शुक्रवार, 15 मार्च 2013

= माया का अंग १२ =(४४-४६)

॥दादूराम सत्यराम॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= माया का अंग १२ =*
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*दादू झूठे तन के कारणै, कीये बहुत विकार ।*
*गृह दारा धन संपदा, पूत कुटुम्ब परिवार ॥४४॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! इस मिथ्या शरीर के लिए तुमने बहुत विकार किये हैं । स्त्री, पुत्र, धन, पौत्र, इन परिजनों के लिये भी तुमने बड़े - बड़े पाप कर्म किये हैं ॥४४॥ 
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*ता कारण हत आतमा, झूठ कपट अहंकार ।*
*सो माटी मिल जायगा, बिसर्या सिरजनहार ॥४५॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! तुमने अपने मिथ्या परिवार के लिए मिथ्या भाषण, कपट, अहंकार आदि द्वारा बहुत से जीवों की हत्या की है और अपनी जीवात्मा की भी हत्या करते हो, अर्थात् स्वस्वरूप को भी तुम भूल गये हो । परन्तु यह स्थूल शरीर तो एक दिन मिट्टी में मिलेगा, इसके लिए तुम क्यों परमेश्‍वर को भूलते हो ? । ४५॥ 
मात पिता दारा वसु, भ्रात कुटुम्ब परिवार । 
तात गात निज आपणो, रहै न हरि सँभार ॥ 
ममता माया लागियो, समता छोड़ी मूढ । 
भ्रमता डोलै हरि सदा, रमता लह्यो न गूढ ॥ 
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*दादू जन्म गया सब देखतां, झूठी के संग लाग ।* 
*साचे प्रीतम को मिले, भाग सके तो भाग ॥४६॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! यह मनुष्य जन्म मायिक पदार्थों को देखने और भोगने में ही जा रहा है । अब तुम्हें सत्यस्वरूप प्यारे प्रीतम परमेश्‍वर से मिल कर मनुष्य जन्म को सार्थक बनाना है, तब तो इस मिथ्या माया - प्रपंच को त्याग कर भाग सकते हो तो भागो । इसी में तुम्हारा कल्याण है ॥४६॥ 
अह: सु गण्यमानेषु क्षीयमाने तथाऽयुषि । 
जीविते लिख्यमाने च किमुत्थाय न धावसि(महाभारत)
(अहो ! इन गिनती के दिनों में आयु बीतती जा रही है, जीवन का लेखा लिखा जा रहा है । अत: जल्दी से उठकर भगवान् की शरण में क्यों नहीं दौड़ जाता ?)
(क्रमशः)

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