*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= माया का अंग १२ =*
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*दादू झूठा संसार, झूठा परिवार,*
*झूठा घर बार, झूठा नर नार, तहाँ मन माने ।*
*झूठा कुल जात, झूठा पितु मात,*
*झूठा बंधु भ्रात, झूठा तन गात, सत्य कर जाने ।*
*झूठा सब धंध, झूठा सब फंध,*
*झूठा सब अंध, झूठा जाचंध, कहा मग छाने ।*
*दादू भाग, झूठ सब त्याग,*
*जाग रे जाग, देख दीवाने ॥४३॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! यह संसार मिथ्या है । कुटुम्ब, स्थान, मकान, स्त्री - पुरुष का नाता, इनमें क्या मन आसक्त करता है ? वंश, गोत्र, मातृ - पितृ का स्नेह, प्रेम, भ्राता का सम्बन्ध, ये सभी मिथ्या हैं । इनके भ्रम में, हे अंधों ! हे विषय - सुख की याचना करने वाले अविवेकीजनों ! परमेश्वर की भक्ति का मार्ग, जन्म - जन्मान्तरों से त्यागकर माया का मार्ग अब क्यों छानते हो ? हे बहिर्मुख प्राणी ! हरि की प्राप्ति का मार्ग कौन नहीं जानता है ? हे मूर्ख ! हे दीवाने! इस संसार के इन मिथ्या सम्बन्धों को छोड़कर, इस माया के जाल से अलग होकर, अन्तःकरण को शुद्ध करके, अज्ञान - निद्रा से जाग कर परमेश्वर के स्वरूप का साक्षात्कार कर । इसी में तेरा कल्याण है ॥४३॥
(क्रमशः)
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