शनिवार, 13 अप्रैल 2013

= साँच का अंग १३ =(४०/४२)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 

*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साँच का अंग १३ =*
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*कथनी बिना करणी*
*पोथी अपना पिंड कर, हरि यश मांहीं लेख ।*
*पंडित अपना प्राण कर, दादू कथहु अलेख ॥४०॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अपने शरीर को ही पुस्तक बनावें और इसमें हरि का यश गुणानुवाद लिखें और अपने प्राणों को ही पंडित बनाकर अलेख परमेश्‍वर के गुणों का ही कथन करें, क्योंकि जिसने यह मनुष्य जन्म दिया है, उसी ईश्‍वर के इसको अर्पण कर ॥४०॥ 
रामचरित द्विज बांचिया, राम हनु ! सुन नेम । 
द्रव्य दिया, दर्शन दिया, द्विज के उपजा क्षेम ॥ 
दृष्टान्त ~ एक ब्राह्मण ने रामचन्द्रजी तथा हनुमानजी को प्रतिदिन रामचरित - मानस सुनाने का नियम धारण कर लिया और दीर्घकाल तक सुनाता ही रहा । तब एक दिन हनुमानजी और रामचन्द्रजी ने उसे दर्शन देकर बहुत - सा द्रव्य दिया । इस प्रकार मन - वाणी के अविषय परब्रह्म का यश कथन करने वाले का योग - क्षेम भी प्रभु करते हैं और साक्षात्कार भी उसे कराते हैं ।
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*काया कतेब बोलिए, लिख राखूं रहमान ।*
*मनवा मुल्लां बोलिये, श्रोता है सुबहान ॥४१॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! इस शरीर को कुरान शरीफ बना और फिर इसमें रहमान के गुणानुवाद लिख कर रख और अपने मन को ही मुल्ला बनाकर खुदा के गुण गावे, तो सुबहान परमेश्‍वर उस पाठ को सुनेगा, तभी तुम्हारा कल्याण संभव है ॥४१॥ 
तन पुस्तक हरि नाम सुर, पिंड धर पंडित आइ । 
स्वास स्वास उच्चार कर, ‘जगन’ जगतपति पाइ ॥ 
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*दादू काया महल में नमाज गुजारूं, तहँ और न आवन पावै ।*
*मन मणके कर तसबीह फेरूं, तब साहिब के मन भावै ॥४२॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! इस शरीर रूप मस्जिद में ही मालिक की प्रार्थना करो और वहाँ पर काम, क्रोध, लोभ, मोह कोई भी विकार नहीं आने पावें, उनसे विरक्त रहो । ऐसी अपूर्व सेवा के लिए मनरूप मणियों की तसबीह(माला) फेरो । यह सेवा परमेश्‍वर को भाने वाली है । प्रभु में ही एकरस रहो, ऐसे भक्त प्रभु को प्रिय हैं ॥४२॥ 
(क्रमशः)

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