"श्री दादू पंथ परिचय"(१) लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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बुधवार, 17 सितंबर 2025

आनन्द हुआ पंथ में

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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आचार्य जैतरामजी का पत्र देकर बिचूण के संतों ने बीच में पड करके आपस में मेल कराने का पूरा प्रयत्न किया था । इसी से उनकी संज्ञा बिचोलिया हो गई थी । अभी तक वे बिचोलिया ही कहलाते हैं । आचार्य जैतराम जी का पत्र पढकर और बिचोलियों के प्रयत्न करने पर सब आकर नारायणा दादूधाम में पुन: एक हो गये थे । 
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कहा भी है - 
दोय पंथ हुआ देख के, बोले जैत दयाल ।  
केवल हृदय राम जी, आय मिलो तत्काल ॥ 
सुन्दर जी प्रहलाद का, सब गुरु द्वारे आय । 
गुरु को भेंट चढाय के, तन मन शीश नमाय ॥
आनन्द हुआ पंथ में, मेटा सब ही साल ।
जै जै हुआ लोक में, मिलिया जैत दयाल ॥
(दौलतराम)
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नारायणा दादूधाम के पंचम आचार्य जैतराम जी महाराज दिव्य शक्तियों के केन्द्र थे । यह उनकी जीवनी से ही प्रकट होता है । उन्होंने दादू पंथ का बहुत अच्छी पद्धति से संचालन किया था और आगे सुचारु रुप से चलता रहे, इसके लिये सुन्दर मर्यादा का निर्माण किया था, जिसका निर्वाह आज तक समाज में हो रहा है । 
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दादूजी महाराज के सिद्धान्त के अनुसार आपने निर्गुण निरंजन निराकार परब्रह्म की भक्ति स्वयं की थी और लोक कल्याण के लिये उसका अधिक से अधिक प्रसार प्रचार किया था । आपके उपदेश गंभीर तत्त्व के संबन्धी होने पर भी सर्वोपयोगी होते थे । महान् शक्ति संपन्न होने पर भी आप में अभिमान का लेश भी नहीं था । 
(क्रमशः) 

मंगलवार, 16 सितंबर 2025

गुटबंधी तोडने का यत्न

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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सुन्दर - दासोतों जाने के पश्‍चात् उतराधों ने सभा में कहा - हमारा तात्पर्य भेद पटकने में तो नहीं था, एकता में ही था । केवलरामजी हमारे तात्पर्य को बिना समझे ही रुष्ट हो गये हैं । वे उस प्रस्ताव को नहीं मानते, सभा से उठकर जाने का क्या प्रसंग था ? फिर उनको यह कहकर बुलाया कि आप लोगों की इच्छानुसार भेष भूषा रखें किन्तु समाज के साथ तो रहैं । 
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अलग मेला करना तो समाज की फूट ही मानी जायगी और संतों में फूट होना उचित नहीं ज्ञात होगा । किन्तु उन्होंने नहीं माना । पांच वर्ष तक मेला भैराणे करते रहे । पर्वत के पास सुविधा नहीं होने से आकोदा ग्राम के पास लगर्या टीबा पर ठहरने रहे । पांच वर्ष तक यह हलचल देखकर आचार्य जैतराम जी महाराज ने बिचूण के संतों के द्वारा केवलरामजी और हृदयरामजी को पत्र भेजा और कहा - उनको समझाकर गुटबंधी तोडने का यत्न करो । 
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बिचूण के संतों ने कहा आपकी आज्ञा के अनुसार ही किया जायगा । जैतरामजी महाराज ने पत्र में लिखा था - ‘श्रीमान् केवलरामजी, हृदयरामजी को नारायणा दादूधाम से जैतराम का सत्यराम ज्ञात हो । आगे समाचार यह है कि - समाज में अशांति का वातावरण बढता जा रहा है । उसको आप ही रोक सकते हैं । उतराधों में कोई आग्रह नहीं है । आप लोग अपनी इच्छानुसार भेष भूषा रख सकते हो ।
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अब आप गुरु द्वारे नारायणा में आकर पूर्ववत सबसे मिलो गुटबंधी को तो़ड दो । गुटबंधी समाज की हित कारिणी सिद्ध नहीं हो सकेगी । श्रीदादू जी महाराज के वचनों पर ध्यान दो, वे तो कहते हैं - “दो राजी दु:ख द्वन्द्व में, सुखी न वैसे कोय ।” फिर हम व्यर्थ ही द्वन्द्वों में सुख क्यों मान रहे हैं ? अब अगले फाल्गुण शुक्ला में मेला एक स्थान नारायणा दादूधाम पर ही होना चाहिये । तब ही समाज में आनन्द की लहर चलेगी । अत: अब शीघ्र ही आप लोग आकर प्रेम पूर्वक सबसे मिलें । 
(क्रमशः)

रविवार, 14 सितंबर 2025

भेष भूषा संबन्धी विवाद

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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भेष भूषा संबन्धी विवाद 
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जैतराम जी महाराज के समय में समाज के माने हुये कुछ महानुभावों ने समाज में यह प्रस्ताव रखा कि - दादूजी महाराज डाढी मूँछ नहीं रखते थे । अत: ५२ थांभों के सभी संतों को भी डाढी मूँछ उतार देनी चाहिये । इस प्रस्ताव को लेकर उस समय समाज में भेष भूषा संबन्धी विवाद चल पडा । उस समय समाज के दो थांभे बडे सुन्दर दासोत और बनवारी दासोत संख्या में अधिक थे । 
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बनवारी दासोतों का मत था डाढी मूंछ नहीं रखना चाहिये । बडे सुन्दर दासोतों का मत था रखना चाहिये । बडे सुन्दर दासोतों ने कहा - हमारे तो सुन्दरदास जी महाराज केश रखते थे । अत: हम तो रखेगें । उतराधों ने कहा - सुन्दरदास जी महाराज पंच केश रखते थे और वस्त्र भगवां रखते थे । आप लोग भी पंच केश रखें तब तो अति सुन्दर है किन्तु आप लोग तो केवल डाढी मूँछ और बहुत कम केशों की चोटी ही रखते हैं । यह तो संतों को शोभा नहीं देता है । 
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किन्तु उस समय के बडे सुन्दर दासोत प्राय: क्षत्रिय थे और राजस्थान के क्षत्रिय उस समय डाढी मूँछ और छोटी - सी चोटी रखते थे । वही आदत उन संतों की थी । वे उतराधों के प्रस्ताव से सहमत नहीं हुये । इससे समाज के दो गुट हो गये । उस समय बडे सुन्दर दासोतों में केवलराम जी मुख्य थे । उन्होंने कहा - हम तो डाढी मूँछ रखेंगे, हमारी डाढी मूँछ तुम को अच्छी नहीं लगती है तो हम तुम से अलग ही रहेंगे । क्षत्रिय स्वभाव के कारण झुकना तो वे अच्छा समझते ही नहीं थे । उलटा उक्त प्रस्ताव रखने वालों को डांट कर बोले -  
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केवल दिया सराप यह, म्हारो बढसी पूंछ ।  
उतराधा कंपित रहैं, राखें डाढी मूंछ ॥ 
केवल हृदयरामजी, ऊठ गये तत्काल ।
भैराणे गिरि जाय के, मेला किया दयाल ॥
(दौलतराम)
अर्थात् - हम डाढी मूंछ रखेंगे और हमारा पूंछ(वंश) बढेगा और तुम उतराधे हमारे वंश से कंपित ही रहोगे । यह कहकर केवलरामजी और हृदयरामजी सभा से उठकर चले गये । उनके साथ ही सब बडे सुन्दर दासोत उठ गये । यह प्रस्ताव नारायणा के मेले के आरंभ में सभा में रखा गया था । अत: बडे सुन्दर - दासोत सब नारायणा दादूधाम से भैराणे चले गये और वहां ही मेला किया । 
(क्रमशः) 

शनिवार, 13 सितंबर 2025

करौली नरेशों की श्रद्धा

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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जैतराम जी महाराज का प्रभाव राजस्थान के राजाओं पर भी बहुत अच्छा पडा था । जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, अलवर, किशनगढ, सीकर, खेतडी, म्हार सामोद, चोमू, डिग्गी आदि छोटे बडे नरेशों का तो नारायणा दादूधाम पर बहुत ही श्रद्धा भाव रहा है । जब आचार्य बैठते थे तब उक्त राजाओं से भेंट आती थी । 
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दादू द्वारे से उनके लिये प्रसाद जाता था और नरेश बैठते तब भी दादू द्वारा की सेवा नहीं भूलते थे । कारण दादू द्वारे से भी शुभाशीर्वाद जाता था । किन्तु दादूजी से लेकर जैतराम जी के समय तक तो करौली नरेश भी दादू द्वारे के परमभक्त रहे थे । यह महन्त चेतनजी ने अपने रचित श्री दादू चरित्र में लिखा है, सो देखिये -
“बहुत दिवस सत्संग कराई, पीछे स्वामी रमणी जाई ॥”
अर्थात् - तत्कालीन करौली नरेश ने दादू जी का सत्संग बहुत दिनों तक किया था । 
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फिर स्वामी दादू जी वहाँ से रामत कर गये थे किन्तु फिर भी..... 
“जैतराम जी तक तो राजा, सब ही शिष्य धर्म की पाजा ॥३६॥
जैतराम को पत्र दिखाया, करौली राजा ने बुलवाया ।
सोउ पत्र हम देखा रु जाना, जैतराम दिया गुरु ज्ञाना ॥३७॥
वि. ४७ अर्थात् - दादूजी से जैतराम जी तक सब ही करौली नरेश दादू द्वारा पर पूर्ण श्रद्धा रखते हुये नारायणा दादूधाम के आचार्यों के ही शिष्य होते आये थे । 
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जैतराम जी के समय में करौली नरेश ने जैतराम जी को पत्र दिया था और करौली बुलाया था तथा गुरु दीक्षा ली थी । वह पत्र चेतन देव जी ने देखा था । फिर आगे भी करौली नरेशों की श्रद्धा का परिचय कुंजदास जी की कुंज आदि करौली के स्थान देते ही है । फिर आगे भी करौली के स्थान देते ही हैं । उनका परिचय राघवदास जी के परिचय के साथ आगे देंगे ।
(क्रमशः)

एक फकीर का आना

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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एक फकीर का आना 
एक समय आचार्य जैतराज जी की महिमा सुनकर एक फकीर उनके दर्शन करने नारायणा दादूधाम में आया और दरवाजे के बाहर ही बैठ गया । भोजन के समय भोजन करने उसको बुलाया, तब उसने कहा - जैतरामजी आवें तो ही भोजन करने चलूं । जैतराम जी महाराज को उसके हठ का ज्ञान हुआ तब वे उसके पास आये । 
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उनको आते देखकर वह उठा और उनके मृग छाला बिछा कर उनको प्रणाम किया और मृग छाला पर बैठने का संकेत किया कि मृगछाला पर विराजिये । तब जैतराम जी महाराज के संकेत से उनकी सेवा करना रुप कार्य करने वाले टहलुवे ने मृगछाला पर गद्दी बिछा दी । उस पर जैतराम जी महाराज विराज गये । और कहा - भोजन क्यों नहीं करते हो ? फकीर ने कहा - ॠद्धि दिखाओ तो भोजन करुंगा । 
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जैतराम जी महाराज ने पूछा - क्या ॠद्धि देखना चाहते हो ? फकीर बोला - ५००) मोहर दिखाओ । महाराज ने कहा - मंगवा देते हैं । फकीर ने कहा - मंगवाना नहीं हैं, इसी क्षण यहां ही दिखाओ । तब जैतराम जी महाराज ने कहा - अच्छा यहां ही मन मांगा लो फिर जैतरामजी महाराज ने अपनी गद्दी के नीचे ५००) मोहरें निकाल कर फकीर के सामने रख दीं । 
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फकीर महाराज के चरणों में पड गया और बोला - महाराज आप को धन्य हैं । मैंने जैसा सुना था वैसा ही आप का पक्षपात रहित सरलतापूर्ण व्यवहार और ॠद्धि मैंने आज अपने नेत्रों से देख लिया है । आप महान् संत हैं । वे मोहरे मैं आप पर ही निछावरकरता हूं । मैं मोहरों के लिये नहीं आया था । आपके दर्शन करने ही आया था । 
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आप के दर्शन और व्यवहार से मेरा रोम रोम प्रसन्न हुआ है । इस समय के आनन्द का वर्णन तो मैं किसी प्रकार कर ही नहीं सकता हूं । फिर महाराज ने कहा अब तो भोजन करो । फकीर ने हाथ जोडकर कहा अवश्य भोजन करुंगा । फिर भंडारी ने उसे भोजन कराया । भोजन करके वह विचर गया । इसी प्रकार सभी जातियों के लोग महाराज के दर्शन करने आते थे और आनन्दित होकर ही जाते थे ।
(क्रमशः)

शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

एक गुसांई सिद्ध का सिद्धि दिखाना

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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एक गुसांई सिद्ध का सिद्धि दिखाना 
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एक गुसांई सिद्ध ने देश में जहां तहां सुना कि नारायणा दादूधाम के आचार्य जैतराम जी के पास अटूट ॠद्धि सिद्धि है । अत: वह जैतरामजी महाराज की सिद्धि देखने ही उनके पास आया और प्रणामादि शिष्टाचार के बिना ही अपनी सिद्धि दिखाने के लिये उसने अपनी जटा को झ़डका कर पांच सौ मोहरें जैतरामजी महाराज के आगे वर्षा दीं । 
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उसके इस अभिमान को देखकर जैतरामजी महाराज ने सोचा - साधु में सिद्धि का अभिमान होना अच्छा नहीं रहता है । अभिमान से साधु का पतन ही होता है । अत: इसका अभिमान नष्ट करना ही चाहिये । फिर जैतरामजी महाराज ने अपनी गद्दी के एक कोने को ऊंचा उठाकर कहा - संतजी ! इधर देखिये । 
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उसने देखा तो गद्दी के नीचे की सब भूमि सुवर्ण की ही दीखी । उसको देखकर उसका अभिमान नष्ट हो गया । उसने अपने मन में सोचा मैं तो केवल पांच सौ मोहरें ही दिखा सकता था । किन्तु इन्होंने सब भूमि ही सुवर्ण की दिखा दी है । अत: जनता के कथनानुसार इनकी ॠद्धि सिद्धि अटूट ही है । 
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वह बोला - मैंने जैसी कीर्ति सुनी थी वैसी ही देखी भी है । वास्तव में आपके पास ॠद्धि सिद्धिकी कमी नहीं है । अब आप मेरी धृष्टता पर क्षमा कीजिये । कम सिद्धि वालों में अभिमान की मात्रा अधिक ही होती है, यह तो आप जानते ही हैं । अत: अब मैं नत मस्तक होकर क्षमा मांग रहा हूँ । आप तो क्षमाशील ही हैं । अवश्य क्षमा करेंगे । 
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जैतराम जी महाराज ने उस सिद्ध को कहा - संतजी ! इन सिद्धियों के पेच में नहीं पडो, ये सिद्धियां तो प्राणी को परमात्मा से विमुख ही करती हैं । अत: जहां तक हो इनसे दूर रहकर प्रभु का भजन ही करना चाहिये । भजन करने वालों को सिद्धियां बिना इच्छा भी प्राप्त हो जाती हैं किन्तु वे उनका आप के समान प्रदर्शन नहीं करते, आपने तो बिना ही कुछ कहे सुने तत्काल अपनी सिद्धि दिखाना आरंभ कर दिया । यह ठीक नहीं है । 
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अब आपको भविष्य में ऐसा नहीं करना चाहिये । प्रभु परायणता पूर्वक परमात्मा का भजन ही करना चाहिये । सिद्ध ने जैतराम जी महाराज का उपदेश नत मस्तक होकर स्वीकार किया, फिर भोजन का समय होने पर भोजन करके वे विचर गये ।
(क्रमशः)

गुरुवार, 11 सितंबर 2025

चारण को बेझ़ड देना

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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चारण को बेझ़ड देना 
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एक चारण प्राय: जैतराम जी महाराज से याचना करता था महाराज दीजिये । महाराज पूछते थे क्या चाहते हो ? तब वह कहता था कभी मांगूगा । एक दिन जैतरामजी महाराज सरोवर के कटि पर्यन्त जल में खडे - खडे स्नान कर रहे थे । 
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उस चारण ने उसी समय याचना की स्वामिन् ! दीजिये । महाराज ने स्नान करते ही कहा - क्या लेना चाहते हो ? उसने कहा जहां आप खडे हैं यहीं ही मुझे बेझ़ड(जौ चना) दीजिये । तब जैतरामजी महाराज ने जल से बेझ़ड की अंजली निकाल कर कहा - लो । यह देखकर चारण आश्‍चर्य में पड गया, वह महाराज की कोई करामात ही देखना चाहता था । 
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आज उनकी आशा पूर्ण होगई । फिर महाराज जल से बाहर आये तब वह चरणों में पड कर क्षमा याचना करने लगा । महाराज तो क्षमा मूर्ति ही थे, उन्होंने तो कुछ नहीं कहा । कहा भी है ~
संतन का प्रण हरि रखें, सब दिन सब ही काल । 
दिया जैत ने तुरत ही, सर से अन्न निकाल ॥१०० द्द.त. ७ ॥ 
(क्रमशः)

बुधवार, 10 सितंबर 2025

एक हजार वैरागी संतों का आगमन

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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एक हजार वैरागी संतों का आगमन 
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एक समय आचार्य जैतराम जी महाराज के पास नारायणा दादूधाम पर स्थानीय संतों के भोजन कर लेने के पश्‍चात् अकस्मात् एक हजार वैरागी संत आ गये । उनको भोजन के लिये कहा - संतों भोजन करोगे ? उनके मुखिया महन्त ने कहा - भोजन तो अवश्य करेंगे किन्तु हमारे पक्का भोजन चलेगा । 
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फिर पूछा गया, पक्के भोजन में आपको क्या रुचिकर होगा वही बना दिया जाय । उन लोगों ने कहा - खीर, मालपु़डे, पुडी, शाक होना चाहिये । जैतराम जी महाराज ने कहा - ठीक है अब आप पंक्ति लगाये, भोजन तैयार है । संतों को ऐसा कहकर जैतरामजी महाराज ने संकल्प किया - “सब जलपात्र खीर से और पात्र मालपु़डे तथा पूडियों से और शाक के पात्र शाक से परिपूर्ण रुप से भर जायें ।” 
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बस संकल्प के साथ ही संकल्प के अनुसार सब पात्र भर गये । आगत साधुओं ने सोचा इतनी शीघ्र इतनी मूर्तियों की रसोई कैसे तैयार हुई होगी । किन्तु उनको कहा गया अब शीघ्र पंक्ति में विराजें । फिर पंक्ति लगी । सभी साधुओं ने इच्छानुसार तृप्त होकर पाया । भोजन अति स्वादिष्ट था । 
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अत: जीमने के पश्‍चात् उन लोगों ने सोचा यह इतना भोजन इन्होंने अपनी करामात से ही तैयार कराया है । कारण साधारण स्थानीय साधुओं से उन लोगों ने पता लगा लिया था । अत: करामात देखने के लिये उन लोगों ने जमात के पीछे स्थानधारी पांच हजार साधुओं के परोसे(पत्तलें) मांगे । 
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महाराज जैतरामजी ने अपने भंडारियों को कहा - ‘प्रसन्नता से जैसे ये माँगे वैसे ही परोसे इन को दे दो, संकोच नहीं करना ।” आचार्य जैतराम जी महाराज की आज्ञा होने पर उनको तृप्त कर दिया किन्तु भंडार में कोई कमी नहीं आई । सभी वस्तुयें विद्यमान रहीं ।  इस प्रकार जैतराम जी महाराज ने नारायणा दादूधाम के भंडार की अक्षय कीर्ति देश देशान्तरों में फैलाई थी । 
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उक्त घटना से यह पूर्ण रुप से सिद्ध होता है कि आप संकल्प सिद्ध संत थे उन एक हजार संतों ने मुक्त कंठ से जैतरामजी महाराज की भूरि - भूरि प्रशंसा की थी और वे सब प्रसन्न हो कर गये थे । जैतरामजी के समय नारायणा की शोभा वैकुंठ के समान थी । वे याचकों के लिये कल्प वृक्ष के समान थे । 
(क्रमशः)

सोमवार, 8 सितंबर 2025

योगी संत हांडी भिडंग जी का आना

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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योगी संत हांडी भिडंग जी का आना 
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एक समय निम्बार्क संप्रदाय के महान् योगिराज संत हांडी भिडंग जी के मन में भावना उठी कि - आचार्य जैतराम जी की परीक्षा लेनी चाहिये कि वे कितनी शक्ति रखते हैं । इसके लिये उन्होंने अपनी योग शक्ति से अपना एक दुर्बल ब्राह्मण का सा रुप बनाया और हाथ में एक झोली उठा कर नारायणा दादूधाम में प्रवेश किया । 
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जैतरामजी महाराज के पास पहुँचे तथा प्रणाम करके बोले - भगवन् ! मैं दरिद्री दुर्बल ब्राह्मण हूं । मेरी कन्या का पाणिग्रहण संस्कार चाहता हूं किन्तु मैं जिस प्रकार दान लेना चाहता हूं उस प्रकार देने वाला मुझे कोई मिला ही नहीं । अब मैं आपकी आशा करके आपके पास आया हूं । जैतराम जी महाराज उनको अपनी योग शक्ति से पहचान तो गये फिर भी बोले - आप कैसे लेना चाहते हैं ? वैसे ही आपको दिया जायगा । 
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योगिराज हांडी भिडंग जी ने कहा - आप किसी से मंगवावें नहीं और इसी क्षण मैं चाहता हूं उतना धन मुझे दें तो ही मैं लूंगा । उनकी बात सुनकर आचार्य जैतराम जी ने वहां बैठे ही अपने दोनों हाथों की अंजली बनाई और बोले, लो, हांडी भिडंग जी ने अपनी झोली आगे करी तो उनको मोहरों की अंजली झोली में पडती हुई दिखाई दी । 
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कहा भी है - जब इच्छा हो संत की, तिहि क्षण लक्ष्मी आय । 
जैत जीवनी में यही, बहु थल देखा जाय ॥२०७ द्द.त.११ ॥
यह देखकर संत हांडी भिडंग जी परम संतुष्ट हुये और अपने रुप में आकर बोले - आपको धन्य है, जैसा मैंने सुना था वैसा ही आज आप का प्रभाव प्रकट रुप में अपने नेत्रों से देख रहा हूँ । आप संत समाज की कीर्ति का विस्तार करने वाले महान् संत हैं । आज आपके दर्शन से मैं अपने को धन्य मानता हूँ । 
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उक्त प्रकार उनके वचन सुनकर आचार्य जैतरामजी महाराज ने कहा - यह तो दादूजी महाराज का प्रताप है । इस दादूधाम पर सभी को संतोष मिलता है । अत: आप को भी प्रसन्नता होनी ही चाहिये थी । अब आप भोजन करिये । फिर हांडी भिडंग जी ने भोजन प्रसाद इच्छानुसार किया पश्‍चात् विचर गये । उक्त प्रकार आचार्य जैतराम जी महाराज के पास दर्शनार्थ अनेक उच्च कोटि के संत आते ही रहते थे और सभी ही उनके दर्शन सत्संग से तृप्त होकर जाते थे । 
(क्रमशः) 

गंगागिरि जी द्वारा पारस भेंट

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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गंगागिरि जी द्वारा पारस भेंट
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एक गंगागिरि नामक महात्मा जैतराम जी की महिमा सुनकर जैतराम जी के दर्शन करने नारायणा दादूधाम में आये और जैतराम जी महाराज के दर्शन तथा सत्संग करके अति प्रसंग हुये । फिर वे सत्संग के लिये कुछ दिन दादूद्वारे में ही ठहर गये । वहां की संत - सेवा की पद्धति देखकर तथा आगत दीन गरीबों को भोजन देना आदि रुप परोपकार देखकर गंगागिरि जी बहुत प्रसन्न हुये ।
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उनकी तपस्या द्वारा अपने इष्ट से उनकी इच्छानुसार एक पारस का टुकडा मिला था । उस पारस के टुकडे को संत सेवा व परोरकार के लिये जैतराम जी के भेंट करने का विचार अपने मन में करने लगे और एक दिन जैतराम जी महाराज को आसन पर विराजे देखकर गंगागिरि उनके पास गये प्रणाम करके उस पारस के टुकडे को उनकी भेंट करते हुये बोले - महाराज ! यह पारस पत्थर है । इससे यहां की संत सेवा और परोपकार का कार्य सदा चलता रहे, इसीलिये मैं यह आपको भेंट कर रहा हूं । 
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जैतराम जी ने पूछा - इसमें क्या विशेषता है ? तब वहां एक भंडारी लोहे की चाबियां पटककर किसी कार्य के लिये गया था । गंगागिरि ने वे चाबियां उठाकर कहा - देखिये इसकी विशेषता । फिर उनको पारस से छुवाया तब वे सोने की हो गई । यह देखकर जैतरामजी महाराज ने कहा - यही विशेषता है ? गंगाराम ने कहा - यह कम है क्या ? लोहे को सोना तो इसके बिना अन्य कोई बना ही नहीं सकता । 
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जैतराम जी ने कहा - यह लोहे को ही सोना बनाता है अन्य को तो नहीं बना सकता । फिर जैतराम जी महाराज ने कहा - अच्छा आप देखिये ऐसा कहकर अपने नीचे के गलीचे के चारों कोणों पर संगमरमर के पत्थर के मोगरों को उठाकर कम से कम अपने ललाट के स्पर्श करके कहा देखो ये किसके बने हुये हैं ? गंगागिरि जी ने देखा कि - ललाट के स्पर्श से पूर्व वे पत्थर के थे किन्तु ललाट के स्पर्श होते ही वे दिव्य - सुवर्ण के हो गये हैं । 
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यह आश्‍चर्य रुप करामात देखकर गंगागिरि ने प्रणाम करके कहा - महाराज आपकी लीला अपार है । आप तो नजर दौलत हैं, आपको पारस की क्या आवश्यकता है । अब मैं आपकी महान् शक्ति को पहचान गया हूं । मेरी पारस देने की धृष्टता अब आप क्षमा ही करेंगे । ऐसा कहकर प्रणाम किया और अपने आसन पर चले गये । फिर इच्छानुसार दादूद्वारे में निवास करके विचर गये । 
(क्रमशः) 

शनिवार, 6 सितंबर 2025

जैत सरीखा जौहरी, दादू के दरबार

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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फिर सिक्खों के सहित सिक्ख गुरु ने दादू द्वारे से प्रस्थान किया तब मार्ग में साथ के सिक्खों ने अपने गुरु जी से कहा - आपने जैतराम जी को शीश नमाकर प्रणाम कैसे किया ? हमारे गुरुओं की मर्यादा है, वे किसी अन्य को प्रणाम न करें । 
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तब सिक्ख गुरु गोविन्दसिंह जी ने कहा - प्रेम के प्रवाह में नियम बह जाता है । मेरे मन में तो यह विचार था ही नहीं कि वे दूसरे हैं, उनके मन में भी द्वैत भाव नहीं था । फिर वे भी तो एक महान् संत संप्रदाय के आचार्य थे । उन्होंने भी तो हाथ ऊंचा उठा कर प्रणाम किया था । और विचार द्वारा तो वे भी हमारी ही आत्मा थे, दूसरे कहां थे । 
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फिर आप सब ने भी उनकी विलक्षण शक्ति प्रत्यक्ष देखी थी और वहां के सभी संतों का हमारे प्रति कितना प्रेम था । उनके प्रेम व्यवहार का हम वर्णन भी नही कर सकते, अनुभव ही कर रहे हैं । अत: उनको प्रणाम करना दूसरे को प्रणाम करना नहीं था । फिर भी आप लोग आक्षेप करते हैं तो इस मर्यादा भंग रुप भूल का मुझ पर दंड कर सकते हैं । 
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तब सिक्खों ने परस्पर विचार किया क्या दंड किया जाय ? एक सिक्ख ने कहा - १००००)रु. दूसरे ने कहा - अधिक है ५०००)रु. करें । तीसरे ने कहा - गुरु महाराज के क्या कमी है ? एक लाख करना चाहिये । फिर अन्य सब ने कहा - इतना नहीं, समय देखना चाहिये । १२५)रु. बहुत हैं । 
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यही निर्णय हो गया सर्व सम्मति से, किन्तु गुरु गोविन्दसिंह जी ने फिर भी कहा -  
मनहर - 
देखे हैं महन्त और ठौर ठौर देश देश, 
ऐसो कोऊ नांहिं देख्यो मारे फौज काम की ।
देखे हैं, नराणे बीच दादू पाट तेज पुंज, 
काम क्रोध मार डारे आशा शुद्ध धाम की ॥
भाग्यवान ज्ञानवान पर उपकार वान, 
देत दान जपे जाप माला राम नाम की ।
राजा बीच राणां बीच शाह पातशाह बीच,
सदा जैत जैत जैत जैत जैतराम की ॥१॥
दोहा - 
माया मोह लागे नहीं, तन मन मेल्या मार ।
जैत सरीखा जौहरी, दादू के दरबार ॥२॥
(क्रमशः)

सिक्ख गुरु और जैतराम जी की गोष्ठी

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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सिक्ख गुरु और जैतराम जी की गोष्ठी
इससे सिक्ख गुरु बहुत प्रभावित हुये थे और सब सिक्खों के सहित प्रेम से भोजन किया था । भोजन के पश्‍चात् विश्राम कर के फिर दोनों आचार्य एक साथ बैठे । इस समय सिक्ख गुरु गोविन्द सिंह जी ने प्रसंग चलाया कि हिन्दुओं पर विपत्ति आ रही है । इससे हिन्दू समाज को कैसे बचाया जाय ? हमने बहुत प्रयत्न किया है किन्तु सफलता नहीं मिल सकी है । 
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यह सुनकर जैतराम जी ने कहा - आपने हिन्दुओं को दु:ख में डालने वालों पर शस्त्र उठाये परन्तु शस्त्रशक्ति तो हमसे उनके पास अधिक है । शस्त्रों से तो सफलता तब ही मिलती है जब हमारी शक्ति विरोधी से दुगनी हो । अन्यथा सफलता में संशय ही रहता है । इस समय वे प्रबल हैं और हम में एकता नहीं है और एकता का प्रयत्न करने पर भी हो नहीं सकेगी । कारण - अभी उनके पुण्य शेष हैं । 
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अत: इस समय शस्त्रों से सफलता मिलना मेरे विचार से कठिन है । इस समय तो हम संतों के समभाव का आश्रय लेकर कि हम तो भाई भाई हैं, ऐसा कहकर अपने विनाश को रोकें । कहा भी है - 
समता ही संसार में, विजय हेतु दिखलात । 
गोविन्दसिंह से जैत ने, यही कही थी बात ॥३१ ॥द्द.त. ७  
युद्ध नहीं करें युद्ध करने से तो हम अपना ही विनाश करा लेंगे । 
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युद्ध से जो हुआ सो आप को अनुभूत ही है । अत: थोडा धैर्य रखने पर थोडे समय के पश्‍चात् ही विरोधियों का पतन आरंभ हो जायगा और उत्तरोत्तर ह्रास ही होता जायगा । अत: मेरे विचार से आप को अब युद्ध नहीं करना चाहिये । इतना कहकर जैतराम जी मौन हो गये । 
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सिक्ख गुरु गोविन्दसिंह जी भी फिर कुछ नहीं बोले । फिर सायंकाल की आरती का समय आ गया था । आचार्य जैतरामजी आरती में पधार गये । रात्रि में सिक्ख गुरु गोविन्दसिंह जी सिक्खों सहित दादू द्वारे में विराजे । फिर दूसरे दिन आचार्य जैतराम जी से मिल कर प्रस्थान करने लगे तब शिष्टाचार का आश्रय लेकर दोनों ने एक दूसरे को प्रणाम किया ।
प्रसन्न होय भोजन कियो, चलत नमायो शीश ।
गुरु दादू का पाट पर, जैत ज्योति जगदीश ॥
(क्रमशः)

शुक्रवार, 5 सितंबर 2025

गही बाज ने जैत की

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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फिर गुरु गोविन्द सिंह जी जैतरामजी से मिले तब उनकी परस्पर चर्चा हुई । उसमें पूर्व में जो युद्ध हुआ उसका प्रसंग भी आया, तब जैतरामजी ने कहा - हमारे महाराज दादू जी तो निर्वैरता में विश्‍वास रखते थे - इसके लिये सूरजप्रकाश के लेखक ने दो दोहे जिनको दादूजी के श्‍लोक नाम देकर लिखे हैं - 
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“दादू दावा दूर कर, बिन दावे दिन कट्ट ।  
केते सोदा कर गये, इस बनियां की हट्ट ॥”  
दूसरा दोहा यह बताया है कि - 
“जो कोई मारे ईट की, तो तिहिं फूल चढाय ।” 
तथा सहन करले और ब्रह्म भजन में मन लगावे । किन्तु दोनों ही दोहे दादू वाणी में नहीं हैं । 
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ग्रंथकार ने पंजाब में किसी से सुने होंगे, वे सुने सुनाये लिख दिये हैं । दादू जो का सिद्धांत उक्त दोहों के समान अवश्य है । उसको सुनकर गुरु गोविन्दसिंह जी ने कहा यह ठीक नहीं दावा अवश्य रखना चाहिये, जो दावा करे उसे दंड देना ही चाहिये । और ईंट मारे उसके पत्थर मारना चाहिये । जैतराम जी ने कहा - दादूजी तो निर्वैरता और सहन शक्ति को ही अधिक महत्व देते थे और उन्होंने लोगों के अत्याचारों को सहन ही किया था । समर्थ होने पर भी किसी को दंड नहीं दिया था । 
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उक्त प्रकार गोष्ठी करते हुये सिक्ख गुरु गोविन्द सिंह जी के मन में संकल्प हुआ कि इनके विषय में सुना जाता था कि ये बडे चमत्कारी हैं किन्तु अभी तक तो इनका कोई चमत्कार नहीं दिखाई दिया । जैतराम जी महाराज उनके मन के संकल्प को अपनी योग शक्ति से जान गये और अपने आसन के चारों कौणे अपने ही हाथों से उठाकर उनके नीचे सिक्ख गुरु गोविन्दसिंह जी को चारों धाम दिखा दिये । यह चमत्कार देखकर सिक्ख गुरु गोविन्दसिंह जी ने चर्चा बन्द कर दी । 
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तब उनसे कहा गया - भोजन तैयार हो गया है, अब आप अपने सिक्ख समाज के सहित भोजन करलें । यह सुनकर सिक्ख गुरु गोविन्दसिंह जी बोले - मेरे साथ बाज है, इसको पहले खिलाइये । इसके जीम लेने पर ही मैं भोजन करुंगा । 
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तब जैतराम जी ने अपने एक शिष्य को कहा - “जाओ भाई शीघ्र ही बाजराम के लिये ज्वार ले आओ ।” यह सुनकर सिक्ख गुरु गोविन्दसिंह हंसते हुये बोले - “भगवन् ! यह पक्षी मांसाहारी है, ज्वार नहीं खायेगा ।” यह सुनकर दादूपंथ के आचार्य जैतराम जी ने कहा - यह तो संतों का आश्रम है, यहां मांस कहां मिलेगा । आज तो बाजराम जी ज्वार ही चुग लेंगे । तुम लेकर आओ । 
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शिष्य ज्वार ले आया । फिर जैतराम जी महाराज ने बाज को कहा - बाजराम जी आज तो तुम ज्वार ही चुगलो - यहां आपको प्रतिदिन का आहार नहीं मिलेगा । यह कहते ही बाज ने चुगना आरंभ कर दिया और पेट भर ज्वार का आहार कर लिया था । कहा भी है -
बाणी अमोघ संत की, खग भी माने तास ।  
गही बाज ने जैत की, गोविन्द लख उल्लास ॥२१९॥द्द.स.११
(क्रमशः)

बुधवार, 3 सितंबर 2025

सिक्ख गुरु गोविन्दसिंह जी का आना

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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आचार्य जैतरामजी महाराज ने भेंट में आया हुआ सब धन सदाव्रत विभाग को दे दिया । नाभा, पटियाला आदि पंजाब की रामत करके हरियाणा होते हुये कांटी में आये । फिर फाल्गुण शु० ५ को नारायणा दादू धाम में पधार गये । वहां मर्यादा के अनुसार पंचमी को बडी धूमधाम से सामेला करके सब संत दादूद्वारे में लाये । 
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फिर कुछ समय पश्‍चात् सिक्खों के दशवें गुरु श्री गोविन्द सिंह जी दक्षिण की ओर जाने के लिये पंजाब से आ रहे थे । तब उन्हें स्मरण आ गया कि नारायणा दादूधाम के वर्तमान आचार्य उच्चकोटि के संत हैं, यह उन्होंने पंजाब में ही सुन लिया था, जब जैतराम जी महाराज पंजाब की रामत कर रहे थे तब आपको किसी ने सुना दिया था । 
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इससे गुरु गोविन्दसिंहजी ने साथी सिक्खों को कहा - नारायणा दादूधाम की यात्रा करके आगे चलेंगे । सिक्खों ने कहा ठीक है । फिर अपने सिक्खों के सहित आप नारायणा दादूधाम में पधार गये थे ।
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सिक्ख गुरु गोविन्दसिंह जी का आना ~ 
जैतरामजी महाराज को जब सूचना मिली कि सिक्खों के दशम गुरु दादू द्वारे आये हैं, तब उनके स्वागत सत्कार की व्यवस्था का यथोचित् प्रबन्ध करने की आज्ञा महाराज जैतरामजी ने कार्यकर्ता को दे दी । फिर उनको अच्छे स्थान में ठहरा दिया । 
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घोडो को घास डाल दिया, जल भरा दिया । सिक्खों के इतिहास सूरजप्रकाश में लिखा है - जब गुरु साहब नारायणा दादू द्वारे में पधारे तो वहां देखा - बहुत से साधु निरंजन निराकार निगुर्ण ब्रह्म की उपासना में लगे थे और स्थान २ पर दादू वाणी का पाठ तथा विचार कर रहे थे । गुरुजी का आना सुनकर सभी प्रसन्न हुये । 
(क्रमशः)

फकीर के मन में संकल्प

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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उक्त मर्यादा के अनुसार ही सर्व प्रथम आचार्य जैतराम जी महाराज ने वि. सं. १७५० में उतराधों के उमरा नगर में जाकर १०० शिष्यों के साथ चातुर्मास किया था । जिसमें नियमानुसार - निमंत्रण, सामेला(अगवानी), डेरा, प्रतिदिन आज्ञा, जागरण, आरती प्रति एकादशी अमावस्या, पूर्णिमा को विशेष रुप से रसोई, आदि व्यवहार हुआ था । 
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आषाढ शुक्ला ११ से कार्तिक शुक्ला ११ चातुर्मास हुआ था । आचार्य जी को भेंट ११०१), हाथी की कीमत ५००), पोशाक का १२५) भंडारियों को १०१), साधुओं के कपडों के लिये ४००), अन्य टहलुओं को यथायोग्य लाग देकर आचार्य जी से दुशाला ओढा था । फिर वहां से रामत की तब प्रति मकानों में १०१) भेंट, २५) पूजा, १७) खर्च के, नियमानुसार सत्कार हुआ था । 
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उक्त प्रकार ही जैतराम जी महाराज ने रामत करते हुये समाज को उपदेश किया था । और गृहस्थ सेवकों ने भी अपनी श्रद्धानुसार सेवा करके उपदेश ग्रहण किया था । एक समय आचार्य जैतराम जी महाराज पंजाब देश में रामत कर रहे थे । 
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उन दिनों में वे पंजाब के एक पंचाला ग्राम में पधारे, तब वहां की जनता आचार्य जी को अगवानी में आई । उस समय बाजे बज रहे थे, कीर्तन होता जा रहा था । वहां पहुँचे हुये फकीर भी रहते थे । उन पर वहां की आसपास के प्रदेश की जनता बहुत श्रद्धा रखती थी । उस फकीर ने आचार्य जी को लाने जाने वाले समुदाय को जाते देखकर किसी से पूछा - आज यह बाजा बजाते और गाते हुये कहां जा रहे हैं ? उत्तर मिला नारायणा दादू धाम राजस्थान, दादूपंथ के आचार्य यहां आये हैं उनको लाने जा रहे हैं । 
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यह सुनकर उस फकीर के मन में संकल्प हुआ - “यदि आचार्य जी मेरे बिना मागे ही हरे रंग का दुशाला मुझे देंगे तो मैं भी इनको महात्मा मानकर इनके दर्शन करने जाऊंगा ।” फकीर इस प्रकार अपने मन में विचार कर रहा था । जैतराम जी महाराज बहुत उच्चकोटि के महात्मा थे । उन्होंने उस फकीर के मन की बात अपनी योगशक्ति से जान ली और उसकी कुटिया के पास आते ही अपनी सवारी को रोक कर, एक हरे रंग का दुशाला अपने एक शिष्य के हाथ में देकर कहा - इस फकीर को ओ़ढा दो । 
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उसने फकीर के पास आकर कहा - हमारे महाराज ने आपको उढाने के लिये दुशाला भेजा है, लो ओ़ढलो, ऐसा कह कर दुशाला फकीर को ओ़ढा दिया - फिर वह फकीर आचार्य जी के पास आया और प्रणाम करके बोला - आप समर्थ महात्मा हैं । मैंने मन में संकल्प किया था । आपने उसे जानकर मेरे को हरे रंग का दुशाला ओ़ढाया है । आपकी महिमा अपार है । 
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फिर उसने अपनी प्रतिष्ठा का ध्यान छोड कर जैतरामजीकी महिमा करना आरंभ कर दिया । वह जनता को कहता था “जैतराम महाराज महान् सिद्ध पुरुष है, मेरे मन के संकल्प को भी जैतराम जी महाराज जान गये थे । अत: इनकी जितनी सेवा की जाय उतनी थोडी ही है ।” 
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फिर तो वह फकीर महात्मा जिस और जैतराम जी जाते थे, उनसे पहले उन ग्रामों में जाकर जैतराम जी महाराज की महिमा करता था । जितने प्रदेश में उस फकीर महात्मा की प्रतिष्ठा थी उतने प्रदेश में वह फकीर जैतराम जी महाराज की प्रार्थना करके ले गया और बहुत सेवा कराई । लाखों मानव उस फकीर महाराज की प्रेरणा से जैतरामजी महाराज के दर्शन करने आये और श्रद्धानुसार भेंट चढाई ।  
(क्रमशः) 

मंगलवार, 2 सितंबर 2025

आश्रमों की परिक्रमा

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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आरती का कार्य हो जाने के पश्‍चात् पहले तो गरीब गुहा व खेजडाजी का दर्शन करें फिर अपने आसनों पर जाकर भजन करें । अष्टमी को मंदिर में जागरण करें । ११ को आचार्य जी की बारहदरी में जागरण और संतों के आश्रमों की परिक्रमा करें । १२ को इच्छानुसार जायें या ठहरें । 
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हमेशा के लिये मंदिर व दादू द्वारे की सीमा में किसी भी प्रकार के नशे की वस्तुयें काम में नहीं लावें । कांदा, लहसुन आदि तामसी वस्तुयें दादू जी के भंडार में नहीं आनी चाहियें । इसका संकेत मंगलदासजी ने भी सुन्दरोदय ग्रंथ के तृतीय प्रकाश में किया है -
“कांदा लशुन न बरतिये, गुरुदादू भंडार । 
मंगल गुरु अर्पण तजे, लहै न सिरजनहार ॥८३ ॥” 
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दादू द्वारे की सीमा में छत्री लगाकर चलना, सवारी पर बैठकर चलना तथा अन्य कोई ऐसी ही विशेष बात आचार्य जी से भिन्न व्यक्ति को नहीं करना चाहिये । आचार्य जी की गद्दी, आसन, चौका पर पैर न रखें । इनको श्रद्धा की दृष्टि से देखें । आचार्यजी के वस्त्र आदि को अपने उपयोग में न लें । आचार्यजी की गद्दी के सामने नम्रतापूर्वक सभ्यता से बैठे ।
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यह उक्त सभी प्रकार की मर्यादा समाज के सभी संतों ने मिलकर जैतराम जी महाराज से बन्धराई थी । सो चलती आ रही है । उक्त मर्यादा में चलने से ही समाज की निरंतर उन्नति होती रही थी । 
(क्रमशः) 

सोमवार, 1 सितंबर 2025

सदाव्रत सदा प्रतिदिन

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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दादू द्वारे में सदाव्रत सदा प्रतिदिन लगा रहना चाहिये । किसी भी जाति का और किसी भी देश का हो दादू द्वारे में आये को बना हुआ भोजन अवश्य मिलता रहना चाहिये । जो बना हुआ नहीं जी में, स्वयं पाकी हो उसको सूखा सामान देना चाहिये । दादू पंथ या किसी भी पंथ का साधु महात्मा या गृहस्थ सज्जन आवे तो उसका यथोचित स्थान, भोजन आदि द्वारा सत्कार किया जाना चाहिये । 
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दादू जी महाराज की आविर्भाव तिथि और ब्रह्मलीन होने की तिथि को विशेष रुप से आरती, जागरण, रसोई प्रसाद वितरण आदि द्वारा उत्सव मनाना चाहिये । दादू जी महाराज की स्मृति में नाग पंचमी, वसन्त पंचमी को भी उत्सव मनाया जावे । 
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मेला के समय फाल्गुण शुक्ला चतुर्थी को बाजरे की खीचडी का प्रसाद बांटे । उस को साधु लोग सुखाकर अपने पास रखें और प्रतिदिन भोजन से पूर्व प्रसाद रुप से एक दाना लेते रहें । फाल्गुण शुक्ला पंचमी को बाहर से पधारे हुये आचार्य जी को लाने, सामने सभी दादू पंथी साधु व सेवक जावें । वहां दंडवत प्रणाम करके भेंट करें और हाथी की सवारी पर बैठाकर संकीर्तन करते हुये बडे समारोह से दादू द्वारे में लावें । 
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आचार्य जी के आने के पश्‍चात् मेला का आरंभ करें और उस दिन मेले में आये सभी साधुओं को आचार्य जी की और से जिमाया जाय । अष्टमी को मंदिर में दादू वाणी रुप दादूजी महाराज की आरती उतारी जाय उस समय कोई भी साधु या गृहस्थ अपने नाम की आरती उतारना चाहें वे रु. १), २१), ५१) आरती में चढाकर आरती उतार सकते हैं । बाकी के लोग शक्ति अनुसार उन्हीं आरतियों में भेंट चढा सकते हैं ।   
(क्रमशः)

रविवार, 31 अगस्त 2025

श्रीदादू द्वारे और मंदिर की मर्यादा

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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श्रीदादू द्वारे और मंदिर की मर्यादा
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आचार्य के शिष्य में से जिसको योग्य समझ कर स्वयं आचार्य ही जिस शिष्य के लिये संकेत कर दें कि - इसे ही मेरे ब्रह्मलीन होने पर गद्दी पर बैठाना । तब पूर्व आचार्य के ब्रह्मलीन होने पर उसी को आचार्य बनाया जाय । आचार्य गद्दी पर विराजने पर सब दादूपंथी साधु या सेवक उसी को अपने आचार्य मान कर भेंट दंडवत आदि द्वारा समादर सत्कार करें । 
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स्थान का कार्य करने के लिये दो भंडारी(कार्यकर्ता ) पूर्वाचार्य के शिष्य मंडल से योग्य देखकर रखें जावें, जो स्थान के पूर्ण हितेषी हों और आचार्य के अनुयायी हों समाज के साधारण सदस्य उनकी इज्जत महन्त संतों के समान करें । 
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आचार्य जी के अनुपस्थिति में भंडारियों की आज्ञा और इज्जत आचार्य जी के समान करें अर्थात् आचार्य जी के प्रतिनिधि ही मानें । दोनों समय श्री दादू जी महाराज की आरती प्रात: धूपादि और सायं आरती अष्टक आदि अनेक स्तोत्रों का गायन किया जावे । 
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प्रात: श्री दादू वाणी जी की कथा के पश्‍चात् आचार्य खेजडा जी के दर्शन करने जावें । सायंकाल की आरती के पश्‍चात् नियम से दादू जी महाराज के उपदेशानुसार सब को ब्रह्म चिन्तन अवश्य करना चाहिये और प्रात: भी सांयकाल के समान ही ब्रह्म चिन्तन करना चाहिये तथा चिन्तन का अभ्यास निरंतर करने का बढाना चाहिये । 
(क्रमशः) 

शनिवार, 30 अगस्त 2025

श्रीदादूवाणीजी की कथा

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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प्रतिदिन एक समय यथोचित रसोई जिमावे और सायंकाल के भोजन का समान देवे । प्रतिदिन प्रात: श्रीदादूवाणीजी की कथा में आवे और मध्य दिन में अपनी या ग्राम के भक्तों की रुचि के अनुसार गीता आदि उत्तम ग्रंथ की कथा हो उसमें भी आवे और श्रद्धा से श्रवण करे । 
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सायंकाल आरती में आवे और नाम संकीर्तन समाप्त होने पर ही उठकर जावे । कोई कार्य विशेष हो जाय तो ही आरती, अष्टक, नाम संकीर्तन को छोड कर जाय, नहीं तो आदि से अंत तक बैठा रह कर अन्त में दादू वाणी जी को दंडवत तथा आचार्य जी को दंडवत करके सब संतों को सत्यराम करके ही जावे । 
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चातुर्मास काल में भोजन के समय प्रतिदिन आचार्य को १)रु. आज्ञा का भेंट करें । एकादशी, अमावस्या, पूर्णमासी को जागरण और भोजन से पूर्व प्रात: आरती उतार कर विशेष रुप से भोजन करावे । चातुर्मास समाप्ति पर ११०१)रु. आचार्य जी के भेंट करे और ५००)रु. हाथी के, २५०)रु. पालकी के, १२५)रु. पोशक के, १२५)रु. पोशाक के, १०१)रु. भंडारियों के, ४००)रु. साधुओं के कपडों के तथा पुजारी, कथा - वाचक , कोठारी और अन्य टहलुओं आदि का भी यथोचित सत्कार करें । 
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आचार्य चातुर्मास समाप्ति पर चातुर्मास कराने वाले महानुभाव स्थानधारी को दुशाला उढावें और उन को संत पदवी दें । जिससे अपने समाज में वह आदरणीय समझा जावे । वे जब आचार्यजी के पास आवें तब भेंट चढाकर दंडवत करने पर आचार्य जी खडे होकर उनसे मिलें । अधिकारी महन्तों से दूसरे नम्बर पर उनकी इज्जत समझी जावे । 
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पंक्ति में भोजन के समय आचार्य जी की चौकी और उनका आसन लगाया जावे । महन्त संत पांतिया पर बैठें । भोजन समाप्ति पर वृद्ध भगवान, दादूजी और कुछ श्रेष्ठ भक्तों तथा वर्तमान आचार्य से पूर्व के आचार्य तक की जय बोलकर पंक्ति से उठें । आचार्य जी पंक्ति में नहीं हों तो अन्य महन्तों के भी चौकी लगाई जावे ।
(क्रमशः)