रविवार, 11 अगस्त 2024

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*🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷*
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*दादू उद्यम औगुण को नहीं,*
*जे कर जाणै कोइ ।*
*उद्यम में आनन्द है, जे सांई सेती होइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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मेरे हिसाब में #धन होना चाहिए, जरूर होना चाहिए। पूरा श्रम करो धन पाने के लिए। लेकिन धन पाने में ही धन का अंत नहीं है। जब धन मिल जाए तो तुम्हारे पास सुविधा है। सब संगीत खोजो, अब साहित्य खोजो, अब धर्म खोजो। अब तुम्हारे पास धन ने व्यवस्था दे दी है कि तुम एक घर में पूजागृह बना सकते हो।
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अब तुम एक घड़ीभर को शांत बैठकर चुप हो सकते हो। तुम एक घड़ीभर नाच सकते हो। अब नाचो ! अब गाओ ! और तुम चकित हो जाओगे कि तुम्हारे धन में भी सार्थकता आ गई तुम्हारे ध्यान के कारण। तुम्हारा धन भी काम आ गया। इस जगत् में बाहर हमें जो भी मिल सकता है वह सब साधन है, साध्य भीतर है। और ध्यान रखना, यह तो कभी पूछना ही मत कि साध्य किसलिए ? क्योंकि साध्य का मतलब ही होता है, जो अंतिम है। वह किसी चीज का और साधन नहीं है; जो आखिरी है।
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परमात्मा अंतिम है। इसलिए परमात्मा को तुम किसी और चीज का साधन नहीं बना सकते। सभी चीजें उसके लिए साधन बना लेनी हैं। देह भी उसी के साधन में लगा देनी है, धन भी लगा देना है, जीवन भी लगा देना है, मन भी लगा देना है, हृदय भी लगा देना है। विचार, भावनाएं, सब उसी पर समर्पित कर देनी हैं। लेकिन यह तो भूलकर मत पूछना कि उसका क्या उपयोग है ? क्योंकि वह जो अंतिम है।
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अंतिम साध्य को ही हम परमात्मा कहते हैं——जिसके लिए सब किया जाता है और जिसमें हम आनंद की डुबकी लगाते हैं। तुमने कभी पूछा, आनंद का सार क्या है ? आनंद का सार आनंद। प्रेम का सार क्या है ? प्रेम का सार प्रेम। लेकिन धन का सार धन नहीं है। धन का तो कुछ उपयोग करना पड़ेगा तो सार है। नहीं तो तुम्हारे पास धन था कि नहीं था, बराबर था।
ओशो

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