गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

= *शूरातन का अंग ७१(४१/४४)* =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐 
*जब झूझै तब जाणिये, काछ खड़े क्या होइ ।*
*चोट मुँहैं मुँह खाइगा, दादू शूरा सोइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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**शूरातन का अंग ७१** 
बहु विधि मारै बहुत गुण, तोड़े तीनों साल । 
जन रज्जब सो अमर ह्वै, जीत्या अपना काल ॥४१॥ 
ज्ञान, भक्ति, वैराग्यादि नाना प्रकार के उपायों से काम क्रोधादि नाना गुणों को मारता है, कायिक, वाचिक मानसिक तीनों दु:खों को नष्ट करता है, वह अपने काल को जीतकर अमर हो जाता है । 
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पंच अपूठे१ फेरि कर, घर आणे सो शूर । 
साहिब सौं साँचा भया, रहसी सदा हजूर ॥४२॥ 
पंच ज्ञानेन्द्रियों को विषयों से उलटी१ फेरि कर परमात्मा रूप घर में लाता है वही शूर है, प्रभु के भजन द्वारा गर्भ की प्रतिज्ञा पूर्ण करके प्रभु के आगे सच्चा होता है, वह सदा प्रभु के निकट ही रहता है । 
पंचों इन्द्री निर्दली, तिन खाया संसार । 
जन रज्जब सो शूरमा, प्राण उद्धारण हार ॥४३॥ 
जिनने सब संसार को खा लिया है, उन पांचों ज्ञानेन्द्रियों को जिसने जीता है, वही प्राणीयों का उद्धार करने वाला वीर है । 
पंच पचीसों त्रिगुण मन, मेवासा१ भरा पूर । 
ये अरि व जोई दले, सो प्राणी सत शूर ॥४४॥ 
पंच ज्ञानेन्द्रिय, पच्चीस प्रकृति, तीन गुण और मन ये शत्रु शरीर रूप किले१ में पूर्ण रूप से भरे हैं इन वैरियों के दल की हानिप्रद शक्ति को जो नष्ट करता है, वही प्राणी सच्चा शूर है । 
(क्रमशः)

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