रविवार, 29 सितंबर 2024

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*दादू राता राम का, पीवै प्रेम अघाइ ।*
*मतवाला दीदार का, मांगै मुक्ति बलाइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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रवींद्र नाथ की मृत्यु आई, उसके दो दिन पहले उन्होंने कहा - उन्होंने कहा कि हे परमात्मा, मैं कितना अनुगृहीत हूं, कैसे कहूं ! तूने मुझे जीवन दिया, जिसे जीवन पाने की कोई भी पात्रता न थी। तूने मुझे श्वासें दीं, जिसके श्वास पाने का कोई अधिकार न था। तूने मुझे सौन्दर्य के, आनंद के अनुभव दिए, जिनके लिए मैंने कोई भी कमाई न की थी। तो मैं धन्य रहा हूँ तेरे बोझ से, अनुग्रह के बोझ से दब गया हूँ। 
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और अगर तेरे इस जीवन में मैंने कोई दुख पाया हो, कोई पीड़ा पाई हो, तो वह मेरा कसूर रहा होगा। तेरा जीवन तो बहुत बहुत आनन्दपूर्ण था। वह मेरी कोई भूल रही होगी। तो मैं नहीं कहता तुझसे कि मुक्ति दे दे जीवन से। अगर तू मुझे फिर से योग्य समझे तो बार-बार मुझे जीवन में भेज देना। तेरा जीवन अत्यंत आनन्दपूर्ण था और मैं अनुगृहीत हूं।
ओशो

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