#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*विनती का अँग ३४*
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*विनती सागर तरण*
दादू काया नाव समँद में, औघट१ बूडे२ आइ ।
इहिं अवसर एक अगाध३ बिन, दादू कौन सहाइ ॥३७॥
३७ - ४५ में सँसार - सागर सँतरणार्थ विनय कर रहे हैं - सूक्ष्म शरीर रूप हमारी नौका इस सँसार समुद्र के विषय - वासनासक्ति रूप दूस्तर१ स्थल में आकर डूब२ रही है । इस महान् विपत्ति के समय, त्रिविधि भेद - शून्य अपार - शक्ति - परमात्मा३ के बिना कौन सहायक हो सकता है ? अर्थात् प्राणी का सँसार से उद्धार तो एक परमात्मा ही कर सकते हैं ।
(क्रमशः)
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