बुधवार, 10 अप्रैल 2013

= साच का अंग १३ =(१९/२१)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साच का अंग १३ =*
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*दादू मूये को क्या मारिये, मीयां मूई मार ।*
*आपस को मारै नहीं, औरों को हुसियार ॥१९॥*
टीका ~ हे काजियों ! बिचारे प्रारब्धवश पशुओं ने शरीर प्राप्त किया है, घास खाकर पानी पीते हैं । ऐसे गरीब जीवों को क्या मारते हो ? अगर तुम मुसलमानों में बड़े हो, तो अपनी ममता, अहंकार को मारो । अथवा अपने परिजनों को मारो, तब तुम्हें पता चले । औरों को, कहिए ईश्‍वर रचित जीवों को, अपने स्वादों के लिए तुम्हें मारने का क्या हक है ?।१९॥ 
जगन्नाथ गुण देह के, तिन्हीं को दण्ड देइ ।
और धणी की आत्मा, सबसूं करो स्नेह ॥ 
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*सांच*
*जिसका था तिसका हुआ, तो काहे का दोष ।*
*दादू बंदा बंदगी, मीयां ना कर रोष ॥२०॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जब ब्रह्मऋषि सतगुरु महाराज ने उक्त प्रकार से उपदेश किया, तो काजी बोला ~ “जिस खुदा का था, उसी खुदा के लिए कुर्बानी चढ़ा दी, तो फिर क्या दोष है ?” “हे मीयां ! रोष नहीं करना ! बन्दे को तो खुदा की बन्दगी करनी चाहिए अर्थात् खुदा के बनाए हुए जीवों की रक्षा करना ही खुदा की बन्दगी है । जीवों के शरीर में ही वह मालिक आप अच्छाई और बुराई को देख रहा है ॥२०॥” 
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*सेवक सिरजनहार का, साहिब का बंदा ।*
*दादू सेवा बंदगी, दूजा क्या धंधा ॥२१॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! परमेश्‍वर का सेवक कहलावे चाहे साहिब का बन्दा, इन दोनों को परमेश्‍वर और खुदा की सेवा से अलग कुछ कर्त्तव्य नहीं है । वह परमेश्‍वर की सेवा क्या है ? जन - समुदाय की सेवा, दीन - दुखियों की सेवा, बन्दगी कहिए खुदा की याद, खुदा की आज्ञा का पालन करना, अपने आपा अभिमान को त्यागना, हिंसा का त्याग करना, प्राणी मात्र से प्यार करना । इसके अलावा सेवक और बन्दे को दूसरे की हिंसा आदि काम नहीं करने चाहिये ॥२१॥ 
(क्रमशः)

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