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*दादू घट में सुख आनन्द है, तब सब ठाहर होइ ।*
*घट में सुख आनन्द बिन, सुखी न देख्या कोइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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जो लोग सभ्यता का अध्ययन करते हैं, वे कहते हैं, घर पुरुष ने नहीं बनाया, स्त्री ने बनाया इसीलिए उसको घरवाली कहते हैं। आपको कोई घरवाला नहीं कहता घर उसी का है। अगर स्त्री न हो, तो पुरुष जन्मजात खानाबदोश है भटकता रहेगा; ठहर नहीं सकता वह स्त्री की खूंटी बन जाती है, फिर उसके आस-पास वह रस्सी बांधकर घूमने लगता है कोल्हू के बैल की तरह...
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पुरुष को अगर हम ठीक से समझें, तो वह रज है, गति है
स्त्री को ठीक से समझें, तो वह तम है, अगति है इसलिए इस जगत में जितनी चीजों को ठहरना है, उन्हें स्त्री का सहारा लेना पड़ता है और जिन चीजों को चलना है, उन्हें पुरुष का सहारा लेना पड़ता है।
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बड़े मजे की बात है कि सब चीजों को चलाने वाले पुरुष होते हैं और ठहराने वाली स्त्रियां होती हैं। दुनिया में इतने धर्म पैदा हुए, एक भी स्त्री ने पैदा नहीं किया; सब पुरुषों ने पैदा किए लेकिन दुनिया में जितने धर्म टिके हैं, स्त्रियों की वजह से; पुरुषों की वजह से कोई भी नहीं।
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सब धर्म पुरुष पैदा करते हैं--चाहे जैन धर्म हो, चाहे हिंदू, चाहे बौद्ध, चाहे इस्लाम, चाहे ईसाई, चाहे जोरोस्ट्रियन, चाहे कोई भी--दुनिया के सब धर्म पुरुष पैदा करता है, मगर उसकी सुरक्षा स्त्री करती है मंदिर में जाकर देखें पुरुष दिखाई नहीं पड़ता हां, कोई पुरुष अपनी स्त्री के पीछे चला गया हो, बात अलग है ! कोई दिखाई नहीं पड़ता स्त्रियां दिखाई पड़ती हैं।
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एक बार किसी चीज को गति मिल जाए, तो उसको ठहराने के लिए जगह स्त्री में है, पुरुष के पास नहीं है वह तो गति देकर दूसरी चीज को गति देने में लग जाएगा वह रुकेगा नहीं...
गीता दर्शन--(प्रवचन-055)
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