गुरुवार, 2 मई 2019

= *ज्ञान परीक्षा का अंग ७४(१/४)* =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*सूरज फटिक पाषाण का, तासौं तिमिर न जाइ ।*
*साचा सूरज परगटै, दादू तिमिर नशाइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*ज्ञान परीक्षा का अंग ७४* 
इस अंग में ज्ञान की परीक्षा संबंधी विचार कर रहे हैं ~ 
साँचे झूठे ज्ञान का, पाया पारिख भाग । 
रज्जब राग अनंत हैं, पर दीवा दीपक जाग ॥१॥ 
राग तो अनंत हैं किन्तु दीपक तो दीपक राग से ही जागता है वैसे ही ज्ञान तो अनंत हैं किन्तु ब्रह्म साक्षात्कार तो यथार्थ ब्रह्म-ज्ञान से होता है, इस प्रकार सच्चे ज्ञान तथा मिथ्या ज्ञान का मार्ग परीक्षकों ने परीक्षा द्वारा ज्ञान लिया जाता है जिससे ब्रह्म का साक्षात्कार हो वही सच्चा ज्ञान मार्ग है, शेष मिथ्या है । 
रज्जब पन्नग१ पतंग नर, पंख ज्ञान परकाश । 
एक सु रिधि२ दीपक पतन, इक स्रक३ साँई पास ॥२॥ 
पंख, पतंग तथा सर्प१ दोनों को आते हैं, उनमें पंतग तो दीपक प्रकाश में जलकर मर जाता है और सर्प चन्दन३ वृक्ष पर जाकर उसके लिपट जाता है उसकी शीतलता से सर्प की विषाग्नि शान्त होकर उसे शांती मिलती है, वैसे ही नरों का दो प्रकार का ज्ञान होता है मिथ्या और यथार्थ, धारण रहित मिथ्या ज्ञान वाला नर माया२ में फंसकर नष्ट हो जाता है, और धारण सहित यथार्थ ज्ञान वाला नर ब्रह्म को प्राप्त होकर ब्रह्म रूप ही हो जाता है । 
रज्जब रसना१ कह गहे, ज्ञान खड़्ग षट् खान२ । 
प्राण३ पईसा४ ले उठै, सो कोउ और हि पान५ ॥३॥ 
जैसे ६ सरदार२ हाथों में तलवार लेकर खड़े हो जाँय किन्तु उनमें मरना स्वीकार करके धन को ले जाय ऐसा तलवार चलाने वाला हाथ५ कोई और ही होता है, ऐसा होता है वही वीर कहलाता है, वैसे ही ६ सिद्धान्त वादी षड् दर्शन रूप तलवारें जिह्वा१ रूप हाथों में लिये हैं अर्थात मुख से ज्ञान सुनाते रहते हैं, किन्तु अपने जीवात्मा३ रूप धन४ को सांसारिक भोग वासना रूप स्थान से लेकर संसार से उठ जाय, अर्थात ब्रह्म को प्राप्त हो जाय ऐसा जिह्वा रूप हाथ कोई और ही होता अर्थात जैसा वाणी से कथन करे वैसा ही धारण युक्त ज्ञान वाला कोई विरला ही होता है और वही ब्रह्म को प्राप्त होता है, उसी का ज्ञान यथार्थ है, बाकि ज्ञान मिथ्या हैं । 
जो गति काढै मांड सौं, ले राखै हरि थान । 
रज्जब बिच उलझै नहीं, सोई उत्तम ज्ञान ॥४॥ 
जो बुद्धि को ब्रह्माण्ड की भोग - वासनाओं से निकाल कर ब्रहमरूप स्थान में रखता है, बीच के सिद्धि आदि चमत्कारों में नहीं फँसने देता है वही उत्तम ज्ञान है । 
(क्रमशः)

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