गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024

*श्री रज्जबवाणी, समता निदान का अंग १०*

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*सबै सयाने कह गये, पहुँचे का घर एक ।*
*दादू मार्ग माहिं ले, तिन की बात अनेक ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साँच का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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समता निदान का अंग १०
जैन जोग अरु शेख सन्यासी, 
सु भक्त बौद्ध भगवंत हि धावैं१ ।
बोवत बीज परै धर क्यों हूं, 
अंकूर उदै होय ऊंचे ही आवैं ॥
नौ कुली नाग परे नव खंड में, 
पंख लहैं सोइ चंदन जावैं ।
दशों दिशि नीर बहैं सरिता सब, 
रज्जब सोइ समुद्र समावैं ॥१॥
अंत में सब में समता आती है और समता से ही प्रभु प्राप्त होते हैं, यह कह रहे हैं -
जैन जोगी, शेख सन्यासी, भक्त, बौद्ध ये सब नाना भेद रखते हुये भी भगवत उपासना में सम हैं ।
बीज बोते समय पृथ्वी पर कैसे भी पड़ें अंकुर तो सब का निकल कर आकाश की ओर ऊंचा ही जाता है ।
पृथ्वी के नौ खंडों में नव प्रकार के कुल वाले सर्प पड़े हैं किंतु पंख प्राप्ति रूप समता को प्राप्त होते हैं वे ही चंदन पर जाते हैं ।
दशों दिशाओं की सब नदियों में जल बहता है किंतु अंत में समुद्र में मिल कर सब सम हो जाता है । वैसे ही प्रभु प्राप्ति के मार्ग में सब सब सम हो जाते हैं ।
(क्रमशः)

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