#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*यहु कहुं पाती कहुं भई देव,*
*पुनि कहुं युक्ति करि करै सेव ।*
*यहु कहुं मालनि कहुं भई फूल,*
*यहु कहूं सूक्ष्म कहूं ह्वै है स्थूल ॥३॥*
*यहु तीन लोक मैं रही पूरि,*
*भागी कहां कोई जाइ दूरि ।*
*जौ प्रगटै सुन्दर ज्ञान अङ्ग,*
*तौ माया मृग जल रजु भुजंग ॥४॥*
कहीं यह पूजा के साधन(फूल पत्ती) बन जाती है तो कहीं स्वयं पूज्य(देवता) बन जाती है । कहीं युक्तिपूर्वक सेवा करती दिखायी देती है । कहीं मालिन बन जाती है तो कहीं स्वयं देव बन बैठती है । इस प्रकार, यह कहीं सूक्ष्म या स्थूल रूप धारण करती रहती है ॥३॥
यह तीनों लोकों में समायी हुई है । यह भाग कर कहीं दूर नहीं जायेगी । महाराज श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं – किसी को ज्ञान होने पर ही यह माया अपने वास्तविक रूप मृगजल(मृगमरीचिका) रज्जू एवं सर्प के रूप में दिखायी देती है ॥४॥
(क्रमशः)
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