गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024

नरेन्द्र आदि भक्तों के संग में

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*जब तत्त्वहिं तत्त्व समाना,*
*जहँ का तहँ ले साना ॥*
*जहाँ का तहाँ मिलावा,*
*ज्यों था त्यों होइ आवा ॥*
*संधे संधि मिलाई, जहाँ तहाँ थिति पाई ॥*
*सब अंग सबही ठांहीं, दादू दूसर नांहीं ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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परिच्छेद १३८~नरेन्द्र के प्रति उपदेश
(१)नरेन्द्र आदि भक्तों के संग में
श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ काशीपुर के बगीचे में हैं । शरीर बहुत ही अस्वस्थ है, परन्तु सदा ही व्याकुल भाव से ईश्वर के निकट भक्तों की कल्याणकामना किया करते हैं । आज शनिवार है, चैत्र की शुक्ला चतुर्दशी, १७ अप्रैल १८८६ । पूर्णिमा लग गयी है ।
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कुछ दिनों से नरेन्द्र लगातार दक्षिणेश्वर जा रहे हैं । वहाँ पंचवटी में ईश्वर-चिन्तन, ध्यान-साधना आदि किया करते हैं । आज शाम को वे लौटे, साथ में श्रीयुत तारक और काली भी हैं ।
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रात के आठ बजे का समय होगा । चाँदनी और दक्षिणी वायु ने उद्यान को और भी मनोहर बना दिया है । भक्तों में से कितने ही नीचे के कमरे में बैठे हुए ध्यान कर रहे हैं । नरेन्द्र मणि से कह रहे हैं - 'ये लोग अब छूट रहे हैं, (अर्थात् ध्यान करते हुए उपाधियों से मुक्त हो रहे हैं) ।
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कुछ देर बाद मणि ऊपरवाले कमरे में श्रीरामकृष्ण के पास जाकर बैठे । श्रीरामकृष्ण ने उनसे पीकदान और अँगौछे धो लाने के लिए कहा । वे पश्चिमवाले तालाब से चन्द्रमा के प्रकाश में सब धोकर ले आये ।
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दूसरे दिन सबेरे श्रीरामकृष्ण ने मणि को बुला भेजा । गंगास्नान करके श्रीरामकृष्ण के दर्शन करने के पश्चात् वे छत पर गये हुए थे ।
उनकी स्त्री पुत्र के शोक से पागल हो रही है । श्रीरामकृष्ण ने उसे बगीचे में आकर प्रसाद पाने के लिए कहा ।
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श्रीरामकृष्ण इशारे से बतला रहे हैं - “उसे यहाँ आने के लिए कहना । गोद में जो लड़का है, उसे भी ले आवे, - और यहाँ आकर भोजन करे ।"
मणि - जी । ईश्वर पर उसकी भक्ति हो तो बहुत अच्छा है ।
श्रीरामकृष्ण इशारा करके बतला रहे हैं - "नहीं, शोक भक्ति को हटा देता है । और इतना बड़ा लड़का था !
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“कृष्णकिशोर के भवनाथ की तरह दो लड़के थे, युनिवर्सिटी की दो-दो परीक्षाएँ पास की थीं । जब उनका देहान्त हुआ, तब कृष्णकिशोर इतना बड़ा ज्ञानी, परन्तु फिर भी सम्हल न सका ! मुझे ईश्वर ही ने नहीं दिया, मेरा भाग्य !
"अर्जुन इतना बड़ा ज्ञानी था, साथ कृष्ण थे । फिर भी अभिमन्यु के शोक से बिलकुल अधीर हो गया ।
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“किशोरी भला क्यों नहीं आता ?"
एक भक्त - वह रोज गंगा नहाने जाया करता है ।
श्रीरामकृष्ण - यहाँ क्यों नहीं आता ?
भक्त - जी, आने के लिए कहूँगा ।
श्रीरामकृष्ण - (लाटू से) - हरीश क्यों नहीं आता ?
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मास्टर के घर की ९-१० साल की दो लड़कियाँ श्रीरामकृष्ण को गाना सुना रही हैं । इन लड़कियों ने उस समय भी श्रीरामकृष्ण को गाना सुनाया था, जब श्रीरामकृष्ण मास्टर के श्यामपुकुर के तेलीपारावाले मकान में पधारे थे । श्रीरामकृष्ण उनका गाना सुनकर बहुत ही सन्तुष्ट हुए थे । श्रीरामकृष्ण के पास गाना हो जाने पर भक्तों ने लड़कियों को नीचे बुलाकर फिर गवाया ।
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श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - अपनी लड़कियों को अब गाना मत सिखाना । आप ही आप ये गावें तो और बात है । जिस-तिस के पास गाने से लज्जा जाती रहेगी । स्त्रियों के लिए लज्जा बड़ी आवश्यक है ।
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श्रीरामकृष्ण के सामने पुष्पपात्र में फूल-चन्दन लाकर रखा गया । श्रीरामकृष्ण पलंग पर बैठे हुए हैं । फूल-चन्दन से वे अपनी ही पूजा कर रहे हैं । सचन्दन पुष्प कभी मस्तक पर धारण कर रहे हैं, कभी कण्ठ में, कभी हृदय में और कभी नाभिस्थल में ।
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मनोमोहन कोन्नगर से आये । श्रीरामकृष्ण को प्रणाम कर आसन ग्रहण किया । श्रीरामकृष्ण अब भी अपनी पूजा कर रहे हैं । अपने गले में उन्होंने फूलों की माला डाल ली ।
कुछ देर बाद मानो प्रसन्न होकर मनोमोहन को निर्माल्य प्रदान किया । मणि को भी एक फूल दिया ।
(क्रमशः)

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