*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
.
*
= स्मरण का अंग - २ =*
.
*दादू नीका नांव है, हरि हिरदै न बिसारि ।*
*मूरति मन मांहैं बसै, सांसैं सांस संभारि ॥ ५ ॥*
टीका ~ हरि का नाम सर्वोत्तम है । हरि स्मरण से कदापि विमुख नहीं होना चहिए, क्योंकि अति मनोहर परमेश्वर का शुद्ध स्वरूप है । वह मन में ही बसता है अर्थात् मन तदाकार वृत्ति होकर प्रत्येक क्षण - क्षण में परमात्मा का ही स्मरण करता रहे ॥ ५ ॥
.
*सांसैं सांस संभालतां, इक दिन मिलि है आइ ।*
*सुमिरण पैंडा सहज का, सतगुरु दिया बताइ ॥ ६ ॥*
टीका ~ सतगुरुदेव उपदेश करते हैं कि हे जिज्ञासुओ ! श्वास प्रति श्वास के साथ ईश्वर का स्मरण करो । तो एक रोज व्यष्टि चेतन, जीव कूटस्थ, समष्टि चेतन ब्रह्म से अभेद हो जाएगा । यह स्मरण "पैंडा" कहिए, साधना मार्ग सहज कहिए, ब्रह्म में मिलने का सरल मार्ग सतगुरु ने बता दिया है ॥ ६ ॥
समीचीनोऽप्ययमेव पन्था: क्षेमोऽकुतो भग: ।
सुशीला: साधवो यत्र नारायण-परायणा: ॥
(सुशील साधुओं के लिये नारायण नाम जपकर कल्याण प्राप्त करना भय रहित सुगम मार्ग है ।)
श्वास माहीं जात है, मानुष अमोल रतन ।
दादू दिल दीवान भज, या का यही जतन ॥
दादू सुमिरण कीजिये, जब बीते अर्ध रात ।
सहस्त्र गुणा हो भजन में, उगन्ते परभात ॥
सुमिरण करते आ मिले, सहजैं सुन्दर श्याम ।
शिवरी सुमरी प्रेम से, सारे-सारे काम ॥
(क्रमशः)
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें