मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

= साच का अंग १३ =(१६/१८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
.
*= साच का अंग १३ =*
.
*कुफ्र जे के मन में, मीयां मुसलमान ।*
*दादू पेया झंग में, बिसारे रहमान ॥१६॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जिनके मन में तो काफिरपना भरा है अर्थात् नीचता है और अपने को मुसलमानों में बड़ा कहलाता है । विषय - वासना रूपी झगड़ों में फँसा हुआ है अथवा नाना प्रकार के झगड़ों में फँसा है और रहमान परमेश्‍वर को भूला फिरता है, ऐसे नीच कर्म करने वालों का क्या हाल होगा ? खुदा ही जानता है ॥१६॥ 
.
*आपस को मारै नहीं, पर को मारन जाइ ।*
*दादू आपा मारे बिना, कैसे मिले खुदाइ ॥१७॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! असुर प्रकृति वाले मनुष्य अपने आपा रूप अहंकार को तो मारते नहीं और ईश्‍वर रचित सृष्टि के जीव हैं, उनको मारते जाते हैं, और कहते हैं कि इनको बहिश्त में भेज दिया । अपनी स्त्री, लड़के, बच्चे को मार कर बहिश्त में क्यों नहीं भेज देते हो ? अपना आपा, अहंकार, घमंड इनका त्याग किये बिना, खुद खामिन्द परमात्मा इन कामों से कैसे प्राप्त होगा ? ऐसे पुरुष दोजख को ही अर्थात् नरक को ही प्राप्त होंगे ॥१७॥
मार्‍या जाइ तो मारिये, मनवा बैरी मांहिं । 
‘रज्जब’ ताकूं छाड़ि कर, मारन कूँ कछु नाहिं ॥ 
.
*दादू भीतर द्वन्दर भर रहे, तिनको मारैं नांहि ।*
*साहिब की अरवाह को, ताको मारन जांहि ॥१८॥*
टीका ~ हे काजी मुल्लाओं ! तुम्हारे अन्दर राग, द्वेष विकार भरे हैं, हिन्दू - मुसलमानों का भेद - भाव भरा है, इनको तो तुम मारते नहीं हो और साहिब रचित गरीब जीवात्मा पशु, उनको मारने को जाते हो । ऐसे कामों से खुदा कब राजी होगा ? तुम्हारी नमाज अदा क्यूं कबूल करेंगे ?।१८॥
Their inside is full of defilements; them they kill not.
But to those who are souls of the lord, they go out to kill. 
‘जगन्नाथ’ गुन देह के, तिन ही कूँ दंड देह । 
और धणी की आतमा, सब सूं करो सनेह ॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें