#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*विनती का अँग ३४*
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यहु तन भेरा१ भवजला२, क्यों कर लँघे तीर ।
खेवट बिन कैसे तिरै, दादू गहर गँभीर ॥३८॥
हमारा सूक्ष्म शरीर बांसों के बंधे हुये बेड़े१ के समान है । यह सँसार - समुद्र२ के विषय - वासना रूप अत्यँत घने और गँभीर जल से परमात्मा - केवट के बिना सुख से तैरता हुआ पार कैसे जा सकता है ?
(क्रमशः)
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