शनिवार, 27 जुलाई 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #४४४

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४४४)*
*राग धनाश्री ॥२७॥**(गायन समय दिन ३ से ६)*
============
*४४४.*
*तेरी आरती ए, जुग जुग जै जै कार ॥टेक॥*
*जुग जुग आत्म राम, जुग जुग सेवा कीजिये ॥१॥*
*जुग जुग लंघे पार, जुग जुग जगपति को मिले ॥२॥*
*जुग जुग तारणहार, जुग जुग दरसन देखिये ॥३॥*
*जुग जुग मंगलचार, जुग जुग दादू गाइये ॥४॥*
*इति राग धनाश्री संपूर्ण ॥२७॥*
*॥ इति श्री दादूदयालजी महाराज की वाणी संपूर्ण समाप्त ॥*
.
हे निरंजन देव ! आपकी आरती स्तुति हरेक युग में भक्त लोग जय-जयकार-पूर्वक करते ही रहते हैं । प्रतियुग में जीवात्मा परमात्मा को भजता हुआ उसकी भक्ति करता रहता है और हरेक युग में उनकी आरती करने वाले संसार से पारंगत होते आ रहे हैं ।
.
हरेक युग में विश्व के अधिपति राम के साथ भक्त लोग मिलते ही रहते हैं । भगवान् भी अपने भक्तों को हर युग में तारते रहते हैं । अतः उसका हर युग में दर्शन करते रहना चाहिये और हर युग में भक्तों को चाहिये कि उनके यश को गाते रहें । अर्थात् भगवान् का हर समय स्तुति कीर्तन करते ही रहना चाहिये ।
.
भागवत में लिखा है कि –
भक्तजन आपके चरित्र का बार-बार श्रवण, गान, कीर्तन एवं स्मरण करके आनन्दित होते रहते हैं । वे ही अविलम्ब आपके उस चरण-कमल का दर्शन कर पाते हैं । जो जन्म-मृत्यु के प्रवाह को सदा के लिये रोक देता है । हे परीक्षित् ! अब तुम्हारा मृत्यु का समय आ गया है, अब सावधान हो जावो ।
.
पूरी शक्ति से अन्तःकरण की वृत्तियों से भगवान् श्री कृष्ण को अपने हृदय में स्थित कर लो । ऐसा करने से अवश्य ही तुम्हें परम भक्ति प्राप्त होगी । जो लोग मृत्यु के निकट आ रहे हैं, उन्हें सब प्रकार से परमैश्वर्यशाली भगवान् का ही ध्यान करना चाहिये । हे प्रिय परीक्षित् ! सबके परम आश्रय और सर्वात्मा भगवान् अपना ध्यान करने वाले को अपने स्वरूप में लीन कर लेते हैं ।
.
इति राग धनाश्री का पं, आत्मारामस्वामीकृत भाषानुवाद समाप्त ॥२७॥
इति श्री दादूवाणी की भावार्थदीपिका संस्कृत-हिन्दी टीका समाप्त ॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें