रविवार, 14 अप्रैल 2013

= साँच का अंग १३ =(४६/४८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
.
*= साँच का अंग १३ =*
.
*हर रोज हजूरी होइ रहु, काहे करै कलाप ।*
*मुल्ला तहाँ पुकारिये, जहँ अर्श इलाही आप ॥४५॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! इस प्रकार नित्य मालिक परमेश्‍वर की सेवा में लगे रहो, व्यर्थ बाहर के साधनों में क्यों दुःख पाते हो ? तुम्हारे हृदय स्थान में ही इलाही बेपरवाह मालिक विराजमान है । वहाँ पर ही अनहद ध्वनि रूप बांग देओ ॥४५॥ 
.
*हरदम हाजिर होना बाबा, जब लग जीवै बंदा ।*
*दायम दिल सांई सौं साबित, पंच वक्त क्या धंधा ॥४७॥*
टीका ~ हे बन्दे ! हे भाई ! हर समय, हर श्‍वांस में जब तक पिंड में प्राण स्थिर रहे, तब तक अपने दिल को मालिक में जोड़े रहो । अपने दिल को मालिक से कभी अलग मत करो । पांच ही समय नवाज गुजारने का क्या नियम है ?।४७॥ 
.
*हिंदू मुसलमानों का भ्रम*
*दादू हिंदू मारग कहैं हमारा, तुरक कहैं रह मेरी ।*
*कहाँ पंथ है कहो अलह का ? तुम तो ऐसी हेरी ॥४८॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! हिन्दू तो कहते हैं कि हमारा मार्ग, कहिये मत श्रेष्ठ है और मुसलमान लोग कहते हैं कि हमारी रहनी करणी अच्छी है । परन्तु हे मत - मतान्तरों वाले, साम्प्रदायी लोगो ! तुम्हारे कथन में परमेश्‍वर - प्राप्ति का सत्य मार्ग कौनसा है ? उसका विचार करो ॥४८॥ 
इक हिन्दू इक औलिया, दोऊ ही गलतान । 
जल मिल जल फोहा भरे, तुर्क तऊ अभिमान ॥ 
द्वै पख थाके दोइ दिस, करैं हटैं दिस निंद । 
रज्जब सांई सकल में, देख दशों दिस बंद ॥ 
हिन्दू मुसलमान अपनी - अपनी खैंचातानी में थक रहे हैं । आपस में आलोचना करते हैं । रज्जब जी महाराज कहते हैं कि वह परमेश्‍वर तो अणु अणु में व्याप्त है । अपने मन इन्द्रियों को अन्तर्मुख करके उसके स्मरण में लगे रहें तो हिन्दू साधक और मुसलमान औलिया दोनों ही ईश्‍वर को प्राप्त होते हैं । हौज के जल में और फुहारे के जल में कोई भिन्नता नहीं, ऐसे ही हिन्दू मुसलमान में कोई भेद नहीं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें