बुधवार, 13 जून 2012

= स्मरण का अँग २ =(१-२)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥

*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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अगाध तत्व की प्राप्ति के लिए गुरुदेव के अंग में पूर्वोक्त प्रकार से जो कहा है "राम नाम उपदेश करि, अगम गवन यहु सैन," तथा "राम नाम गुरु शब्द सौं, रे मन पेलि भरम" इत्यादिक जो साधन सूत्र रूप से बतलाएँ हैं, उनके अर्थ स्वरूप परम आचार्य ब्रह्मर्षि जगद्गुरु श्री दादू दयाल महाराज "स्मरण" के अंग का निरूपण करते हैं, अर्थात् नाम उच्चारण सहित नामी का जो चिन्तन है, सो स्मरण का स्वरूप है । 
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प्रथम स्मरण के प्रकरण की निर्विघ्न समाधि के लिए मंगलाचरण करते हैं :-
*दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरुदेवत: ।* 
*वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगत: ॥ १ ॥* 
टीका ~ पूर्व में "गैब मांहि" कहिए अचानक जो सतगुरु रूप भगवान् वृद्ध रूप धरके मिले, उन्होंने परमात्मा के स्मरण का उपदेश किया है । इसलिए अब स्मरण के अंग की निर्विघ्नता के लिए प्रथम सर्वव्यापक हरि की वन्दना करते हैं । तदनन्तर गुरुदेव को नमस्कार करते हैं । कैसे हैं गुरुदेव ? कि ब्रह्मनिष्ठ, ब्रह्मश्रोत्रिय जिनके लक्षण अनेक शास्त्रों में वर्णन किए हैं, ऐसे गुरु ब्रह्मस्वरूप गुरुदेव को हमारा नमस्कार है । गुरु के अनन्तर भूत, वर्तमान, भविष्य काल में जिन साधु महात्माओं ने भगवत् का स्मरण किया है, उन सबको भी हमारी वन्दना है ॥ १ ॥ 
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इस प्रकार हरि - गुरु - सन्तों को नमो, नमस्कार, वन्दना, प्रणाम करके दु:खरूप संसार के पार होकर "गत:" कहिए, भगवत् स्वरूप होते हैं । पूर्व प्रकरण में "महाप्रभु के घट-घट राम रतन है" इस उपदेश से जिज्ञासुजनों की चींटी से हाथी पर्यन्त जीव मात्र से परमात्म - बुद्धि हो रही है । जिससे जिज्ञासुजनों का नाम योग्य अयोग्यता में संदेह होने से नाम - स्मरण में दृढ़ता नहीं होती है । इसलिए परमेश्वर के नाम में जिज्ञासुजनों की दृढ़ता कराने के लिए तथा सुख से स्मरण होने के निमित्त श्री ब्रह्मर्षि गुरुदेव अल्प अक्षरों में परमेश्वर के नाम का संकेत करते हैं :-
*एकै अक्षर पीव का, सोई सत्य करि जाण ।* 
*राम नाम सतगुरु कह्या, दादू सो परवाण ॥ २ ॥*
टीका ~ नामी एक है, अक्षर क्षय भाव से रहित है और पीव परमेश्वर सचराचर जगत् का पालन करने वाला है । नामी का स्वरूप सत् चित् आनन्द स्वरूप है और परमात्मा का नाम "रं“ यह एक अक्षर है । इसलिए हे जिज्ञासुजनों ! नाम को सत्य करके मानिए, क्योंकि सतगुरु देव ने राम - नाम मंत्र का ही उपदेश किया है । इस वास्ते राम - नाम ही सर्वश्रेष्ठ है अथवा "पीव" कहिए पालन करने वाला परमेश्वर का वाचक प्रणव नाम ओऽम् अक्षर है । इस प्रणव में अर्ध चन्द्र है, तो यह रकार है, और अनुस्वार है, वह मकार है । सोई रं(राम) सत्य करके जानो । उस परब्रह्म के वाचक नाम को और नामी को सत्य करके मानो ! यही सतगुरु का उपदेश है ॥ २ ॥ 
गीता में लिखा है कि मैं कूटस्थ अविनाशी पुरुष ईश्वर हूँ :-
द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरचाक्षर एव च । 
क्षर: सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ॥ 
रकाराज्जायते ब्रह्मा रकाराज्जायते हरि: । 
रकाराज्जायते शंभु: रकारात् सर्वशक्तय: ॥ 
आदावन्ते तथा मध्ये रकारे सुप्रतिष्ठितम् । 
विश्वं चराचरं सर्वं अवकाशेन सर्वश: ॥ 
बीजे यथा स्थितो वृक्ष: शाखापल्लव संयुत: । 
तथैव सर्ववेदा हि रकारे सुव्यवस्थिता: ॥ 
नाम माहात्म्य नित सुने, हिरदय हेत लगाय । 
नाद मृग ज्यूं सीस दे, और ठौर नहिं जाय ॥ 
स्वरूप भजन का यह भया, रसना रटतो जाय । 
चातक ज्यूं भूलै नहीं, श्रुति हिरदै ठहराय ॥ 
हिरदै राम न बीसरै, नटनी का सा ध्यान । 
फल भजन का यह भया, नासै मिथ्या ज्ञान ॥ 
रोम रोम रसना रहै, मच्छी जल ज्यूं पान । 
अवधि भजन की यह भई, पाया परम स्थान ॥
(क्रमशः)

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