*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*दादू राम अगाध है, बेहद लख्या न जाइ ।*
*आदि अंत नहि जाणिये, नाम निरन्तर गाइ ॥ १९ ॥*
टीका - ईश्वर की सत्ता अपार, असीम, इन्द्रियातीत, अनादि औैर सनातन है, इसलिए निरन्तर श्वास प्रति श्वास प्रभु का स्मरण करना चाहिए । रामादिक नामों का उपास्यदेव एक है या अनेक ? इस बात की पुष्टि श्री सतगुरु तीन साखियों में करते हैं ।
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*अद्वैत ब्रह्म*
*दादू राम अगाध है, अकल अगोचर एक ।*
*दादू राम विलम्बिए, साधू कहैं अनेक ॥ २० ॥*
*दादू राम विलम्बिए, साधू कहैं अनेक ॥ २० ॥*
टीका - हे जिज्ञासु ! वह राम हाथ, पैर आदिक कला रहित और अजर अमर तथा अगोचर कहिए, मन इन्द्रियों का अविषय और अति गम्भीर माया से रहित है । सजातीय विजातीय स्वगत भेद रहित वह ब्रह्म अद्वितीय है । जिससे नानात्व का भ्रम होता है, वह त्यागने योग्य है । इसलिए हे जिज्ञासुओ ! परमेश्वर के साक्षात्कार के लिए नाम - स्मरण कीजिए, इसमें देर न करो । अनेक साधु - महात्माओं ने ऐसा ही उपदेश किया है और इसी प्रकार नाम का स्मरण करते आए हैं ।
(क्रमशः)
(क्रमशः)
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