गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

= साँच का अंग १३ =(६७/६९)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साँच का अंग १३ =*
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*सो उपज किस काम की, जे जण जण करै क्लेश ।*
*साखी सुन समझै साधु की, ज्यों रसना रस शेष ॥६७॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! ऐसी अन्तःकरण में उपजी हुई बात किस काम की है, जिसको सुनकर प्रत्येक मनुष्यों में क्लेश पैदा हो । अर्थात् संतों की अनुभव वाणी रूप साखी को सुनकर, अपने कर्त्तव्य को समझ कर राम - रस को ऐसे पीवै, जैसे एक हजार मुख में दो हजार जिह्वाओं द्वारा शेष जी राम - रस पीते हैं । तभी कल्याण है ॥६७॥ 
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*दादू पद जोड़ै साखी कहै, विषय न छाड़ै जीव ।*
*पानी घालि बिलोइये तो, क्यों करि निकसै घीव ॥६८॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सांसारिक निषिद्ध भोगों में आसक्त हुए मनुष्य साखी और पद तो जोड़ते हैं और सुनाते हैं, परन्तु उनका मन विषय - वासनाओं का त्याग नहीं करता, तो उनका कथन ऐसा है, जैसा पानी के बिलोने से घी प्राप्त नहीं होता है । ऐसे उनके कथने से सत्य - स्वरूप परमात्मा उनको प्राप्त नहीं होगा ॥६८॥ 
मनां मनोरथ छाड़ि दे, तेरा किया न होइ । 
पानी में घी नीकलै, तो लूखा खाइ न कोइ ॥ 
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*दादू पद जोड़े का पाइये, साखी कहे का होइ ।*
*सत्य शिरोमणि सांइयां, तत्त न चीन्हा सोइ ॥६९॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! पद जोड़ने से और साखी बनाकर कहने से परमेश्‍वर की प्राप्ति नहीं होती । ऐसे तो स्त्रियां भी गीत जोड़ लेती हैं और बहुत से विषयी पामर मनुष्य भी कविता बनाते हैं, परन्तु उनमें से किसी ने भी सत्य - शिरोमणिरूप परमेश्‍वर को प्राप्त नहीं किया है ॥६९॥ 
(क्रमशः)

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