मंगलवार, 19 मार्च 2013

= माया का अंग १२ =(६४-६६)

॥दादूराम सत्यराम॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= माया का अंग १२ =*
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*दादू यह तो दोज़ख देखिये, काम क्रोध अहंकार ।*
*रात दिवस जरबौ करै, आपा अग्नि विकार ॥६४॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! मनुष्य के शरीर में यह काम, क्रोध, अहंकार ही नरक का रूप है । अज्ञानी मनुष्य मिथ्या शरीर का आपा, कहिए सत्यता का अध्यास करके विषय - विकारों में रात - दिन जलते रहते हैं ॥६४॥ 
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*विषय हलाहल खाइ कर, सब जग मर मर जाइ ।*
*दादू मोहरा नाम ले, हृदय राखि ल्यौ लाइ ॥६५॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! विषय आसक्त मनुष्य हलाहल विषयों को खाकर(भोगकर) सम्पूर्ण संसार के पामर विषयी मनुष्य बारम्बार जन्मते मरते रहते हैं । मोहरा, जहर निवारण करने वाली एक दवा होती है । वैसे ही जहर - मोहरा रूप परमेश्‍वर का नाम है, उसको हृदय में धारण करके स्मरण करने वाले पुरुषों का विषय - वासना रूपी जहर नष्ट हो जाता है और फिर वे परम गति को प्राप्त हो जाते हैं ॥६५॥ 
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*जेती विषया विलसिये, तेती हत्या होइ ।*
*प्रत्यक्ष मानुष मारिये, सकल शिरोमणि सोइ ॥६६॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! यह अज्ञानी जीव विषय आसक्त स्त्री के साथ इन्द्रिय - स्वाद के लिए जितनी बार संभोग करता है, उतने ही मनुष्यों की हत्या होती है, क्योंकि सर्व योनियों में सर्व से शिरोमणि यह मनुष्य का शरीर है । किन्तु संसारी पुरुष विषय - स्वादों में फँसकर प्रत्यक्ष ही मनुष्य की हत्या करते हैं । हत्या पांच प्रकार की होती है - ब्रह्म हत्या, राज हत्या, स्त्री हत्या, बाल हत्या, गुरु हत्या । इन सब हत्याओं में बाल - हत्या ही मुख्य है । विषय प्रवृत्ति द्वारा संसारीजन बाल - हत्या के सदा ही दोषी बनते हैं ॥६६॥ 
(क्रमशः)

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