शनिवार, 16 नवंबर 2024

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*दादू बँध्या जीव है, छूटा ब्रह्म समान ।*
*दादू दोनों देखिये, दूजा नांही आन ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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मनुष्य के पास विवेक है, लेकिन बंधन में है ! और जिसका विवेक बंधन में है, वह सत्य तक नहीं पहुंच सकता। हमें सोच लेना है-एक-एक व्यक्ति को सोच लेना है कि हमारा विवेक बंधन में तो नहीं है ? अगर मन में कोई भी सम्प्रदाय है, तो विवेक बंधन में है। अगर मन में कोई भी शास्त्र है, तो विवेक बंधन में है। अगर मन में कोई भी महात्मा है, तो विवेक बंधन में है। 
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और जब मैं ऐसा कहता हूं तो लोग सोचते हैं, शायद मैं महात्माओं और महापुरुषों के विरोध में हूं। मैं किसी के विरोध में क्यों होने लगा ? मैं किसी के भी विरोध में नहीं हूं। बल्कि सारे महापुरुषों का काम ही यही रहा है कि आप बंध न जायें। सारे महापुरुषों की आकांक्षा यही रही है कि आप बंध न जायें। और जिस दिन आपके बंधन गिर जायेंगे, तो आपको पता चलेगा कि आप भी वही हो जाते हैं, जो महापुरुष हो जाते हैं।

महापुरुष मुक्त हो जाता है, और हम अजीब पागल लोग हैं, हम उसी मुक्त महापुरुष से बंध जाते हैं ! समस्त वाद बांध लेते हैं। वाद से छूटे बिना जीवन में क्रांति नहीं हो सकती। लेकिन यह खयाल भी नहीं आता कि हम बंधे हुए लोग हैं।
ओशो

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