शनिवार, 13 अप्रैल 2013

= साँच का अंग १३ =(३७/३९)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साँच का अंग १३ =*
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*सुमिरण नाम चितावणी* 
*साचा नाम अल्लाह का, सोई सत्य कर जाण ।*
*निश्‍चल कर ले बंदगी, दादू सो परमाण ॥३७॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! इस संसार में एक परमेश्‍वर का नाम ही सत्य है । इसलिये इस नाम को दृढ़ निश्‍चय से अन्तःकरण में स्मरण कर । यही तेरे उद्धार का प्रमाण है ॥३७॥ 
(सत्यराम - “सत्य ही ईश्‍वर है” - सुकरात)
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*आवट कूटा होत है, अवसर बीता जाइ ।*
*दादू कर ले बंदगी, राखणहार खुदाइ ॥३८॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! “आवट कूटा” कहिए - तीनों तापों से, सब जीवों की आयु बीतती जाती है और यह समय मनुष्य शरीर का व्यर्थ ही जा रहा है । इसलिए उस परमेश्‍वर की आराधना करिये, क्योंकि इन दुःखों से रक्षा करने वाले तो एक परमेश्‍वर ही हैं । उनका स्मरण करो ॥३८॥ 
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*इस कलि केते ह्वै गये, हिंदू मुसलमान ।*
*दादू सांची बंदगी, झूठा सब अभिमान ॥३९॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! इस संसार में कितने ही हिन्दू मुसलमान हो चुके हैं, परन्तु परमेश्‍वर की भक्ति के बिना, संसारीजन धर्म का वृथा ही अभिमान करके, निष्फल ही जीवन गमाते हैं । उनका ही जीवन सार्थक है, जो परमेश्‍वर का स्मरण करते हैं ॥३९॥ 
कहाँ हैं वे वीतराग, राग दोष जीते जिन, 
कहाँ हैं वे चक्रवर्ती सर्व द्वीपों के धनी ॥ 
कहाँ हैं वे वासुदेव जुद्ध केते विजै करे, 
कहाँ हैं वे कामदेव काम की सजै अनी ॥ 
कहाँ हैं वे रामचन्द्र रावण से जीते जिन, 
कहाँ हैं वे सालभद्र लच्छी जाके है घनी ॥ 
ऐसे हू अनन्त कोटि होइ के विलाइ गये, 
तेरी बारी पंच दिन काहे को करै मनी ॥ 
(क्रमशः)

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