गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

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*🌷🙏 卐 सत्यराम सा 卐 🙏🌷*
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*दादू सचु बिन सांई ना मिलै, भावै भेष बनाइ ।*
*भावै करवत उर्ध्वमुख, भावै तीरथ जाइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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"हम लोग अधर्म और पाप को छिपाने के लिए ही धर्म का आश्रय लेते हैं। डाका डालने से पहले डाकू देवी के मंदिर में पूजाकर डाका सफल होने के वर मांगते हैं और संयोग से अगर वह सफल हो गए तो फिर देवी पर सोने का छत्र चढ़ाते हैं। पुजारी उनकी पूजा स्वीकार कर उन्हें आशीर्वाद देता है।
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सेठ और व्यापारी भी दिन भर ब्लैक मार्केट करने के बाद शाम मंदिर में जाकर धर्म का मुखौटा लगाकर धार्मिक होने का ढोंग करते हैं। वह राम नाम की चादर ओढ़कर राम-राम का मंत्र जपते हैं। अखंड रामायण का पाठ करवाते हैं और सत्यनारायण की कथा तो मनोकामना पूरी करने के लिए ही कराई जाती है। और वस्तुतः कथा कलावती और लीलावती की कथा है। सत्यनारायण की कथा का तो आज तक पता ही नहीं है।"
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"मंदिर कीर्तन और राम नाम का जाप - यह सभी पाप छिपाने की तरकीबें हैं। और यह नासमझ समझते हैं कि उन्होंने ऐसा कर दूसरों की आंखों में धूल झोंक दी, और परमात्मा भी उनके दान, पुण्य, पूजापाठ से प्रसन्न होकर उन्हें मुक्त कर देगा। उनके पुरोहित-पुजारी उन्हें ऐसा विश्वास भी दिलाते हैं।
ऐसे लोग भले ही दूसरों को या परमात्मा को धोखा दे लें पर वह अंदर से अच्छी प्रकार जानते हैं कि वह क्या कर रहे हैं ?

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