मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012

= विरह का अँग ३ =(१४४-५)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= विरह का अंग - ३ =* 
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*जे हम छाड़ै राम को, तो राम न छाड़ै ।* 
*दादू अमली अमल तैं, मन क्यों करि काढै ॥१४५॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! परमेश्वर के भक्तों के हृदय में अनन्य विरह-भाव उपजता है, जिससे विरहीजनों की सुरति परमेश्वर से कभी अलग नहीं होती है । जैसे संसारी अमली अमल का साधारण नशा नहीं छोड़ सकता, तो फिर परमेश्वर के विरही भक्तों की बात ही क्या है ? वे भक्ति को कैसे छोड़ें ॥१४५॥ 
मन माहीं साजन बसे, मो मन साजन हाथ । 
नर कर दर्पन मांहि नर, अरस परस जगन्नाथ ॥ 
कोउ अमली मगजात था, अमल समय हो जाय । 
गाँव दूर दुख अति लहा, मूंज नीर पी जाय ॥ 
द्रष्टान्त -(इसी अंग की ५० वीं साखी देखिये)
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*विरह प्रतिबिम्ब*
*विरहा पारस जब मिला, तब विरहनी विरहा होइ ।*
*दादू परसै विरहनी, पीव पीव टेरे सोइ ॥१४६॥* 
टीका - जैसे पारस से मिलते ही लोहा कंचना हो जाता है, उसी रीति से पारस रूप विरह के मिलते ही विरहीजन परमेश्वर रूप हो जाते हैं ॥१४६॥ 
यथा अग्निनाहेममलं जहाति, 
ध्यातं पुन: स्वं भजते च रूपम् । 
आत्मा च कर्मानुशयं विधूय, 
मद्भक्ति योगेन, भजत्यथो माम् ॥ 
दोस्त नहीं है दर्द सम, जो दिल अन्दर होय । 
जीव शिव एकै करै, जो थे सदा ये दोय ॥ 
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*आशिक माशूक ह्वै गया, इश्क कहावै सोइ ।* 
*दादू उस माशूक का, अल्लाह आशिक होइ ॥१४७॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! आशिक कहिए, विरहीजन भक्त, और माशूक नाम परमेश्वर अर्थात् विरहीजन और परमेश्वर एक रूप हो जाते हैं । भक्ति की शक्ति देखिए कि स्वयं भगवान् ही एक सेवक बनकर अपने विरहीजन भक्तों की सेवा करते हैं । अर्थात् उनका ही रूप बन जाते हैं इस दशा में पहुँचने पर प्रेम की पूर्णता है ॥१४७॥ 
मनहर
औलिया निजामुद्दीन बावड़ी चुणावै रात, 
नीर दीप जोइके-दिखाई करामात को । 
आइ के कलंदरबली, छीन लेहगए तेहू, 
आवत मुरीद पूछी, कही उन बात को ॥ 
गावत अनूप जा रिझाया उस बालक को,
देखत अखंड ताहि, पावै नित शांति को ॥ 
बैठ के उछंग में माशूक कहा दाढी ऐंच । 
औलिया निजाम को कहायो सिद्ध पांति को ॥ 
द्रष्टान्त - एक समय औलिया निजामुद्दीन ने बावड़ी चिनवाने का काम शुरु किया । इधर बादशाह अकबर ने भी एक महल बनवाना शुरू किया । दिल्ली के जितने मिस्त्री थे, उन सबकों निजामुद्दीन ने बुलाया और कहा :- हमारी बावड़ी पहले बनाओ । बादशाह ने सुना कि तमाम मिस्त्री निजामुद्दीन के यहाँ जाते हैं । बादशाह ने मिस्त्रियों को बुलाया, बोला :- पहले हमारा महल बनाओ । मिस्त्रियों ने कहा :- निजामुद्दीन के जाते हैं, हजूर ! "उसके जाना बन्द कर दो, पहले हमारा महल बनेगा ।" निजामुद्दीन को पता चला, मिस्त्रियों को बोला :- रात को हमारी बावड़ी की चिनाई करो । चिनाई करने लगे । तेल में बिनौल डालकर, निजामुद्दीन ने कई दीपक जलवा दिए । जब सुबह बादशाह के महल का काम करने मिस्त्री गए, तो मिस्त्रियों को नींद आने लगी । बादशाह ने पूछा :- तुम लोग रात को नहीं सोये ? हुजूर, नहीं सोये, चुनाई करते हैं, रात को । बिना प्रकाश कैसे करते हो ? हुजूर, निजामुद्दीन औलिया तेल के कुण्डे भरकर बिनौले डाल कर, प्रकाश करवा देता है । बादशाह ने तेल विक्रेताओं को बुलाकर हुक्म दिया कि निजामुद्दीन को कोई तेल नहीं देगा और मिस्त्रियों को बोला :- आज तुम उसके यहाँ काम करने नहीं जाना । 
दूसरे रोज बादशाह के महल की चिनाई करने सब मिस्त्री आ गए । जब निजामुद्दीन ने तेल लेने भेजे, तो तेल विक्रता बोले कि निजामुद्दीन को तेल बेचने से बादशाह ने इन्कार कर दिया है । अब निजामुद्दीन ने मिस्त्रियों को बुलाया और कहा :- रात को काम करने आना । जब मिस्त्री लोग रात को काम करने आए, तब बावड़ी में से पानी मंगवा कर, सब कुंडे पानी से भरवा कर रोशनी करवा दी । दूसरे रोज बादशाह के महल की चिनाई करने को मिस्त्री गए, तो फिर नींद आने लगी । बादशाह नें कहा :- आज कैसे सोते हो ? "हुजूर, रात को निजामुद्दीन के काम करने गये थे ।" उसे तेल तो नहीं मिलता ? "हुजूर, पानी के कुण्डे भरवाकर रोशनी करवा देता है ।" तब बादशाह चकित हो गया और बोला:- कल से निजामुद्दीन की बावड़ी की चिनाई करो । देखेंगे समय आने पर । 
कुछ दिन बाद एक रोज कलंदरबली फकीर बादशाह के दरबार में आया । बादशाह ने सेवा की । कलंदरबली बोले :- मांगो क्या चाहते हो ? "मैं यह चाहता हूँ कि निजामुद्दीन की करामात को ले जाओ ।" फकीर ने कहा :- ठीक है । कलंदरबली चले । निजामुद्दीन के तकिया के पास से निकले और बोले :- "निजामुद्दीन !" वह बोला, "हाँ" इतना कहते ही कलंदरबली के साथ करामात चली गई । शाम को कुण्डों में मशाल जलाने लगे, तो वह नहीं जली । तब सभी मिस्त्री अपने घर चले गए । निजामुद्दीन ढीले हो गए । 
मिस्त्री लोग बादशाह के महल की चिनाई करने लगे । इधर निजामुद्दीन का शिष्य(मुरीद) मीर कुसरा आया । गुरु(मुर्शद) को उदास देखकर बोला :- उदासी का क्या कारण है ? उपरोक्त वृत्तान्त निजामुद्दीन ने सब कह सुनाया । मुरीद बहुत बढ़िया गायक था । वह बोला :- मुर्शद ! आपकी करामात कैसे वापिस आवे ? निजामुद्दीन बोला :- कलंदरबली यह कहे कि "औलिया निजामुद्दीन सिद्ध" मेरी करामात वापिस आ जायेगी । 
वह मुरीद चला और कलंदरबली के शहर में जा पहुँचा और पता चलाया कि कलंदरबली किसका कहना मानता है । एक ने बताया :- अमुक लड़का है । उसका कहना अवश्य मानता है । वह गायक उस लड़के के घर पहुँचा । वह साहूकार का लड़का था । गायक ने जाकर लड़के को सलाम किया । लड़के ने देखा :- इसके पास सितार है, यह तो कोई गायक मालूम पड़ता है । "क्या सांई ! कुछ गाते हो ?" 'हाँ, दाता' 'सुनाओ', फिर सितार मिलाकर एक दो राग सुनाई । लड़का मस्त हो गया । कहने लगा :- 'मांगो !' गायक कहता है कि यही मांगता हूँ कि कलंदरबली यह बोले कि "औलिया निजामुद्दीन सिद्ध" यही मांगता हूँ । 
लड़का बोला :- "आप कलंदरबली के तकिया पर पहुँचो । मैं आ रहा हूँ ।" वह गायक जाकर कलंदरबली को सलाम करके बैठ गया । इधर वह लड़का भी पहुँचा, जाकर बैठा । "क्या सांई, कुछ गाते हो ?" "हाँ" तो "सुनाओ" गायक ने दो चार राग सुनाई । लड़का कहने लगा :- मांगो क्या चाहिए ? गायक बोला :- कलंदरबली यह कहे कि "औलिया निजामुद्दीन सिद्ध !", यही माँगता हूँ । तब लड़का कलंदरबली से बोला, मुर्शद ! कह दो "औलिया निजामुद्दीन सिद्ध"! कलंदरबली बोले :- यह नहीं कहेंगे और कुछ मांग लो । गायक बोला :- "हुजूर, यही चाहता हूँ और कुछ नहीं माँगता । 
प्रेमपात्र(माशूक) लड़का जमीन से उठकर कलंदरबली की गोदी में बैठ गया और दोनों हाथों से दाढ़ी खींच कर कहने लगा । बोले "ओलिया निजामुद्दीन सिद्ध" । कलंदरबली बोले :- "तेरा बाप सिद्ध । फिर बोला :- कहो "औलिया निजामुद्दीन सिद्ध" । "तेरा दादा सिद्ध ।' इस प्रकार सात पीढ़ी को सिद्ध बना दिया । फिर आठवीं बार प्रसन्न होकर बोला । "औलिया निजामुद्दीन सिद्ध", इतना कहते ही निजामुद्दीन के यहाँ दीपक जगमगा उठे । कहा भी है :- 
"शिष्य करे तो ऐसा करे, जैसा किया निजाम । 
गुरु को पीर कहाइया, यह मर्दा का काम ॥"
अपने प्रेमी भक्तों के लिये भगवान सब कुछ कर सकते हैं, जैसे कलंदर बली ने अपने भक्त बालक के लिये किया ।
(क्रमशः)

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