सोमवार, 1 अप्रैल 2013

= माया का अंग १२ =(१४२/१४४)

॥दादूराम सत्यराम॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= माया का अंग १२ =*
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*ब्रह्मा का वेद, विष्णु की मूर्ति, पूजे सब संसारा ।*
*महादेव की सेवा लागे, कहाँ है सिरजनहारा ॥१४२॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! सम्पूर्ण सांसारिक प्राणी ब्रह्मा का वेद कहिए, वेद में ब्राह्मण वाक्य जो सकाम कर्मों का विवेचन करते हैं, उन्हीं की सब उपासना कर रहे हैं और सोना, चांदी, तांबा, पीतल, पत्थर, मृतिका, काष्ठ आदिक मायिक पदार्थों की मूर्ति बनाकर विष्णु की पूजा करते हैं । वैसे ही शिवलिंग बनाकर पूजते हैं । उस सिरजनहार परमात्मा की, जिसने ब्रह्मा - विष्णु - महेश आदि को भी पैदा किया है और जिसका ध्यान ब्रह्मा - विष्णु आदिक भी धरते हैं, उपरोक्त उपासना करने वालों में उस निर्गुण व्यापक राम की उपासना करने वाला कोई भी नहीं है ॥१४२॥ 
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*माया का ठाकुर किया, माया की महामाइ ।*
*ऐसे देव अनंत कर, सब जग पूजन जाइ ॥१४३॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! संसारीजन ने मायावी पदार्थों के देवता और मायावी पदार्थों की ही महामाई बनाई है । ऐसे - ऐसे अनन्त देवताओं की कल्पना करके बहिर्मुख संसारीजन उन्हें पूजते हैं, परन्तु ऐसे अज्ञानीजन सच्चे परमात्मा से विमुख ही रहते हैं ॥१४३॥ 
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*माया बैठी राम ह्वै, कहै मैं ही मोहन राइ ।*
*ब्रह्मा विष्णु महेश लौं, जोनी आवै जाइ ॥१४४॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! यह राम की माया, रामरूप बनकर जगह - जगह लोक - परलोक में बैठी है और कहती हैं कि मैं ही मोहनराय हूँ अर्थात् सबको मोहित करने वाली मोहिनी रूप बनकर बैठी है । और कहाँ तक कहें ? ब्रह्मा, विष्णु, महेश को भी यह उत्पन्न करती है । उनके भी स्थूल शरीर मायामय ही बने हुए हैं ॥१४४॥ 
जगत ब्याही एक माई । 
एक भंडारी, एक कोठारी, एक दीवान लाई ॥ 
मायारूप माई ने जगत पैदा किया और इसका संचालन करने को एक भंडारी रूप ब्रह्मा बनाने वाला, कोठारी रूप विष्णु पालनहारा और दीवान रूप दंडाधिकारी शंकर संहारकर्ता हैं ।
(क्रमशः)

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