गुरुवार, 14 मार्च 2013

= माया का अंग १२ =(४१/४२)

॥दादूराम सत्यराम॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
.
*= माया का अंग १२ =*
.
*विष सुख मांहैं रम रहे, माया हित चित लाइ ।*
*सोई संतजन ऊबरे, स्वाद छाड़ि गुण गाइ ॥४१॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! अज्ञानी संसारीजन, मायिक सुखों में चित्त के हित में रम रहे हैं अर्थात् विषय - सुख में लग रहे हैं । परन्तु कोई विवेकी संतजन ही विषय - सुखों को त्यागकर गोविन्द के गुणानुवाद गाते हैं, वे ही माया के प्रभाव से मुक्त होते हैं ॥४१॥ 
दुरन्तेष्विन्द्रियार्थेषु सक्ता: सीदन्ति जन्तव: । 
ये त्वसक्ता महात्मन: ते यान्ति परमां गतिम् ॥ 
(इन्द्रियों के दुर्दान्त विषयों में आसक्त प्राणी सदा दु:खी रहते हैं । जो महात्मा इन विषयों में आसक्त नहीं होते, वे परमगति को प्राप्त होते हैं ।) 
- महाभारत
.
*आसक्तता मोह*
*दादू झूठी काया झूठ घर, झूठा यहु परिवार ।*
*झूठी माया देखकर, फूल्यो कहा गँवार ॥४२॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! यह काया शरीर मिथ्या है । घर - द्वार भी मिथ्या है । अज्ञानता से जो अपना परिवार माना है, विचार करने से वह भी मिथ्या है । हे गँवार ! विषय - सुख के प्रेमी ! इस मिथ्या मायावी विषय - सुखों को देखकर क्या फूल रहा है अर्थात् क्या राजी हो रहा है ?।४२॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें