रविवार, 29 सितंबर 2024

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*🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷*
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*जहाँ थैं मन उठ चलै, फेरि तहाँ ही राखि ।
तहँ दादू लै लीन कर, साध कहैं गुरु साखि ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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मुझे एक तिब्बती संत #मारपा का स्मरण आता है।
जब वह ज्ञान को उपलब्ध हुआजब वह बुद्ध हुआ, जब उसने अंतराकाश का अनंत का साक्षात्कार किया--तो किसी ने उस से पूछा : मारपा, अब कैसे हो ? तो मारपा ने जो उत्तर दिया वह अपूर्व है, अप्रत्याशित है। अब तक किसी बुद्ध ने वैसा नहीं दिया था। मारपा ने कहा पहले जैसा ही दुःखी। वह आदमी तो भौचक्का रह गया, उसने पूछा : पहले जैसा ही दुखी ?
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लेकिन मारपा हंसा, उसने कहा : हां लेकिन एक फर्क के साथ। और फर्क यह है कि अब मेरा दुःख स्वैच्छिक है। अब मैं कभी कभी संसार का स्वाद लेने के लिए अपने से बाहर चला जाता हूँ। मैं किसी भी क्षण भीतर लौट सकता हूं। दोनों ध्रुवों के बीच गति कर सकता हूं। कभी मैं दुःखों में लौट जाता हूँ। लेकिन अब दुःख मुझमें घटित नहीं होते हैं, मैं ही उन्हें घटित करता हूं। और मैं उनसे अछूता रहता हूँ।
ओशो

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