गुरुवार, 2 मई 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू आप छिपाइये, जहाँ न देखै कोइ ।*
*पीव को देख दिखाइये, त्यों त्यों आनन्द होइ ॥*
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साभार ~ @Raj Gupt

मैं कैसे भवसागर पार करूं? नौका है टूटी-फूटी, पतवारें हाथ में नहीं, सागर विशाल है और मेरी सामर्थ्य अति सीमित। कहीं मध्य में ही डूब तो न जाऊंगा?
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पहली बात, डूबने की कला ही भवसागर को पार करने की कला है। जो डूबने को तैयार हैं वे ही भवसागर के पार होते हैं। जो डूबते हैं उन्हीं को किनारा मिलता है। इसलिए तुम यह मत पूछो कि कहीं मैं डूब तो न जाऊंगा? डूबने से डरे, तो चूक जाओगे। डूबने से डरे तो इसी किनारे पर अटके रह जाओगे। डूबने से डरे, तो अहंकार को बचा रहे हो, और क्या कर रहे हो?
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डूबने का क्या अर्थ है? शरीर तो एक दिन मौत ले लेगी, डूबेगा। अब मन बचता है, चाहो तो बचा लो। बचा लोगे तो नये शरीर को ग्रहण कर लेगा। फिर नयी नौका में बैठ जायेगा। फिर भवसागर की यात्रा शुरू हो जाएगी। मन को बचाया तो नये गर्भ में प्रवेश कर जाओगे। देह तो चढ़ जाती है चिता पर, मन जल्दी से नये गर्भ में प्रवेश कर जाता है।
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डूबने से मेरा क्या अर्थ है? डूबने से मेरा अर्थ है: शरीर तो अपने-आप मृत्यु ले लेगी, तुम अपने मन को ध्यान में डुबा दो। जैसे शरीर चिता पर जल जायेगा, ऐसे तुम अपने मन को साक्षी में जला दो। न बचे शरीर न बचे मन, फिर जो शेष रह जायेगा, तुम्हारे भीतर का आकाश--वही मोक्ष है, वही मुक्ति है। हो गये पार। मध्य में डूबो तो पार हो जाओ।
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जब तक हो, गाओ गीत ! जब तक हो, उठाओ प्रार्थना ! जब तक हो, बहने दो अर्चना ! और जब डूब जाओ तो आनंदमग्न लीन हो जाना सागर में। बचाव की सोचो ही मत। डरो मत। 
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जीसस का प्रसिद्ध वचन है: जो बचायेंगे वे खो जाएंगे। और जो खोने को राजी हैं वे बच गये। विरोधाभासी दीखता यह वचन अदभुत है, अपूर्व है। यह समस्त ध्यानियों की आधारशिला है। यही नाव है जिसमें बैठो। मिट जाओ तो बच जाओगे। पोंछ दो अपने को। बचाने की किंचित भी चिंता न करना, क्योंकि जितने तुम बचोगे उतना ही तुम्हारे और परमात्मा के बीच अवरोध रह जाएगा। 
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जब तुम बिलकुल नहीं होते हो तो परमात्मा पूरा का पूरा प्रगट होता है। तुम्हारे न होने में उसका होना है। तुम्हारे होने में उसका न होना है। और यहां है भी क्या खोने को? हमारे पास है भी क्या? कुछ लेकर आये न थे, कुछ लेकर जाएंगे नहीं। खाली हाथ आये खाली हाथ जाएंगे। इस बीच के पड़ाव पर थोड़ा शोरगुल मचा लिया है, मकान बना लिया है, थोड़ा धन इकट्ठा कर लिया है, बैंक में बैलेंस जमा करवा दिया है। मगर यह सब बीच का खेल है; एक सपने से ज्यादा इसका मूल्य नहीं है।
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सपना मैं किसे कहता हूं? सपना मैं उसे कहता हूं, जो मौत छीन लेगी। जिस चीज को भी मौत छीन लेगी, वह सपना है। चाहे तुम सत्तर साल देखो, इससे क्या फर्क पड़ता है? सात घंटे देखो रात में कि सत्तर साल देखो दिन में, कोई फर्क नहीं पड़ता। निर्णायक कसौटी मौत है। जो मौत तुमसे छीन लेगी वह तुम्हारा नहीं था--उसके लिए तुम नाहक परेशान थे। उसके लिए तुम नाहक बचा रहे थे। उसके लिए तुम नाहक उपाय और आयोजन कर रहे थे। वह तो छिनेगा।
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दे दो ! तुम्हारा है क्या? बचाते क्या हो? बचाना क्या है? डूबो ! डूब जाना है। जैसे सरिता सागर में डूब जाती है, ऐसे डूब जाओ। और स्मरण रखो, सरिता सागर में डूबकर सागर हो जाती है।

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