रविवार, 14 अप्रैल 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू खोई आपणी, लज्जा कुल की कार ।*
*मान बड़ाई पति गई, तब सन्मुख सिरजनहार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ जीवत मृतक का अंग)*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com

इसलिए त्यागी को आदर दिया जाता है। यह संसारी की तरकीब है त्यागी को गुफा में रखने की। भाग न सके, बस एक दफा आ गए गुफा में, निकलने न देंगे। ऐसी सूक्ष्म जंजीरें हैं। इतना शोरगुल मचाएंगे, इतना बैंडबाजा बजाएंगे, शोभा यात्रा निकालेंगे, लाखों खर्च करेंगे। लगा दी उन्होंने मुहर। अब भागने न देंगे।
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क्योंकि ध्यान रहे, जितना सम्मान दिया इतना ही अपमान होगा। सम्मान की तुलना में ही अपमान होता है। इसलिए जैन मुनि भागना बहुत मुश्किल पाता है। हिंदू संन्यासी इतना मुश्किल नहीं पाता, क्योंकि इतना सम्मान कभी किसी ने दिया भी नहीं। तो उसी मात्रा में अपमान है। अपमान उसी मात्रा में मिलता है जिस मात्रा में सम्मान ले लिया। सम्मान जंजीर बन जाता है।
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अगर सच में समझदार हैं तो कभी अपने ध्यान, अपने संन्यास के लिए किसी तरह का सम्मान न लें। क्योंकि जो सम्मान दे रहा है वह जेलर बन जाएगा। उससे कह दें, सम्मान नहीं। क्षमा करें। धन्यवाद। क्योंकि कल अगर लौटना चाहें तो कोई जंजीरें नहीं रखना चाहता अपने ऊपर। जैसा मुक्त संन्यास में आया था उतना ही मुक्त रहना चाहता हूं अगर संन्यास के बाहर मुझे जाना हो।
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कुछ तो गुफाओं में स्थूल जंजीरें बांध लेते हैं, कुछ सूक्ष्म जंजीरें; मगर जंजीरें हैं। और ये जंजीरें रोके रखती हैं। यह कोई रुकना हुआ? जंजीरों से रुके, यह कोई रुकना हुआ? आनंद से रुकें, जंजीरों से नहीं। अहोभाव से रुकें, अपमान के भय से नहीं। सम्मान की आकांक्षा से नहीं, समाधि के रस से।
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लेकिन यह तभी संभव होगा जब संसार का रस चुक गया हो। इसलिए कच्चे न भागना। अधूरे—अधूरे न भागना। बीच से मत उठ आना महफिल से। महफिल पूरी हो जाने दें। यह गीत पूरा सुन ही लें, इसमें कुछ सार नहीं है।
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घबड़ाना कुछ है भी नहीं। यह नाच पूरा हो ही जाने दें। कहीं ऐसा न हो कि घर जाकर सोचने लगें कि पता नहीं...। यह कहानी पूरी हो जाने दें। अंतिम परदा गिर जाने दें। कहीं ऐसा न हो कि बीच से उठ जावें और फिर मन पछताएं और मन सोचे कि पता नहीं, असली दृश्य देखने को रह ही गए हों। अभी तो कहानी शुरू ही हुई थी। पता नहीं अंत में क्या आता है।
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इसलिए जीवन को जीएं। भरपूर जीएं। डर कुछ भी नहीं है, क्योंकि वासना दुष्‍पूर है। इसीलिए यह कहा जा रहा है कि चूंकि वासना दुष्‍पूर है, लाख जीयो, आज नहीं कल संन्यासी बनोगे। संन्यास से बचने का उपाय नहीं है।

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