गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

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*दादू जीवित ही मर जाइये,*
*मर माँही मिल जाइ ।*
*सांई का संग छाड़ कर,*
*कौन सहै दुख आइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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अहोभाव
कहि के माहुर क्या पीजै।
और गुरु अगर जहर भी पीने को दे तो कह-कह कर मत पीना कि देखो, जहर पी रहा हूं ! कि देखो, यह त्याग दिया ! कि देखो, यह छोड़ दिया ! कि देखो, कितना अर्पण किया ! कैसा मेरा समर्पण ! कैसी मेरी श्रद्धा ! कह-कह कर मत करना। कह-कह कर सब खराब हो जाएगा। कह कर पीया तो क्या पीया ! 
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गुरु अगर जहर दे तो आनंद से पी जाना, शब्द भी न निकालना; क्योंकि गुरु के हाथ से आया हुआ जहर भी अमृत है। चिकित्सक को कभी-कभी इलाज के लिए जहर भी देना पड़ता है। चिकित्सक के हाथ में जहर भी औषधि हो जाता है। नासमझ के हाथ में तो औषधि भी जहर हो जाती है।
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लोक-बेद तन-मन की डर है
प्रेम-रंग में क्या भीजै
और अगर डर है लोक का, वेद का, तन का, मन का–तो एक बात खयाल रखना, फिर प्रेम के रंग में न भीज सकोगे।
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पलटूदास होय मरजीवा
लेहि रतन नहिं तन छीजै
पलटूदास कहते हैं: तुम तो जीते जी गुरु के चरणों में मर जाओ। मरजीवा शब्द के दो अर्थ हैं। जीते जी मर जाओ–एक; वह उसका परम अर्थ है। और एक अर्थ है गोताखोर। गोताखोर को मरजीवा कहते हैं, क्योंकि जीते जी पानी में जब वह गोता लगाता है तो सांस बंद कर लेता है; मरे जैसा हो जाता है, क्योंकि मरने पर सांस बंद हो जाती है। तो गोताखोर भी एक अर्थ है कि वह जीते जी गोता मार जाता है, सांस बंद कर लेता है, मुर्दे जैसा हो जाता है।
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गुरु के चरणों में गोताखोर हो जाओ। उसके चरण सागर जैसे हैं। उसके चरणों की गहराई अनंत है। क्योंकि वह तो है ही नहीं, वह तो केवल परमात्मा के लिए एक द्वार है–एक घाट है सागर का ! डुबकी मार जाओ, गोताखोर हो जाओ ! .... लेहि रतन नहिं तन छीजै
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घबड़ाओ मत, कुछ छीजेगा नहीं, तन गल नहीं जाएगा। और रतन मिल जाएंगे। अगर गहरा गोता मारा तो झोली रत्नों से भर जाएगी। और परम अर्थों में मरजीवा का अर्थ है: जीते जी मुर्दा हो जाओ। गुरु के पास तुम्हारा अपना कोई जीवन न रह जाए; गुरु का जीवन ही तुम्हारा जीवन हो। उसकी श्वास में श्वास लो। उसके प्राण की धड़कन में अपनी धड़कन जोड़ दो। उसके संगीत में अपने स्वर मिल जाने दो। जीते जी अगर तुम मर जाओ तो परम जीवन उपलब्ध हो जाता है। तुम्हारी झोली में अमृत के हीरे, अमृत के मोती भर जाएंगे।
ओशो ~ काहे होत अधीर, प्रवचन ~ ७

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