहे, यही महावीर से पूछते रहे, यही सदा पूछते रहेंगे। समय के अंत तक यही पूछते रहेंगे, रास्ता नहीं है।
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लेकिन बेईमानी कहीं गहरी है : जाना नहीं चाहते। पहले वहीं साफ—सुथरा कर लें। पहले प्यास को बहुत स्पष्ट कर लें। जो जाना चाहता है, उसे पूरा संसार भी रोकना चाहे तो नहीं रोक सकता। खोजना चाहें, खोज लेंगे। और जब प्यास बलवती होती है, लपट की तरह जलती है तो सारा अस्तित्व साथ देता है। 
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अभी खोजते तो धन हैं और बातें परमात्मा की करते हैं; खोजते तो पद हैं, बातें परमात्मा की करते हैं; खोजते कुछ हैं, बातें कुछ और करते हैं। बातों के जरिए एक धुआं पैदा करते हैं अपने आस—पास, जिससे दूसरों को भी धोखा पैदा होता है, खुद को भी धोखा पैदा होता है। दूसरों को हो, इसकी चिंता नहीं; लेकिन खुद को धोखा पैदा हो जाता है। खुद को लगने लगता है कि बड़े धार्मिक आदमी हैं, कि देखो कितनी चिंता करते हैं, सोच—विचार करते हैं।

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