शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

= साँच का अंग १३ =(७०/७२)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साँच का अंग १३ =*
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*कहबा सुनबा मन खुशी, करबा औरै खेल ।*
*बातों तिमिर न भाजई, दीवा बाती तेल ॥७०॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! करनी बिना केवल कथनी मात्र से तो मन राजी होता है और दूसरा सुनकर राजी हो जाता है । परन्तु कहना और सुनना तब सफल है, जब उसको क्रियात्मक रूप में लावें, जैसे दीपक की बातें करने से घर का अंधेरा दूर नहीं होता है । दीपक, बत्ती, तेल और माचिस, इन सभी का संयोग होने से अन्धकार नष्ट होता है, ऐसे ही मन - इन्द्रियों को एकाग्र करके; श्रवण, मनन, निदिध्यासन द्वारा अन्तःकरण के अज्ञान का नाश होता है ॥७०॥ 
करणी बिन कथनी इसी, ज्यूं भल कै बिन बाण । 
खैंचन का परिश्रम है, घाव न होत निदान ॥ 
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*दादू करबे वाले हम नहीं, कहबे को हम शूर ।*
*कहबा हम थैं निकट है, करबा हम थैं दूर ॥७१॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! कायर वाचक ज्ञानी करने वाले नहीं है, वे अभिमानी दूसरों को उपदेश सुनाने को शूरवीर हैं । ऐसे अभिमानियों से नाना प्रकार का कथन तो नजदीक है, परन्तु उस उपदेश के अनुसार चलना उनसे बहुत दूर है । यह “करनी बिना कथनी” कथने वालों का स्वरूप है ॥७१॥ 
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*कहे कहे का होत है, कहे न सीझै काम ।*
*कहे कहे का पाइये, जब लग हृदै न आवै राम ॥७२॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! केवल कथनी कथने से क्या होता है ? अर्थात् इस लोक और परलोक का कोई भी काम, उसके सिद्ध नहीं होता है । रोटी - रोटी करने से पेट नहीं भरता, क्षुधा तो तब ही मिटेगी, जब रोटी खाएगा । ऐसे ही ज्ञान - ध्यान की बातें करने से मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती । जब तक हृदय में राम का स्मरण नहीं करेंगे, तब तक राम का प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं होता ॥७२॥
ब्रह्म ज्ञान जाण्यां नहीं, कर्म दिये छिटकाइ । 
तुलसी ऐसी आतमा, सहज नरक में जाइ ॥ 
(क्रमशः)

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