मंगलवार, 19 मार्च 2013

= माया का अंग १२ =(६७-६९)

॥दादूराम सत्यराम॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= माया का अंग १२ =*
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*विषया का रस मद भया, नर नारी का मांस ।*
*माया माते मद पिया, किया जन्म का नाश ॥६७॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! जो अज्ञानी आत्म - विमुखी विषय - रस के मद में आसक्त होकर स्त्री या पुरुष आपस में प्रेमरूपी मांस पर रीझते हैं, सो माया में मतवाले होकर विषय - भोग रूपी मद को पीकर मनुष्य - जन्म को वृथा गँवाते हैं । यह मनुष्य - जन्म राष्ट्र - सेवा और आत्म - प्राप्ति के लिए ईश्‍वर ने दिया है ॥६७॥ 
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*दादू भावै शाक्त भक्त हो, विषय हलाहल खाइ ।*
*तहँ जन तेरा राम जी, सपने कदे न जाइ ॥६८॥*
टीका - हे राम जी ! हे परमेश्‍वर ! चाहे तो अनीश्‍वरवादी हो या व्यक्ति का उपहास हो या सकाम भक्ति करने वाला, जो हलाहल विष रूपी विषय को भोगते हैं, वहाँ अर्थात् उनके यहाँ, परमेश्‍वर के सच्चे भक्त संतजन स्वप्न में भी नहीं जाते, जागृति में तो जावे ही क्या ? । ६८॥ 
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*दादू खाडा बूजी भगत है, लोहरवाडा मांहि ।*
*परगट पैंडाइत बसैं, तहँ संत काहे को जांहि ॥६९॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! ‘लोहरवाड़ा’ कहिए, लहू और मांस का वाड़ा रूप जो कामी स्त्री का शरीर है, वह माया मोह, काम, क्रोध, लोभ आदिक कालरूप ठगों का स्त्री के शरीर में मानो प्रत्यक्ष निवास है । इसलिए हे साधना में चलने वाले साधक पुरुषों ! इस काम - वासना वाली स्त्री से बच कर रहो, तब ही माया के फंदों से छुटकारा है, अन्यथा नहीं ॥६९॥ 
प्रसंग : - लोहरवाड़ा गाँव टौंक जिला में है । वहाँ वैरागी साधु भेषधारी रहते थे । जब राजस्थान में ब्रह्मऋषि दादू दयाल महाराज की, उनके ज्ञान - ध्यान को सुनकर हिन्दू मुसलमानों में भारी प्रतिष्ठा हुई । तब टौंक में माधोकाणी महात्मा ने ब्रह्मऋषि गुरूदेव को टौंक पधारनेका आमंत्रण दिया और ब्रह्मऋषि टौंक पधारे । वहाँ की जनता को अपने अमृतमय उपदेशों से तृप्त किया । ब्रह्मऋषि की मान प्रतिष्ठा को वंचक लोग सहन न कर सके । तब लोहरवाड़े के निवासी ईर्ष्यालु साधुओं ने महाराज को लोहरवाड़े पधारने का आमंत्रण दिया ।
टौंक से जब महाराज लोहरवाड़े पधारे, तो उन कपटी साधुओं ने जमीन में एक चौड़ा गड्ढा खोदा, उस पर फूल वगैरा बिछाये, ऊपर चद्दर लगा दी । सामने किनारे मसनद और पतली सी गद्दी बिछा दी । फिर गाजे - बाजे से गाँव वालों को साथ लेकर ब्रह्मऋषि गुरुदेव की अगवानी की । जब अस्थल के दरवाजे में अन्दर प्रवेश किया, तो गाँव की जनता को ठगों ने बाहर ही रोक दिया । जिस जगह गड्ढा था, गुरुदेव ने अपनी काली छड़ी से उस चद्दर का एक कोना पलटा । "गड्ढे में ब्रह्मऋषि अपने शिष्यों के साथ गिर जाएँगे और इनको जमीन में यहीं दबा देंगे तथा लटा - पटा सब छीन लेंगे", ब्रह्मऋषि उनकी इस छलावा करतूति कर्म को देखकर तत्काल तलाक दी और यह साखी बोलकर ब्रह्मऋषि वहाँ से चल दिए । संतों को खाडे में दबाने वाले कपटी व ठग लोहरवाड़े गाँव में हैं । उस गाँव में राम के प्यारे क्यों जाएँगे ? वहाँ अब भी कोई सन्त नहीं जाता ।
(क्रमशः)

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