*🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷*
*🌷🙏 卐 सत्यराम सा 卐 🙏🌷*
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*अन्तर सुरझे समझ कर, फिर न अरूझे जाइ ।*
*बाहर सुरझे देखतां, बहुरि अरूझे आइ ॥*
=============
*साभार ~ @Subhash Jain*
.
एक मित्र मेरे पास आए और मुझसे बोले कि मुझे शांति चाहिए। ऋषिकेश हो आया, अरविंद आश्रम गया, रमन आश्रम गया, कहीं शांति नहीं मिली। सब धोखा है। किसी ने मुझे आपका नाम लिया, यहां मैं आया हूं। मैंने कहाः आप अभी पहले ही चले जाएं, नहीं तो मैं भी धोखा सिद्ध होने वाला हूं।
.
उन्होंने कहाः क्यों ? मैंने कहाः आप अशांति सीखने किसके पास गए थे ? अरविंद आश्रम गए थे, रमन आश्रम गए थे, कहां गए थे ? अशांति सीखने कहीं भी नहीं गए थे। तो यह और अशांति बढ़ाएगी। एक अशांत आदमी माला जप रहा है, यह माला जपना और न्यूरोटिक करेगा उसे, क्योंकि वह है तो अशांत, अशांत कुछ भी करे, तो अशांति मिटेगी नहीं बढ़ेगी।
.
सवाल शांति को पाने का नहीं है, सवाल अशांति को देखने का है कि मैं कैसे अशांति पैदा करता हूं ? हिरोशिमा कैसे पैदा हो जाता है ? हिंदुस्तान-पाकिस्तान कैसे पैदा हो जाते हैं ? महाराष्ट्र में असुर कैसे पैदा हो जाते हैं ? ब्राह्मण-शूद्र कैसे पैदा हो जाते हैं ? गरीब-अमीर कैसे पैदा हो जाता है ? उसे भीतर देखना है हमें। और वह देखने के लिए मेरी जो समझ है, दमन एक बुनियादी कारण रहा आदमी को अशांत करने का, एक।
.
दूसरी बात, अब तक हमने आदमी को सुख की जगह दुख को वरन करने की शिक्षा दी है। सब आदमियों को हम यह सिखाते हैं कि दुख को वरन करना बड़ी कीमती बात है। अगर मैं नंगा खड़ा हो जाऊं तो ज्यादा कीमती आदमी हूं। एक दफा खाना खाऊं और ज्यादा कीमती आदमी हूं। कांटों पर लेट जाऊं और ज्यादा कीमती आदमी हूं।
.
दुख को वरन करना, स्वेच्छा से स्वीकार करना बड़ी ऊंची बात है। लेकिन ध्यान रहे, जो आदमी भी दुख को वरन करने की आदत बनाएगा, वह जाने-अनजाने दूसरे के दुख के प्रति पहले से इनसेंसिटिव हो जाएगा। इसलिए हिंदुस्तान के संन्यासी और साधु हिंदुस्तान के दुख और दारिद्रय और दीनता के प्रति बिल्कुल ही बेपरवाह रहे। उसका कारण है कि वे तो दुखों को ही वरन किए हुए बैठे हैं, तो आप गरीब हो तो कोई बड़ी बात है, आपसे ज्यादा गरीब तो वे अपने हाथ से हैं।
.
अगर आपको खटिया मिलती है सोने को तो मजे से सोओ, हम तो कांटों पर सो रहे हैं। हम तो कांटा बिछाए हुए है, तुम हो क्या ? तुम्हारी गरीबी तो बड़ी अमीरी है, तुम तो बड़े सुख भोग रहे हो, तुम झोपड़े में हो। और हर्जा क्या है ? और हम तो झाड़ के नीचे पड़े हुए हैं। हिंदुस्तान के महात्माओं और साधु-संन्यासियों में एक इनसेंसिटिव और डल माइंड पैदा हुआ है। उसका कारण यह था कि दुख का वरन।
.
और सारी दुनिया में वह खयाल रहा कि दुख को वरन करो। जब दुख को आप वरन करते हैं, तो पहला परिणाम तो यह होता है कि दुख के प्रति संवेदना आपकी कम हो जाती है, और यह बड़ी खतरनाक बात है। क्योंकि जो आदमी दुख के प्रति संवेदना जिसकी कम हो गई है, वह युद्ध के प्रति संवेदना कम हो जाएगी, उसकी हिंसा के प्रति, जो हो रहा है हो रहा है।
.
दूसरी बात है, जो आदमी दुख को स्वीकार कर लेता है और दुख को आदर देता है, ग्लोरीफाई करता है, वह आदमी जाने-अनजाने दूसरे को दुख देने के उपाय खोजेगा। वह सैडिस्ट हो ही जाएगा। एक बड़े मजे की बात है कि अगर मैं दुख वरन करूं और दुखी हो जाऊं, तो मैं चाहूंगा कि मैं तुमको भी दुखी करूं। दुखी आदमी दूसरे को दुखी ही कर सकता है। जो उसके पास है वही वह दूसरे को दे सकता है।
ओशो, सहज मिले अविनाशी-३
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें