शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

= *शूरातन का अंग ७१(४५/४८)* =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐 
*खेलै शीश उतार कर, अधर एक सौं आइ ।*
*दादू पावै प्रेम रस, सुख में रहै समाइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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**शूरातन का अंग ७१** 
रुप्यों बिना रिपु क्यों टलै, शूर सत्य करि जोय । 
रज्जब योद्धा जीतणा, हाँसी खेल न होय ॥४५॥ 
हे वीर ! रण में पैर रोप कर रहे बिना शत्रु नहीं हटता, यह उक्ति सत्य ही समझ, योद्धाओं को जीतना हाँसी खेल तो नहीं है । 
शूरा ह्वै संग्राम चढि१, अरि इन्द्री अड़ि मार । 
जन रज्जब युध जीतिये, ज्ञान खंड्ग कर धार ॥४६॥ 
शूरवीर होकर योग संग्राम के लिये चढाई१ कर, युद्ध में रुक कर ज्ञानेन्द्रिय रूप शत्रुओं को मार ब्रह्मज्ञान रूप तलवार अन्त:करण - हाथ में धारण करके युद्ध में विजय प्राप्त कर । 
ज्ञान खडग जब कर धरै, तब अरि भरै अज्ञान । 
जन रज्जब संसार सौं, यूं पग माँडै१ प्रान२ ॥४७॥ 
जब ज्ञान तलवार अन्त:करण - हाथ में धारण करता है तब अज्ञान रूप शत्रु मरता है, इस प्रकार ज्ञान खंग के बल से ही प्राणी२ जन्मादि संसार को नष्ट करने के लिये वृति रूप पैर ब्रह्म-भूमि में रोपता१ है । 
सदगुरु के साँचे शबद, ज्ञान खंड्ग कर साहि१ । 
रज्जब रहै सनाह२ क्यों, प्रेम पाण३ दे बाहि४ ॥४८॥
हे साधक रूप नृपति१ ! सदगुरु के सच्चे शब्द रूप म्यान में स्थित ज्ञान-तलवार के प्रेम रूप धार३ लगाकर चला४ फिर अज्ञान - शत्रु का कुबुद्धि कवच२ नहीं रहेगा कट भी जायगा । 
(क्रमशः)

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