मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

= साँच का अंग १३ =(९४/९६)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
.
*= साँच का अंग १३ =*
.
*दादू निवरे नाम बिन, झूठा कथैं गियान ।*
*बैठे सिर खाली करैं, पंडित वेद पुरान ॥९४॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जिनका अन्तःकरण तो नाम के बिना खाली है और मिथ्या ज्ञान कथन करते हैं । माया की आशा रखकर, जगत में बैठे हुए देह अध्यासी पंडित, वेद और पुरानों से निरर्थक ही माथा मारते हैं ॥९४॥ 
चित्र माहिं केहरी कियो, तासूं डरै न कोइ । 
यों ‘मोहन’ करनी बिना, कथनी तैं क्या होइ ॥ 
.
*दादू केते पुस्तक पढ़ मुये, पंडित वेद पुरान ।*
*केते ब्रह्मा कथ गये, नांहिन राम समान ॥९५॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! राम - नाम के स्मरण के बिना कितने ही पंडित, पंडिताई करते - करते मर गये और कितने ही ब्रह्मा, ऋषि, मुनि, वेद पुरानों की रचना करते करते थक गये । परन्तु राम - नाम की भक्ति के बिना मुक्ति प्राप्ति करने का और कोई भी साधन नहीं है ॥९५॥ 
वेदशास्त्रं शतं वापि तारयन्ति न तं नरम् । 
यस्तु स्वमनसा वाचा न करोति हेरो रतिम् ॥ 
.
*सब हम देख्या सोध कर, वेद कुरानों मांहि ।*
*जहाँ निरंजन पाइये, सो देश दूर, इत नांहि ॥९६॥*
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव उपदेश करते हैं कि हमने विचारपूर्वक वेद व कुरानों का निश्‍चय किया है कि निरंजन की उपासना रूपी देश दूर है । अर्थात् वेद - पुरानों व कुरानों की कथनी से करनी का देश कठिन है । ‘नेति’ कहिए ‘इत नांहि’ वेद आदिकों के कथने से आत्मा की प्राप्ति सम्भव नहीं है क्योंकि ब्रह्मतत्त्व अनिर्वचनीय होने से वेद आदि का अविषय है अर्थात् गुण, क्रिया, जाति और सम्बन्ध वाली वस्तु का वेद वर्णन करता है । ब्रह्म इनसे रहित है । शक्ति - वृत्ति से वेद ब्रह्म का वर्णन नहीं कर सकता है, इसलिये वेद का अविषय है ॥९६॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें