शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2024

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*दादू शब्दैं ही मुक्ता भया, शब्दैं समझे प्राण ।*
*शब्दैं ही सूझे सबै, शब्दैं सुरझे जाण ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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एक आदमी मेरे पास आया और उसने मुझे आकर कहा, कि मैं बहुत अशांत हूं। शांति का कोई रास्ता बताइए। मेरे पैर पकड़ लिए। मैंने कहा, पैर से दूर रखो हाथ। क्योंकि मेरे पैरों से तुम्हारी शांति का क्या संबंध हो सकता है ? सुना नहीं कहीं और मेरे पैर को कितने ही काटो-पीटो, कुछ पता नहीं चलेगा कि तुम्हारी शांति मेरे पैर में कहां।
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वह आदमी बहुत चौंका। उसने कहा, आप थे, क्या बात कहते हैं ! मैं ऋषिकेश गया वहां शांति नहीं मिली। अरविंद आश्रम गया वहां शांति नहीं मिली। अरुणाचल हो कर आया। रमण के आश्रम में चला गया वहां शांति नहीं मिली। कहीं शांति नहीं मिली। सब ढोंग-धतूरा चल रहा है। किसी ने मुझे आपका नाम लिया, तो मैं आपके पास आया हूं।
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मैंने कहा, तुम उठो दरवाजे के एकदम बाहर हो जाओ। नहीं तो तुम जाकर कल यह भी कहोगे, वहां भी गया, वहां भी शांति नहीं मिली। और मजा यह है कि जब तुम अशांत हुए थे, तुम किस आश्रम में गए थे ? किस गुरु से पूछने गए थे अशांत होने के लिए ? तुमने किससे शिक्षा ली थी अशांत होने की ? मेरे पास आए थे ? किसके पास गए थे पूछने कि मैं अशांत होना चाहता हूं ? गुरुदेव, अशांत होने का रास्ता बताइए ?
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अशांत सज्जन आप खुद हो गए थे, अकेले काफी थे। और अब शांत नहीं हैं, जैसे कि हमने आपको अशांत किया हो ? आप हमसे पूछने आए थे ? नहीं-नहीं, आपसे तो पूछने नहीं आया। किससे पूछने गए थे ? किसी से पूछने नहीं गए। तो मैंने कहा, ठीक से समझने की कोशिश करो, कि खुद अशांत हो गए हो, कैसे हो गए हो, किस बात से हो गए हो, उसकी खोज करो। पता चल जाएगा, इस बात से हो गए। वह बात करना बंद कर देना। शांत हो जाओगे। शांत होने की कोई विधि थोड़े ही होती है।
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अशांत होने की विधि होती है। और अशांत होने की विधि जो छोड़ देता है, वह शांत हो जाता है। मुक्त होने का कोई रास्ता थोड़े ही होता है। अमुक्त होने का रास्ता होता है। बंधने की तरकीब होती है। जो नहीं बंधता, वह मुक्त हो जाता है।
जीवन संगीत ~ ओशो

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