मंगलवार, 19 जून 2012

= स्मरण का अँग २ =(१३-४)


॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*स्मरण माहात्म्य*
*सहजैं ही सब होइगा, गुण इन्द्रिय का नास ।*
*दादू राम संभालतां, कटैं कर्म के पास ॥ १३ ॥* 
टीका - श्री सतगुरु उपदेश करते हैं कि राम-नाम का ध्यान करने से सहज ही सत, रज और तमो गुण एवं इन्द्रियों के सम्पूर्ण विषय - विकारों का भी नाश हो जाएगा । इस प्रकार से कर्म - फाँसी स्वत: ही कट जाएगी ।
भिद्यते हृदयग्रन्थि: छिद्यन्ते सर्वसंशया: । 
क्षीयन्ते चास्य कर्माणि, तस्मिन् दृष्टे परावरे ॥ 
(गुरु ज्ञान से मन की कुण्ठाएँ खुल जाती हैं, सब संशय नष्ट हो जाते हैं, कर्मों का क्षय हो जाता है, जिससे ब्रह्म ज्ञान हो जाता है)
सकृत स्मृतोऽपि गोविन्दो नृणां जन्मशतैरपि । 
पापराशिं दहत्याशु तूलराशिमिवानल: ॥ 
(भगवान् का एक बार भी प्रेम से नाम ले तो मनुष्य के सैकड़ों जन्म के पाप जल जाते हैं, जैसे रुई का ढेर अग्नि से ।)
खट्वांगो नाम राजर्षिज्र्ञात्वोयत्तामिहायुष: । 
मुहुर्तात्सर्वमुत्सृज्य गतवानभयं हरिम् ॥ 
दृष्टांत :- सगरवंशीय राजा दिलीप खट्वांग चक्रवर्त राजा थे । एक बार वे देवताओं की प्रार्थना पर दैत्यों से युद्ध करने स्वर्ग गये थे । दैत्यों को जीतकर जब वे स्वर्ग से आने लगे तो देवताओं ने इन्हें इच्छानुसार वर माँगने के लिए कहा । तब इन्होंने देवताओं से पूछा - मेरी आयु कितनी है ? देवताओं ने कहा - अब केवल एक मुहूर्त(दो घड़ी) आयु ही आपकी शेष है । यह सुनते ही राजा ने कहा - शीघ्रातिशीघ्र मेरे स्थान पर मुझे पहुँचा दो । राजा ने आते ही नदी में स्नान किया और भगवद् भजन में मन एकाग्र कर दिया और अत्यल्प समय में ही भगवान् को प्राप्त कर लिया ।
कहा भी है - "भगवान् को प्राप्त करने के लिए गाडा कोनी जुपैं, केवल मन गाढा होना चाहिये ।
इन्दव छन्द
दोइ मुहुरत मांहिं दिलीप खट्वांगहु मुक्त किये रिषिराई । 
एक मुहुरत मांहि गजेन्दर आप सहाइ करी हरि जाई ॥ 
भूप परीक्षित सप्त दिनान्तर आप हि मुक्त किये शुक पाई । 
नाम रहै परमातम को परब्रह्म सहाइ सदा हरि गाई ।
गुण तारे माया तिमिर, शीत भर्म मन चन्द । 
"रज्जब" सुमिरण सूर सूं, सहज पड़े सब मन्द ॥ 
"को जाणैं कलि आई के, कीये केते पाप । 
चढि विमान गणिका गई, देखो नाम प्रताप ॥"

*स्मरण नाम चितावणी*
*राम नाम गुरु शब्द सों, रे मन पेलि भरम ।* 
*निहकर्मी सौं मन मिल्या, दादू काट करम ॥ १४ ॥* 
टीका - हे मन ! सतगुरु के राम - नाम उपदेश से अपने भ्रम - संशय को दूर करो और एकाग्र चित्त से राम - नाम का स्मरण करो । क्योंकि निष्कर्म परमेश्वर में मन के एकाग्र प्रवृत्ति होने से सम्पूर्ण कर्मों का स्वत: नाश हो जाता है ।
(क्रमशः)

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