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*हमहीं हमारा कर लिया, जीवित करणी सार ।*
*पीछे संशय को नहीं, दादू अगम अपार ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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सुकरात को जहर दे कर मारा गया। अदालत ने सुकरात से कहा कि अगर तुम एक वचन दे दो कि तुम सत्य का प्रचार नहीं करोगे-जिसको तुम सत्य कहते हो, उसका प्रचार नहीं करोगे, चुप रहोगे-तो यह मृत्यु बचाई जा सकती है। हम तुम्हे माफ कर दे सकते हैं।
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सुकरात ने कहा, जीवन को तो मैं देख चुका। सब कोनों से पहचान लिया। पर्त-पर्त उघाड़ ली। और अगर मुझे जीने का मौका दिया जाए, तो मैं एक काम के लिए जीना चाहूंगा कि दूसरे लोगों को भी जीवन का सत्य पता चल जाए। और तो अब कोई कारण न रहा। मेरी तरफ से जीवन का काम पूरा हो गया। पकना था, पक चुका। मेरी तरफ से तो मृत्यु में जाने में कोई अड़चन नहीं है। वस्तुतः मैं तो जाना चाहूंगा। क्योंकि जीवन देख लिया, मृत्यु अभी अनदेखी पड़ी है।
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जीवन तो पहचान लिया, मृत्यु से अभी पहचान नहीं हुई। जीवन तो ज्ञात हो गया, मृत्यु अभी अज्ञात है, रहस्यमय है। उस मंदिर के द्वार भी खोल लेना चाहता हूं। मेरे लिए तो मैं मरना ही चाहूंगा, जानना चाहूंगा-मृत्यु क्या है? यह प्रश्न और हल हो जाए। जीवन क्या है, हल हो चुका। एक द्वार बंद रह गया है; उसे भी खोल लेना चाहता हूं।
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और अगर मुझे छोड़ दिया जाए जीवित, तो मैं एक ही काम कर सकता हूं-और एक ही काम के लिए जीना चाहूंगा-और वह सत्य यह कि जो मैंने देखा है वह दूसरों को दिखाई पड़ जाए। अगर इस शर्त पर आप कहते हैं की सत्य बोलना बंद कर दूं तो जीवित रह सकता हूं, तो फिर मुझे मृत्यु स्वीकार है। मृत्यु सुकरात ने स्वीकार कर ली। जब उसे जहर दिया गया, वह जहर पीकर लेट गया।
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मित्र रोने लगे शिष्य दहाड़ने लगे पीड़ा में; आंसुओं की धारें बह गई। सुकरात ने आंख खोलीं और कहा की यह वक्त रोने का नहीं। मैं चला जाऊं, फिर रो लेना। फिर बहुत समय पड़ा है। ये क्षण बड़े कीमती हैं। कुछ रहस्य की बातें तुम्हें और बता जाऊं। जीवन के संबंध में तुम्हें बहुत बताया, अब मैं मृत्यु में गुजर रहा हूं, धीरे धीरे प्रवेश हो रहा है। सुनो !
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मेरे पैर ठन्डे हो गए हैं; पैर मर चुके हैं। जहर का प्रभाव हो गया। मेरी जांघ शून्य होती जा रही है। अब मैं पैरों का कोई अनुभव नहीं कर सकता, हिलाना चाहूं तो हिला नहीं सकता। वहां से जीवन विदा हो गया। लेकिन आश्चर्य ! मेरे भीतर जीवन में जरा भी कमी नहीं पड़ी है। मैं उतना ही जीवित हूं। जांघें सो गई, शून्य हो गई।
सुकरात ने अपने शिष्य को कहा, क्रेटो, तू जरा चिउंटी लेकर देख मेरे पैर पर। उसने चिउंटी ली। सुकरात ने कहा, मुझे पता नहीं चलता। पैर मुर्दा हो गए। आधा शरीर मर गया। लेकिन मैं तो भीतर अभी भी पूरा का पूरा अनुभव कर रहा हूं ! हाथ ढीले पड़ गए। हाथ उठते नहीं। गर्दन लटक गई।
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आखिरी क्षण में भी, आंख जब बंद होने लगी, तब भी उसने कहा कि मैं तुम्हें एक बात कहे जाता हूं, याद रखना: करीब-करीब सब मर चुका है, आखिरी किनारा रह गया है हाथ में, लेकिन मैं पूरा का पूरा जिंदा हूं, मृत्यु मुझे छू नहीं पाई है।
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जिसने जीवन को जान लिया, वह मृत्यु को जानने को उत्सुक होगा। क्योंकि मृत्यु जीवन का दूसरा पहलू है; छिपा हुआ हिस्सा है। चांद की दूसरी बाजू है, जो कभी दिखाई नहीं पड़ती।
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ओशो; सब सयाने एक मत
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